Varanasi News: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महात्मगा गांधी काशी विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में सोमवार को काशी के वैभव और यहां की संस्कृति का जिक्र किया. उन्होंने काशी को भारतीय संस्कृति की अहम धरोहर बताया और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के गौरवशाली इतिहास को याद करते हुए यहां की परंपराओं का जिक्र किया. राष्ट्रपति ने 2024 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प में काशी विद्यापीठ के विद्यार्थियों और शिक्षकों की अहम भूमिका होने का विश्वास जताया. साथ ही दीक्षांत समारोह में छात्राओं को छात्रों की तुलना में अधिक मेडल मिलने पर अपनी प्रसन्ना जाहिर की. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने काशी विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में अपने संबोधन में कहा कि 10 फरवरी 1921 को इस विद्यापीठ का उद्घाटन करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था जितने सरकारी विद्यालय हैं, उनमें हमें विद्या नहीं लेनी है. हम उस झंडे के नीचे नहीं रह सकते, जिसको सलाम करने के लिए हमारे छात्रों को मजबूर किया जाता है. उन्होंने कहा कि यदि हमारे विद्यालय खोलेंगे तो विद्या अपने आप पवित्र हो जाएगी. उन्होंने कहा कि यह विद्यापीठ असहयोग आंदोलन से उत्पन्न संस्था के रूप में हमारे महान स्वाधीनता संग्राम का जीवंत प्रतीक है.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि काशी विद्यापीठ के प्रथम प्रबंधन बोर्ड के सदस्यों में महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, जमनालाल बजाज, जवाहरलाल नेहरू, आचार्य नरेंद्र देव और पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे इतिहास निर्माता शामिल थे. यहां के असाधारण अध्यापकों सूची में आचार्य नरेंद्र देव, डॉक्टर संपूर्णानंद आदि विद्वानों ने सदैव याद रखे जाएंगे. राष्ट्रपति ने कहा कि ब्रिटिश शासन की सहायता और नियंत्रण से दूर रहते हुए भारतीय संसाधनों से निर्मित काशी विद्यापीठ का नामकरण महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ करने के पीछे हमारे स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों के प्रति सम्मान व्यक्त करने की भावना निहित है.
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि एक प्रबल लोक मान्यता है कि काशी निरंतर अस्तित्व में बनी रहने वाली विश्व की प्राचीनतम नगरी है. बाबा विश्वनाथ और मां गंगा के आशीर्वाद से युक्त नगरी काशी सबको आकर्षित करती रही है और करती रहेगी. राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें स्मरण है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी को अपने निर्वाचन क्षेत्र के रूप में चुना था तब उन्होंने भी यही कहा था कि मुझे मैं मां गंगा ने बुलाया है. राष्ट्रपति ने कहा कि जिस तरह मां गंगा भारतीय संस्कृति की जीवन धारा है और भारतीय ज्ञान अध्यात्म और आस्था की संवाहक है, उसी तरह काशी नगरी भारतीय संस्कृति की कलातीत धरोहर है.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि काशी भारतीय ज्ञान परंपरा का केंद्र रही है और और वर्तमान में भी यहां के संस्थान आधुनिक ज्ञान विज्ञान के संवर्धन में अपना योगदान दे रहे हैं. लगभग 1300 वर्ष पहले जगद्गुरु आदि शंकराचार्य की यात्रा भी तभी पूरी हुई, जब काशी में आकर उन्होंने विद्वानों के साथ शासत्रार्थ किया. उन्होंने कहा कि 250 साल पहले यहां काशी विद्वत परिषद की स्थापना की गई थी. यह परिषद निरंतर सक्रिय रही है. संस्कृत भाषा में रचित किसी भी शास्त्र के विषय में इस परिषद का निर्णय सर्वमान्य होता है. ऐसे सामाजिक ज्ञान केंद्र की परंपरा के अनुरूप इस विद्यापीठ के आचार्य और विद्यार्थियों को भी अपने संस्थान के गौरव को निरंतर समृद्ध करना चाहिए.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले कुल विद्यार्थियों में 78 प्रतिशत संख्या छात्रों की है. स्नातकों में लगभग 57 प्रतिशत छात्राएं हैं तथा स्नातकोत्तर में उपाधि प्राप्त करने वालों विद्यार्थियों में लगभग 68 प्रतिशत बेटियां हैं. उन्होंने कहा कि मंच पर आकर पदक प्राप्त करने वाले 15 विद्यार्थियों में 11 छात्राएं हैं. उच्च शिक्षण संस्थानों में बेटियों के बेहतर प्रदर्शन में विकसित भारत की झलक दिखाई देती है. उन्होंने विश्वास जताया कि 2040 तक भारत के विकसित देश के संकल्प को पूरा करने में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के विद्यार्थियों और आचार्य का महत्वपूर्ण योगदान रहेगा.
कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का जीवन और संघर्ष प्रत्येक भारतीय को प्रेरित करता है. उनका जीवन देशवासियों विशेष तौर पर गरीबों, हाशिए पर पड़े दबे कुचले वंचितों और महिलाओं के लिए आशा की किरण है. राष्ट्रपति के रूप में आप देश के विकास में अपनी विशिष्ट भूमिका का निर्वहन कर रही हैं. महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए नारी शक्ति वंदन बिल का जारी होना आपका कार्यकाल की महत्वपूर्ण उपलब्धि में गिना जाएगा. आप देश की महिलाओं की सशक्तीकरण का सशक्त उदाहरण हैं.
कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने कहा कि बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से काशी का सम्मान नई-नई ऊंचाइयों को छू रहा है. जी- 20 समिट के माध्यम से भारत ने अपनी संस्कृति और वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा से पूरी दुनिया में अपना परचम लहराया. काशी की सेवा, काशी का स्वाद, काशी की संस्कृति और काशी का संगीत जी-20 के लिए जितने मेहमान आए हुए इसे समेटे हुए अपने साथ लेकर गए हैं. जी-20 की अद्भुत सफलता बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से ही संभव हुई है.