बिहार में कोरोना संकट के बीच विधानसभा चुनाव का रास्ता साफ हो चुका है. अगर बात पिछले चुनाव की करें तो कई चौंकाने वाले नतीजे भी सामने आए थे. साल 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर मतदाताओं ने नोटा को ज्यादा तरजीह दी. सबसे खास बात यह रही कि किसी भी सीट पर नोटा मतों की संख्या अंतिम पायदान पर नहीं दिखी. 134 से अधिक सीटों पर नोटा को प्रभावी वोट मिले. इन सीटों पर नोटा को पहले पांच में जगह मिली. यहां नोटो को दूसरे दलों और निर्दलीयों से ज्यादा वोट मिले. कहने का मतलब है कि साल 2015 में 9 लाख से अधिक मतदाताओं ने नोटा को चुना.
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बिहार चुनाव में नोटा बढ़ा सकता है टेंशन, 2015 में 9 लाख से अधिक ने चुना था- इनमें से कोई नहीं
बिहार में कोरोना संकट के बीच विधानसभा चुनाव का रास्ता साफ हो चुका है. अगर बात पिछले चुनाव की करें तो कई चौंकाने वाले नतीजे भी सामने आए थे. 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर मतदाताओं ने नोटा को ज्यादा तरजीह दी. सबसे खास बात यह रही कि किसी भी सीट पर नोटा मतों की संख्या अंतिम पायदान पर नहीं दिखी. 134 से अधिक सीटों पर नोटा को प्रभावी वोट मिले. इन सीटों पर नोटा को पहले पांच में जगह मिली. यहां नोटो को दूसरे दलों और निर्दलीयों से ज्यादा वोट मिले. कहने का मतलब है कि 2015 में 9 लाख से अधिक मतदाताओं ने नोटा को चुना.
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