छपरा: खनुआ नाला शेरशाह सूरी का था ड्रीम प्रोजेक्ट, कभी चलती थी नाव, आज दे रही सड़ांध

छपरा: शहर को बाढ़ की विभीषिका से बचाने तथा ग्रामीण इलाकों में सिंचाई के इंतजाम को सुचारू बनाने के उद्देश्य से मुगलकाल में राजा टोडमल के आदेश पर खनुआ नाले का निर्माण कराया था. 15 वीं शताब्दी में बने खनुआ नाला के छपरा व आसपास के इलाकों में 50 से भी अधिक रास्ते थे.

By Mahima Singh | May 31, 2024 1:33 PM
छपरा: खनुआ नाला शेरशाह सूरी का था ड्रीम प्रोजेक्ट, कभी चलती थी नाव, आज दे रही सड़ांध
छपरा से प्रभात किरण हिमांशु: शहर को बाढ़ की विभीषिका से बचाने तथा ग्रामीण इलाकों में सिंचाई के इंतजाम को सुचारू बनाने के उद्देश्य से मुगलकाल में राजा टोडमल के आदेश पर खनुआ नाले का निर्माण कराया था. 15 वीं शताब्दी में बने खनुआ नाला के छपरा व आसपास के इलाकों में 50 से भी अधिक रास्ते थे. जो ग्रामीण इलाकों के नहर से कनेक्ट थे. शहर के दक्षिणी भाग के तटवर्ती इलाके बाढ़ के दौरान जलमग्न हो जाया करते थे और जानमाल का भारी नुकसान हुआ करता था. इसके बाद जिले के भेल्दी में आम लोगों और राजा टोडरमल के बीच हुई मंत्रणा के बाद यह ऐतिहासिक नाला अस्तित्व में आया. अपनी संरचना के हिसाब से पहले यह एक बड़ा नाहर हुआ करता था. बाढ़ के दौरान सरयू नदी का पानी इस नाहर से गुजर कर जिले के कई गावों तक जाता था जिससे खेतों की सिंचाई में भी काफी लाभ मिलता था. स्थानीय ओमप्रकाश गुप्त बताते हैं कि पहले खनुआ नाले में साफ पानी बहा करता था. मुगलकाल में इसमें नाव चला करती थी. आसपास के युवक नहाते भी थे. खनुआ नाला कई भागों में बंटा था जो सरयू के पानी को गांवों में पहुंचाता था. आज इसका संपर्क पूरी तरफ गांवों से टूट गया है. कई जगह तो अब नाले की जमीन पर अतिक्रमण कर घर बना लिया गया है. वर्ष 2019 में इस नाले के पुराने अस्तित्व को बचाने का प्रयास शुरू किया गया. इस समय यहां जापान की कंपनी द्वारा नाले के पुराने स्वरूप को फिर से जीवित करने के लिए एक प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है. फिर से इसे सीवरेज के रूप में बनाया जा रहा है. लेकिन जगह-जगह अतिक्रमण होने के कारण अब पुराने स्वरूप को फिर से अस्तित्व में ला पाना मुश्किल हो रहा है. कई जगहों पर नाला पूरी तरह से बंद हो गया है और यहां अब ऊंची इमारतें बन चुकी हैं. रूपगंज के अरुण श्रीवास्तव बताते हैं कि जब वह छोटे थे तब बरसात के समय शहर में एक बूंद पानी जमा नहीं होता था. पूरा पानी नाले के माध्यम से ग्रामीण इलाकों के नहरों में चला जाता था, लेकिन अब हल्की सी बरसात में पूरा शहर जलमग्न हो जा रहा है. ‍‍
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