ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर वो सबकुछ जो आपको जानना चाहिए
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद चर्चा में है. मस्जिद में आर्कियोलॉजिकल सर्वे का हाईकोर्ट ने आदेश दिया है. सर्वे का आदेश हाईकोर्ट ने हिंदू और मुस्लिम पक्ष के बीच विवाद को लेकर दिया है.
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद चर्चा में है. मस्जिद में आर्कियोलॉजिकल सर्वे का हाईकोर्ट ने आदेश दिया है. सर्वे का आदेश हाईकोर्ट ने हिंदू और मुस्लिम पक्ष के बीच विवाद को लेकर दिया है. क्या आप इस विवाद का पूरा इतिहास जानते हैं? अगर नहीं तो हम आपको यह बताते हैं कि यह विवाद नया नहीं है. ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास 350 साल से भी ज्यादा पुराना है. 31 सालों से इस मामले पर केस चल रहा है. आइए आज इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं.
मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं
मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा गया है. स्कंद पुराण में भी इसका जिक्र मिलता है. मान्यता है कि भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था. शिवजी ने यहीं अपनी पत्नी पार्वती को ज्ञान दिया था इसलिए इस जगह का नाम ज्ञानवापी या ज्ञान का कुआं पड़ा. इसे लेकर कई कहानियां किंवदंतियां इलाके में प्रचलित है.
क्या है मामला ? क्यों खड़ा हुआ है ताजा विवाद
इससे पहले हम इसके इतिहास पर और नजर डालें शुरुआत करते हैं, इसके ताजा विवाद से आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक बार फिर ज्ञानवापी मस्जिद चर्चा में आ गया ? विवाद शुरू हुआ ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देवी-देवताओं की रोजाना पूजा-अर्चना को लेकर है.
18 अगस्त 2021 को 5 महिलाएं ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मां श्रृंगार गौरी, गणेश जी, हनुमान जी समेत परिसर में मौजूद अन्य देवताओं की रोजाना पूजा की इजाजत मांगते हुए हुए कोर्ट पहुंची. अभी यहां साल में एक बार ही पूजा होती है.
26 अप्रैल 2022 को वाराणसी सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देव विग्रहों के सत्यापन के लिए वीडियोग्राफी और सर्वे का आदेश दे दिया. विवाद यहां से शुरू हो गया. कोर्ट के आदेश के बावजूद मुस्लिम पक्ष के भारी विरोध की वजह से यहां 6 मई को शुरू हुआ 3 दिन के सर्वे का काम पूरा नहीं हो सका. इस मामले में आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण है.
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद अयोध्या बाबरी मस्जिद के विवाद से मिलता जुलता है. यहां भी मंदिर मस्जिद दोनों बने हैं. हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने यहां काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी. मु
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां मंदिर नहीं था और शुरुआत से ही मस्जिद बनी थी. जैसा की इतिहास में कई मुद्दों और तथ्यों को को लेकर होता है, यहां भी इतिहासकारों में मतभेद है. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि 14वीं सदी में जौनपुर के शर्की सुल्तान ने मंदिर को तुड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी जबकि कुछ का मानना है कि अकबर ने 1585 में नए मजहब दीन-ए-इलाही के तहत विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई.
क्या है प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट ? क्यों हो रही है चर्चा
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच विवाद में एक कानून की खूब चर्चा है. कानून है प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट, जिसे 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार लेकर आई थी. अब कानून क्या कहता है यह भी पढ़ लीजिए ये कानून कहता है आजादी के समय यानी 15 अगस्त 1947 के वक्त जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, वो हमेशा उसी रूप में रहेगा. इस कानून को लेकर भी दोनों पक्षों की राय अलग – अलग है.
एक पक्ष का कहना है कि इस मामले में ये कानून लागू नहीं होता, क्योंकि मस्जिद को मंदिर के अवशेषों के ऊपर बनाया गया. दूसरे पक्ष का कहना है कि इस कानून के तहत इस विवाद पर कोई भी फैसला लेने की मनाही है. जैसा है उसे वैसे ही रहने देना चाहिए.
अबतक क्या – क्या हुआ
साल 1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा, मूल मंदिर को 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था. बाद में औरंगजेब ने इसे तोड़कर मस्जिद बनवा दी. जमीन मंदिर निर्माण के लिए वापस कर दी जाये.
1998 में ज्ञानवापी मस्जिद की तरफ से अंजमुन इंतजामिया इसके खिलाफ हाईकोर्ट पहुंच गयी. वही कानून जिसका जिक्र हमने पहले कर दिया प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट का हवाला देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी.
2019 में विजय शंकर रस्तोगी ने वाराणसी जिला अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराने की मांग करते हुए याचिका दाखिल हाई कोर्ट के स्टे ऑर्डर की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई
2020 में अंजुमन इंतजामिया ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराए जाने की याचिका का विरोध किया. इसी साल रस्तोगी ने हाईकोर्ट द्वारा स्टे नहीं बढ़ाने का हवाला देते निचली अदालत से सुनवाई फिर शुरू करने की अपील की. कोर्ट इस मामले पर आगे क्या फैसला लेता है हम सभी इसी इंतजार में हैं