Happy Friendship Day 2023 :
जाने तू या जाने ना ‘प्यार दोस्ती है. क्योंकि अगर वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त नहीं बन सकती तो मैं कभी उससे प्यार कर ही नहीं सकता. इसीलिए सिंपल है प्यार, दोस्ती है’. कॉलेज की बेंच पर बैठे राहुल की ये बात ज़्यादा सटीक है या हम तुम में करण का ज्ञान, कि एक लड़का और लड़की कभी सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते. इन फिल्मी बातों से अलग दोनों को पता भी नहीं था कि स्कूल के बाद कॉलेज की जिन सीढ़ियों पर वो चढ़ने जा रहे थे वही उनका रास्ता भी होगा, सफर भी और मंज़िल भी.
ये कहानी है आत्रेयी और सौरभ की. करीब 17 साल पहले कॉलेज की क्लास में दोनों मिले. पर हेलो हाय से दोस्ती तक के सफ़र में ही एक साल लग गए. धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती हुई बात क्लासरूम से निकलकर कैंटीन और फिर सीसीडी कैफ़े तक गयी.एसएमएस पर चैटिंग और फ़ोन पर घंटों बातें होने लगी. उस वक़्त वीडियो कॉल की टेक्नोलॉजी नहीं थी, पर बातों के दरम्यान ऐसा लगता था कि बस आमने सामने बैठकर बातें हो रही हो. एक-दूसरे की हर ज़रूरत, हर सुख, हर दुख, हर छोटी-बड़ी बात में एक दूसरे के साथ होना, उनकी रूटीन का पार्ट थी. यहां तक कि एक दूसरे के लिए पार्टनर्स ढूंढने में भी दोनों एक दूसरे की हेल्प को रेडी थे. एक दूसरे के लिए पोजेसिव थे. दोनों चाहते थे कि उनका ज़्यादा से ज़्यादा टाइम एक दूसरे के साथ बीते. फिर चाहे कॉलेज में पूरा ग्रुप हो या फ़ोन पर सिर्फ वो. लेकिन इतने पर भी अपने रिलेशन को लेकर बिल्कुल क्लियर थे कि वो सिर्फ दोस्त हैं. जस्ट फ्रेंड्स.
कोई मानता नहीं था. सबको लगता था कि या तो ये छुपाते हैं या एक-दूसरे को भी बताते नहीं.पर सच यही है कि इनके बीच सिर्फ दोस्ती थी.सबसे अच्छी-पक्की वाली दोस्ती.
कॉलेज के बाद जॉब तक दोनों साथ रहे, दोनों की दोस्ती रोज़ और मजबूत होती गयी. पर फिर आत्रेयी के घर शादी की बात शुरू होने लगी.आत्रेयी के लिए नया एक्सपीरियंस हो रहा था. हर दूसरे दिन कोई स्मार्ट हीरो जैसा लड़का घर आता और फिर घरवाले उसे परखते. तब तक आत्रेयी को वो अंदाज़ा नहीं था जो अपनी दोस्ती के बीच सौरभ को हो चुका था. अगर आत्रेयी की शादी हो गयी तो फिर उनकी दोस्ती वैसी कभी नहीं रहेगी, जैसी आज है, यही बात जिस दिन आत्रेयी भी समझी उस दिन लगा कि दोनों आने वाली ज़िंदगी मे क्या खोने जा रहे हैं.एक दूसरे का साथ, एक दूसरे से हर दिन मिलना, एक दूसरे का केयरिंग नेचर और सबसे बड़ी एक दूसरे की दोस्ती. क्योंकि हो सकता है आगे उन दोनों को बहुत अच्छे पार्टनर्स मिल जाए, उनकी ज़िंदगी बहुत अच्छी हो जाये. पर दोनों जानते थे कि कुछ भी हो जाये उन दोनों के जैसा दोस्त और उनकी दोस्ती उन्हें वापस कभी नहीं मिलेगी.
इसीलिए दुनिया की छोड़कर, लोग क्या सोचेंगे ये सोचे बिना दोनों ने तय कर लिया कि अगर दोनों को किसी न किसी से शादी करनी ही है तो एक दूसरे से क्यों नहीं. दोस्ती है तो एक दिन प्यार भी हो जाएगा, पर दोस्ती नहीं रहेगी तो फिर आगे ज़िंदगी का क्या होगा. लोग कहते हैं कि आपका पार्टनर आपका बेस्ट फ्रेंड होना चाहिए. पर इन दोनों ने अपने बेस्ट फ्रेंड को ही लाइफ पार्टनर बना लिया.
आज इनकी शादी को 10 साल से ज़्यादा का वक़्त हो गया. पर आज भी इनके 10 साल की मैरिड लाइफ से ज़्यादा इनके 16 साल की फ्रेंडशिप का रंग गाढ़ा है. आज भी ये हस्बैंड-वाइफ से पहले एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त हैं.
फिल्मों में राहुल या करण की बातों से परे जाने तू या जाने न अंदाज़ में इन्हें भी कभी पता ही नहीं चला कि ये दोनों एक दूसरे के लिए सबसे परफेक्ट है. एक्चुअली दोस्ती ऐसी ही होती है.इसीलिए दोस्ती सबसे खास होती है.
कुछ ऐसी ही कहानी है रांची के रहने वाले शैलेश और ऋतुराज की
दोस्ती भरोसे और विश्वास का दूसरा नाम है. जिसमें विश्वास दो दोस्तों के साथ आपके साथ जुड़े लोगों का भी आप पर होना चाहिए. तब आपकी जिंदगी खुशियों से भर जाती है. शैलेश और ऋतुराज की दोस्ती वर्ष 2000 में हुई. ट्यूशन और कोचिंग साथ जाना और साथ पढ़ना कब और कैसे इन्हें एक दूसरे के करीब लाता गया यह इन्हें भी पता नहीं चला. एक वक्त एहसास हुआ कि जिंदगी के सफर में दोस्त अगर हमसफर बन जाए तो यह सफर कितना सुहाना होगा. परिवारवालों की रजामंदी ली और साथी से जीवनसाथी बन गए. 2009 में दोनों ने शादी कर ली और एक बेटा और एक बेटी के साथ जीवन में खुश हैं. ऋतुराज और शैलेश की कहानी भी यही कहती है प्यार दोस्ती है और दोस्ती प्यार है.