सरहुल पर्व झारखंड में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. आदिवासी शुरू से ही प्रकृति के उपासक माने जाते हैं. सरहुल पर्व के दिन आदिवासी प्रकृति की पूजा करते हैं. धर्म गुरू डॉ प्रवीण उरांव बताते हैं कि सरहुल पर्व का आदिवासियों के लिए बहुत महत्व है. सरहुल में हर कोई यही कामना करता है कि फसल अच्छी हो, तभी मानव जाती अच्छे से खा पायेगा.
सरहुल सिर्फ अच्छी फसल के लिए नहीं बल्कि मौसम की भविष्यवाणी के लिए भी जाना जाता है. इसी पर्व से आदिवासी यह पहले ही जान लेते हैं कि इस वर्ष कैसी बारिश होगी. आदिवासियों के नए साल की शुरूआत भी इसी पर्व के बाद होती है. डॉ प्रवीण उरांव बताते हैं कि पतझर के बाद ही नए पत्ते लगते हैं. इसलिए इसे हम नए साल के तौर पर भी मनाते हैं. झारखंड में सरहुल शोभायात्रा की शुरूआत 1967 में की गई.