रांची लोकसभा क्षेत्र से अलग होकर बनी लोकसभा सीट लोहरदगा कई मायनों में महत्वपूर्ण है. इसका न सिर्फ राजनीतिक, बल्कि ऐतिहासिक भी है. जैन पुराणों के मुताबिक भगवान महावीर लोहरदगा आए थे. आयन-ए-अकबरी किताब में भी लोहरदगा की खूबसूरती का खूब बखान किया गया है. अपने खूबसूरत प्राकृतिक नजारे के कारण भी यह लोगों को आकर्षित करता है. इस चुनावी रण में हमेशा कांटे की टक्कर देखने को मिलती रही है.
इस सीट पर 1957 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ था. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट पर पहली बार झारखंड पार्टी के प्रत्याशी की जीत हुइ थी. 1967 में कांग्रेस ने इस पर पहला जीत का परचम लहराया था. इसके साथ ही लंबे समय तक इस पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी की ही जीत हुई. पहली बार 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस सीट पर अपना खाता खोला.
लेकिन कभी भी यह सीट किसी एक खेमे की नहीं रही. प्रत्याशियों के साथ ही सीट कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी के खेमे में जाती रही है. इसके साथ ही इस पर टक्कर भी कांटे की ही रही है. लगभग 19 लाख की जनसंख्या वाली इस लोकसभा सीट की बड़ी आबादी गांव में बसती है. इसकी 94.44 प्रतिशत आबादी ग्रामीण, तो मात्र 6.06 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. इस सीट पर अनुसूचित जनजाति का दबदबा है. 64. 04 प्रतिशत जनसंख्या एसटी है.