Lok sabha Chunav: पूर्व सांसद जनार्दन यादव का कैसे काट रहे राजनीतिक वनवास, देखिए वीडियो..
Loksabha Chunav सांसद का चुनाव जीतने वाले जनार्दन यादव कभी बांका लोकसभा से दो-दो बार चुनाव हार गये थे.
Loksabha Chunav सुबह-सुबह घर के बाहर खुले में अखबारों और किताबों से दिन की शुरुआत करने वाले बांका के वयोवृद्ध राजनेता जनार्दन यादव आज भी विचारों से सक्रिय हैं. फुल्लीडुमर प्रखंड क्षेत्र के तेलिया गांव में एक साधारण परिवार में जन्म लेने वाले जनार्दन यादव का सियासी सफर काफी रोचक और प्रेरणा दायक है. जनार्दन यादव यादव विधानसभा, लोकसभा व राज्यसभा यानी तीन-तीन सदनों के सदस्य बने.
दिलचस्प बात यह है कि लड़कपन अखाड़ा खूब जाते थे और कुस्ती लड़ते थे. इसी दौरान आरएसएस से उनका संपर्क हुआ और धीरे-धीरे संघ से राजनीति में कूद गये. गोड्डा लोकसभा क्षेत्र से 1989 में सांसद का चुनाव जीतने वाले जनार्दन यादव कभी बांका लोकसभा से दो-दो बार चुनाव हार गये थे. जनार्दन यादव बताते हैं कि उन्होंने बांका से पहला लोकसभा चुनाव 1980 में लड़ा था, वह जनता पार्टी के समर्थित उम्मीदवार थे. वह तीसरे स्थान पर थे. कांग्रेस उम्मीदवार चंद्रशेखर सिंह चुनाव जीत गये. जबकि, उनकी निर्णायक लड़ाई दूसरे स्थान पर रहे मधु लिमये हुई थी. इस चुनाव में उस दौरान वह बिहार सरकार में मंत्री भी थे.
दूसरी बार उन्होंने यहीं से 1984 में भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन, पुनः कांग्रेस की महिला प्रत्याशी मनोरमा सिंह विजयी रही. वह चंद्रशेख सिंह की पत्नी थीं. यहां के मूल निवासी होने के बावजूद दो हार से के बाद उन्होंने यहां से चुनाव लड़ने से साफ इंकार कर दिया. जनार्दन यादव को 1989 में भाजपा ने गोड्डा लोकसभा से चुनावी मैदान में उतारा और इस चुनाव में उन्होंने रिकार्ड कायम कर दिया. उन्होंने कुल मत 308134 प्राप्त किये. जबकि, झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी सूरज मंडल 126701 मत ही प्राप्त कर पाए.
इस प्रकार जनार्दन याव ने 181433 मत के बड़े अंतर से चुनाव जीत लिया. इसके बाद उन्हें 1996 में राज्यसभा का सांसद बनाया गया. राज्य सभा सांसद के रुप में उन्होंने 2000 तक अपनी सेवा दी. इसके बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से किनारा कर लिया. उन्होंने लंबे समय से किताबों से दोस्ती कर रखी है. इस उम्र में भी खूब पढ़ते हैं.
जेपी मूवमेंट में विधायकी से दे दिया था इस्तीफा
जनार्दन यादव पहली दफा अमरपुर से पहला चुनाव हार गये थे. वे अपने गुरु सुखनारायण बाबू से पराजित हुए. 1972 में वह पहली बार अमरपुर से विधायक निर्वाचित हुए. लेकिन, जंेेपी मूवमेंट में कूदने के साथ ही उन्होंने अपने विधायकी से इस्तीफा दे दिया था. इमजरजेंसी में उन्हें गिरफ्तार कर कैंप जेल भागलपुर में बंद कर दिया गया था. दोबारा वह 1977 में अमरपुर से ही विधायक निर्वाचित हुए. वे सूबे में उद्योग और शिक्षा जैसे मंत्रालय का जिम्मा भी संभाला था. वर्ष 1986 में वह बांका से तीसरी बार विधायक निवार्चित हुए. हालांकि, 1989 में वह गोड्डा लोकसभा चुनाव में चुनाव जीत गये और बांका विधायक से अपना इस्तीफा दे दिया. इसके बाद यहां उन्होंने रामनारायण मंडल को विधायक का चुनाव लड़ाया और श्री मंडल भी विजयी हुए. 1996 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा.
जनता से मिला खूब प्यार
जनार्दन यादव बताते हैं कि उन्हें जनता ने खूब प्यार दिया था. विधानसभा, लोकसभा के साथ राज्यसभा तक का सफर जनता के भरोसे और आशीर्वाद के साथ तय किया. बिहार में शिक्षा और उद्योग जैसे मंत्रालयों का भी जिम्मा संभाला. अगर पुराने और नये जमाने की राजीनिति को देखें तो काफी बदल गयी है. वह दौर अलग था. नेता आम आदमी के साथ आम हो जाते थे. अब धनतंत्र का जमाना है. संसाधनओं के चकाचैंध में नेता खो जाते हैं. अब नेता पैसे कमाने और अपना रुतबा बढ़ाने के लिए राजनीति में आते थे. पहले की तरह देश प्रेम और समाज के प्रति समर्पण का भाव नहीं दिखता है.