नयी दिल्लीः एक ओर भारत सरकार इसलाम के हर प्रतीक को संरक्षित करने में जुटी है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान हिंदुअों के प्रतीक को नष्ट होते हुए देख रहा है. पाकिस्तान में हिंदुअों की भावनाअों से खिलवाड़ हो रहा है और इसे रोकने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाये जा रहे. सीमा पर नापाक हरकतें करनेवाला पाकिस्तान अपनी सीमा के अंदर हिंदुअों की भावनाअों को आहत कर रहा है.
कराची जिले के मनोरा जिले में मनोरा द्वीप पर स्थित है 1,000 साल पुराना वरुण देव मंदिर. इस मंदिर को पाकिस्तान के लिए एक विरासत का प्रतीक होना चाहिए, लेकिन इस मंदिर के एक हिस्से का इस्तेमाल शौचालय के रूप में हो रहा है.
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1950 के दशक में आखिरी बार हिंदू समुदाय ने ‘लाल साईं वरुण देव’ का त्योहार मनाया था. अब मंदिर के कमरे और परिसर शौचालय के रूप में उपयोग किये जाते हैं. मंदिर का ख्याल रखनेवाले बताते हैं कि कोई भी अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान नहीं करता.
1000 year old Varun Dev Temple in Karachi (Pakistan) now used as toilet for tourists https://t.co/W0yrFUQvNq pic.twitter.com/VjnBfLVb4r
— True Indology (@TrueIndology) June 2, 2017
पाकिस्तानी नौसेना के अधिकार क्षेत्र में आनेवाले इस मंदिर के स्वामित्व के बारे में जानकारी के लिए सैन्य संपत्ति अधिकारी (एमइओ) से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. जब जीवराज ने मनोरा छावनी बोर्ड (एमसीबी) को लिखा, तो उन्हें बताया गया कि यहां इससे जुड़ा कोई रिकॉर्ड नहीं है.
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मंदिर की बदहाली की खबर अब पूरे पाकिस्तान में पहुंच गयी है. धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदारों के लिए पाकिस्तान में यह बड़ा मौका था. यह पाकिस्तान सरकार की भी जिम्मेदारी थी कि वे अल्पसंख्यकों की आस्था के इस सबसे बड़े प्रतीक की सुरक्षा के लिए कदम उठाती. लेकिन, उसने ऐसा नहीं किया.
After seeing almost complete ruin Varun Dev temple is being restored thru #AFCP. https://t.co/xkVibjuDHx @StateDept pic.twitter.com/YiOLUicPAu
— US Consulate Karachi (@usconsulatekhi) March 15, 2016
अच्छी बात यह है कि वरुण देव मंदिर की पुनर्स्थापना के लिए अमेरिका आगे आया है. वर्ष 2016 में कराची स्थित अमेरिकी दूतावास ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और मंदिर की पुनर्स्थापना की घोषणा की. अमेरिका ने इसके लिए सांस्कृतिक प्रतीकों की सुरक्षा के लिए तय किये गये अमेरिकी राजदूत के फंड का इस्तेमाल करने का फैसला किया.
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यहां बताना प्रासंगिक होगा कि पाकिस्तान के समाचार पत्र डेली टाइम्स ने वर्ष 2008 में मंदिर की दुर्दशा पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. आठ साल बीत जाने के बावजूद पाकिस्तान सरकार और पाकिस्तान की संस्थाअों ने जब कोई कदम नहीं उठाया, तो अमेरिका ने इसका बीड़ा उठाया.