दक्षिण चीन सागर मामलाः संयुक्त राष्ट्र में भारत ने दिखायी आक्रामक रुख, कहा-सागरों को विवाद क्षेत्र में नहीं बदला जा सकता

संयुक्त राष्ट्र: दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन के आक्रामक रुख के बीच भारत ने सागरों में नौवहन की स्वतंत्रता एवं समुद्री विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की महत्ता दोहराते हुए कहा है कि सागरों को‘विवाद के क्षेत्रों’ में नहीं बदला जा सकता. विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने यहां महासभा में संयुक्त राष्ट्र […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 9, 2017 3:59 PM

संयुक्त राष्ट्र: दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन के आक्रामक रुख के बीच भारत ने सागरों में नौवहन की स्वतंत्रता एवं समुद्री विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की महत्ता दोहराते हुए कहा है कि सागरों को‘विवाद के क्षेत्रों’ में नहीं बदला जा सकता. विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने यहां महासभा में संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कल कहा कि महासागरों के आसपास त्वरित एवं स्थायी आर्थिक विकास इस बात का सबूत है कि 21वीं सदी में आर्थिक इंजन नई दिशा में बढ़ रहे हैं. महासागर सम्मेलन पांच जून को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आरंभ हुआ था और शुक्रवार को इसका समापन होगा. संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार इस प्रकार का सम्मेलन आयोजित किया है. यह सम्मेलन वर्ष 2015 में सरकारों द्वारा पारित स्थायी विकास के एजेंडे 2030 में रेखांकित लक्ष्यों पर केंद्रित है. इसका लक्ष्य महासागरों एवं सागरों में तेजी से बढ़ते प्रदूषण की स्थिति से निपटने के लिए ठोस समाधान खोजना है.

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विश्व महासागर दिवस के सम्मेलन को संबोधित करते हुए अकबर ने कहा कि 21वीं सदी को ‘समानता एवं संप्रभुता’ के सिद्धांत और वे लोग आकार देंगे, जिनका मानना है कि एक समूह में झगड़ें का कोई स्थान नहीं होता. उन्होंने कहा कि महासागरों के देशों को अक्सर छोटा कहा जाता है. हम छोटे या बड़े में विश्वास नहीं करते. हर देश संप्रभु है. क्षमताएं अलग हो सकती हैं, लेकिन सभी देशों के पास समान अधिकार हैं. अकबर ने जोर देकर कहा कि सागरों को विवाद के क्षेत्रों में नहीं बदला जा सकता. शांति, स्थिरता, समृद्धि एवं विकास के लिए खुले एवं सुरक्षित समुद्र मार्ग अहम हैं.

उन्होंने कहा कि हम हमारे सागरों को विवाद के क्षेत्रों में नहीं बदलने दे सकते. साझा समृद्धि का युग सहयोग की मांग करता है. भारत इस संदर्भ में सागर संबंधी कानून पर 1982 की संयुक्त राष्ट्र संधि समेत वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के अनुरूप ‘शांतिपूर्ण तरीकों से समुद्री विवाद सुलझाने के साथ साथ सागरों के ऊपर उड़ान भरने एवं नौवहन की स्वतंत्रता की महत्ता दोहराता है. भारत का यह बयान दक्षिण चीन सागर में चीन की बढती आक्रामकता के बीच आया है. चीन लगभग संपूर्ण दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है.

अकबर ने कहा कि भारत का 7500 किलोमीटर तटीय क्षेत्र है, जहां एक हजार से अधिक द्वीप हैं और एक तिहाई से अधिक भारतीय लोग तटों के पास रहते हैं. इसके मद्देनजर भारत महासागरों संबंधी चुनौतियों एवं अवसरों के बारे में अवगत है. अकबर ने चेताया कि मछलियां पकड़ने की अत्यधिक गतिविधियों, प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव स्पष्ट दिख रहे हैं. उन्होंने कहा कि इनसे निपटने के लिए कार्य करने का समय बहुत पहले ही आ चुका है.

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