हम गुनहगार औरतें हैं
जो अहले जुब्बा की तमकिनत से
न रौब खाएं, न जान बेचें
न सिर झुकाएं, न हाथ जोड़ें
हम गुनहगार औरतें हैं..
भारत के बुलंदशहर में जन्मी पाकिस्तानी कवयित्री किश्वर नाहिद की यह नज्म भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों की औरतों की जिंदगी का आईना कही जा सकती है. इसलिए, क्योंकि इस नज्म में दोनों मुल्कों की औरतों की जिंदगी का हाल-ए-बयां है. कहीं कम, कहीं ज्यादा हो सकते हैं, लेकिन औरतों के साथ होनेवाले अपराध एक से ही हैं. किश्वर नाहिद ने बेशक सिर न झुकानेवाली औरतों को समाज द्वारा गुनहगार ठहराये जाने की बात की है, लेकिन पाकिस्तान के डॉन डॉटकॉम में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक वहां ऐसी औरतों की भी एक बड़ी तादाद है, जो सिर झुका कर भी सितम ङोलने को मजबूर हैं.
पाकिस्तान के कुछ सरकारी संस्थानों की पहल से कराये गये सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि पाक में बड़े पैमाने पर महिलाएं शोषण और हिंसा का शिकार हो रही हैं. लेकिन पाकिस्तान के अन्य क्षेत्रों की तुलना में वहां के खैबर पख्तूख्वाह में महिलाओं की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है. यह इलाका तालिबानियों का गढ़ माना जाता है. बताया जाता है कि पाकिस्तान सरकार हमेशा तालिबानियों के हमले के डर में इतनी उलझी रहती है कि उसका महिलाओं की दिन-ब-दिन बिगड़ती स्थिति और उनके साथ हो रही हिंसा की तरफ ध्यान ही नहीं जाता.
पिछले छह दशक में पाकिस्तान के खैबर पख्तूख्वाह इलाके में हथियार रखने का चलन और हिंसा लगातार बढ़ी है. यहां किसी तरह के कानून का असर नहीं दिखता और 1948 के बाद से यहां के अधिकतर लोग सीमा पर हथियार की तस्करी का काम करते हैं. लेकिन यहां सबसे ज्यादा हिंसा महिलाओं के साथ हो रही है. शारीरिक शोषण और हिंसा की शिकार इन महिलाओं की आवाज तालिबानियों के आतंक के शोर में दबी रह जाती है. खैबर पख्तूख्वाह ही नहीं, बलूचिस्तान में भी महिलाओं की यही स्थिति है. वहीं सिंध के शहरी इलाके में हालात बेहतर नजर आते हैं.
2012-13 में पाकिस्तान की कुछ सरकारी एजेंसियों ने एक जनसांख्यकीय और स्वास्थ्य सर्वे कराया था. इसमें 15 से 49 वर्ष की महिलाओं की जीवनशैली के बारे में भी सवालों को जगह दी गयी थी. इस सर्वे में पाकिस्तान के 14 हजार परिवारों की 13,558 महिलाओं से बात की गयी. इनमें से 3,687 महिलाओं ने उनके साथ होनेवाली घरेलू हिंसा, लात मारने, थप्पड़ मारने, धकेलने, किसी भी चीज को फेंककर मारने, यौनिक एवं भावनात्मक शोषण, धमकाने, डपटने, रौब दिखाने के बारे में भी बताया. यह सर्वे पाकिस्तान में महिलाओं की निराशाजनक तसवीर पेश करता है. खासतौर पर खैबर पख्तूख्वाह और बलूचिस्तान की महिलाओं की.
52 फीसदी महिलाएं खामोश हैं अपने साथ होनेवाली हिंसा पर
इस सर्वे के मुताबिक 15 से 49 वर्ष की हर पांच में से एक शादीशुदा महिला कम से कम साल में एक बार तो शारीरिक हिंसा का शिकार होती ही है. वहीं 15 से 49 वर्ष की हर तीन में एक महिला को अपने पति से साल में कम से कम एक बार भावनात्मक और शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ता है. 35 फीसदी औरतें शारीरिक शोषण से डरी सहमी रहती हैं. स्थिति तब और खराब हो जाती है, जब हर 10 में एक गर्भवती महिला को शारीरिक हिंसा का शिकार होना पड़ता है और यह सब अधिकतर महिलाएं चुपचाप सहती रहती हैं. इस सर्वे के मुताबिक 52 फीसदी महिलाओं ने अपने साथ होनेवाली हिंसा के खिलाफ कभी आवाज नहीं उठायी न ही इसे किसी और से साझा किया. पाकिस्तान में घरेलू हिंसा को लेकर क्षेत्र के आधार पर अंतर चौंकानेवाला है. ग्रामीण क्षेत्र की तकरीबन 59 फीसदी महिलाओं के साथ 15 की उम्र की होते ही शारीरिक शोषण शुरू हो जाता है. वहीं यह सर्वे बताता है कि सिंध में सबसे कम महज 21 फीसदी महिलाओं को ही घरेलू ¨हसा का सामना करना पड़ता है. पाक अधिकृत गिलगिट बलिस्तान में पाकिस्तान के अन्य क्षेत्रों की तुलना में महिलाओं के साथ होनेवाली हिंसा न के बराबर है. लेकिन खैबर पख्तूख्वाह और बलूचिस्तान की हर 10 में से एक ग्रामीण महिला नियमित तौर पर घरेलू और शारीरिक हिंसा ङोलती है, पंजाब की 5 फीसदी और सिंध की 1.5 फीसदी ग्रामीण महिलाओं की तुलना में. तलाकशुदा, विधवा या पति से अलग रह रही महिलाओं के साथ पति के साथ रह रही महिलाओं की तुलना में इस तरह की हिंसा की दोगुनी संभावना होती है. तो क्या शिक्षा से इसे रोकने में मदद मिली है. हां, ऐसा हुआ है, क्योंकि शिक्षित महिलाएं अशिक्षित महिलाओं की तुलना में अपने साथ होनेवाली हर तरह की हिंसा और शोषण के प्रति सजग होती हैं. लेकिन यह काबिलेगौर है कि बेशक उन्हें घरेलू हिंसा का शिकार नहीं होना पड़ता, पर कई बार आपमान का सामना तो करना ही पड़ता है.
शहरों में सकारात्मक शुरुआत
पाकिस्तान में महिलाओं के हालात बयां करती इस खबर के साथ ही डॉन में ही प्रकाशित पाक महिलाओं से जुड़ी एक और खबर थी- पाकिस्तान के दो शहरों में शुरू हुई महिला परिवहन सेवा. महिलाओं की सुरक्षा को देखते हुए रावलपिंडी और इसलामबाद में ताबीर महिला परिवहन सेवा शुरू की गयी है. जोंग नाम की एक निजी कंपनी ने आरटीए के सहयोग से इसे शुरू किया है. उम्मीद की जा रही है कि यह परिवहन सेवा वहां की कामकाजी महिलाओं और छात्रओं के लिए काफी मददगार हो सकती है. पहली खबर में जिस सर्वे का जिक्र है, उसे देखते हुए इसे एक बेहतर पहल के तौर पर देखा जा सकता है. शुरुआत बेशक छोटी है और इसका लाभ सिर्फ शहरी महिलाओं को मिलेगा, लेकिन घर और बाहर दोनों जगह शारीरिक और मानसिक शोषण तथा हिंसा का शिकार हो रही महिलाओं के लिए यह एक सकारात्मक पहल मानी जा सकती है.
(स्नेत : डॉन डॉटकॉम)