उसकी भुजाये बेटी का पालना थी और दामन आशियाना. उम्र से पहले ही बूढ़ा नज़र आते रिक्शा चालक बबलू की असमय मौत से पांच साल की दामिनी अब तन्हा हो गई है.
दामिनी जब पैदा हुई तो सिर से मां का साया उठ गया. उस वक़्त पापी पेट की ख़ातिर बबलू रिक्शा चलाता तो दामिनी को भी गले से लटके झूले में संग-संग लेकर चलता था.
उनकी इस तस्वीर ने बीबीसी के ज़रिये दुनिया भर का ध्यान खिंचा तो मदद के लिए हाथ उठते चले गए. दामिनी पिछले चार साल से राजस्थान के भरतपुर में सरकारी बाल संरक्षण गृह में है क्योंकि रिक्शा चालक पिता बबलू उसकी परवरिश नहीं कर पा रहे थे.
बबलू की दामिनी जयपुर में भर्ती
बबलू की दामिनी में लौट रही है चमक
बेटी के लिए जमा हो चुके हैं 23 लाख
दामिनी और उसके पिता की बेबसी की कहानी जब बीबीसी के माध्यम से प्रसारित हुई तो मदद के लिए इतने हाथ उठे कि उस नन्हीं परी के लिए कोई 18 लाख रुपए जमा हो गए.
दामिनी की देखरेख के लिए बनी समिति के सदस्य डॉ बीएम भारद्वाज ने बीबीसी से कहा कि उसके बाद भी सहायता का सिलसिला थमा नहीं. कुछ महीने पहले तक 23 लाख रुपये आ चुके थे. ये भी तब जब और मदद के लिए मना कर दिया गया था.
यह राशि दामिनी के नाम बैंक में जमा है, ताकि उसका भविष्य सवांरने में मदद मिले. अभावों की लंबी ज़िंदगी के बाद दामिनी के पिता बबलू मंगलवार को भरतपुर में चल बसे.
रिक्शे के झूले में पली दामिनी की अस्पताल से छुट्टी
कैसे कर सकते हैं आप बबलू की मदद?
कोठरी में मिला बबलू का शव
वो ख़ुद की तरह ही एक उपेक्षित कोठरी में बेजान पाए गए. इसके बाद उनका दाह संस्कार कर दिया गया. दामिनी का कोई परिजन भी नहीं है. उस नन्हीं जान को यह भी नहीं मालूम कि मां की अकाल मौत के बाद जो दामन उसका पालना बना था, वो हमेशा के लिए चला गया.
दामिनी का जन्म वर्ष 2012 में हुआ तो मां अस्पताल में चल बसीं. उसके बाद दामिनी की परवरिश का भार रिक्शा चलाकर जीवन यापन कर रहे बबलू पर आ गया. वो जब रिक्शा लेकर निकलते तो दामिनी को भी बांहों का झूला बना लेते.
एक रिक्शा चालक को इस तरह बेटी को गले लगाए घूमते देखना भाव-विह्वल करने वाला था. उस वक़्त बबलू ने बीबीसी से कहा, ‘मेरी पत्नी की मौत के बाद मैंने दामिनी में उसका अक्स देखा और तय किया अपनी बेटी के लिए वो सब कुछ करूंगा जो एक पिता का फ़र्ज होता है.’
कोई और नहीं था संभालने वाला
लिहाज़ा जब भी बबलू रिक्शा लेकर निकलते दामिनी को भी गले में लटका कर संग-संग रखते क्योंकि घर में कोई और नहीं था.
इस दौरान दो साल पहले वो घड़ी भी आई जब बबलू के ही एक दोस्त ने दामिनी का अपहरण कर लिया. उसकी नज़र दामिनी के नाम पर जमा हुए पैसे पर थी.
लेकिन पुलिस ने कुछ घंटो में ही दामिनी को उसके चंगुल से मुक्त करा लिया. सरकारी समिति के सदस्य डॉ भारद्वाज कहते हैं वे भरसक प्रयास करेंगे कि दामिनी को अच्छी शिक्षा मिले और वो पढ़ लिखकर समाज में एक मिसाल बने.
दामिनी के प्रति उमड़ी करुणा और दुलार ने सरहदों को छोटा कर दिया और दुनिया के कोने-कोने से लोगो ने सहायता की पेशकश की. न्यूयॉर्क में टैक्सी चलाने वाले एक भारतीय ने दामिनी के लिए झोली फैलाई और कुछ डॉलर धनराशि जुटाई.
उसके इस काम में पड़ोस के पाकिस्तानी टैक्सी चालक भी शामिल हुए.
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