कोलकाता: पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों पर घमसान का बिगुल फूंका जा चुका है. विभिन्न राजनीतिक दल व आला नेता चुनाव मैदान में उतर चुके हैं, लेकिन पूर्व वर्षो की तुलना में इस बार पश्चिम बंगाल में चौतरफा मुकाबला होने की संभावना है.
सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, वाममोरचा पार्टियां और भाजपा एक दूसरे के आमने-सामने है. इससे मुकाबला काफी रोमांचक हो गया है. तृणमूल कांग्रेस के लिए यह चुनाव अपना वर्चस्व बनाये रखने का चुनाव है. वहीं, वाम मोरचा के लिए करो या मरो का सवाल है. कांग्रेस के लिए अपने अस्तित्व बचाये रखने की लड़ाई है, तो भाजपा बंगाल से नयी शुरुआत करना चाहती है.
चतुष्कोणीय लड़ाई
पश्चिम बंगाल के चुनाव के इतिहास में यह पहला अवसर है, जब तृणमूल कांग्रेस अकेली चुनाव लड़ रही है. इसके पहले तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस व भाजपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था, लेकिन यह लोकसभा चुनाव तृणमूल कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस, भाजपा व वाम मोरचा सभी से तृणमूल का मुकाबला है, हालांकि 2011 के विधानसभा चुनाव में सफलता के बाद तृणमूल कांग्रेस पंचायत चुनाव व नगरपालिका चुनाव में भारी जीत हासिल की है. वहीं पूर्व सत्तारूढ़ दल वाम मोरचा को मुंह खाना पड़ा था. ममता बनर्जी एक साथ केंद्र की यूपीए सरकार व भाजपा पर हमला बोल रही है. इसके साथ ही वाम मोरचा पार्टियों पर भी निशाना बना रहीं हैं. राज्य की खस्ताहाल के लिए सुश्री बनर्जी केंद्र सरकार को दोषी करार देती हैं. इसके साथ ही पूर्व वाम मोरचा सरकार पर भी निशाना साध रही है. सुश्री बनर्जी वाम मोरचा के विरोध के साथ कांग्रेस व भाजपा के साथ समान दूरी बनाये रखने की वकालत कर रही है, लेकिन चुनाव के बाद ही असली तसवीर उभरेगी.
ममता के लिए चिंता
तृणमूल कांग्रेस के पास फिलहाल लोकसभा चुनाव में 19 सांसद हैं. तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस इस बार 30 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करेगी, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस की सीटें हालांकि बढ़ सकती हैं, लेकिन इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस में भीतरघात की आशंका भी है. कई लोकसभा सीटें जैसे उत्तर कोलकाता, दमदम, कृष्णनगर, बांकुड़ा, बोलपुर व मालदा उत्तर में तृणमूल का समीकरण बिगड़ सकता है. इसके साथ ही भाजपा के गोरखा जनमुक्ति मोरचा के साथ समझौता होने के कारण दाजिर्लिंग, अलीपुरद्वार और जलपाईगुड़ी आदि पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा. उत्तर कोलकाता में तृणमूल ने सुदीप बंद्योपाध्याय, कांग्रेस ने सोमेन मित्र, माकपा ने रूपा बागची व भाजपा ने राहुल सिन्हा को उम्मीदवार बनाया है. इससे उत्तर कोलकाता में कड़ा मुकाबला होने की संभावना है. दूसरी ओर, ममता के सामने दूसरी चुनौती अल्पसंख्यकों का पार्टी के प्रति बदला रवैया है. मुसलिम मतदाता ममता के कांग्रेस से रिश्ता तोड़ने से खुश नहीं हैं. उर्दू बोलने वाले मुसलिम मतदाता अगर हावड़ा जैसी सीट पर ममता के खिलाफ चले जाते हैं तो प्रसून बनर्जी जैसे नेताओं पर संकट आ सकता है, जो बहुत ही कम वोटों से उप चुनाव जीत पाये थे.
ग्रामीण इलाके तृणमूल की ताकत
लेकिन ऐसी बात नहीं है कि तृणमूल कांग्रेस के सामने केवल चुनौतियां ही हैं. राज्य के ग्रामीण इलाकों में तृणमूल का दबदबा अभी भी बरकरार है. मेदिनीपुर इलाके में शिशिर अधिकारी व शुभेंदु अधिकारी का अभी भी वर्चस्व कायम है. ग्रामीण इलाकों में राज्य सरकार की ओर से चलायी जा रही रोजगार की योजनाओं व अन्य योजनाओं का तृणमूल का लाभ मिलेगा. इसके साथ ही ममता का जादू अभी भी बरकरार है. निकाय व पंचायत चुनाव परिणाम इसके उदाहरण हैं.