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सोनू सरदार को सज़ा मिली पर फांसी नहीं होगी

पांच लोगों की हत्या के मामले में छत्तीसगढ़ के सोनू सरदार की फांसी की सज़ा सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति द्वारा बरकरार रखे जाने के बाद भी अब सोनू सरदार को फांसी नहीं होगी. दिल्ली उच्च न्यायालय में जस्टिस जीएस सिस्तानी और जस्टिस विनोद गोयल ने सोनू सरदार की फांसी की सज़ा को आजीवन कारावास में […]

पांच लोगों की हत्या के मामले में छत्तीसगढ़ के सोनू सरदार की फांसी की सज़ा सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति द्वारा बरकरार रखे जाने के बाद भी अब सोनू सरदार को फांसी नहीं होगी.

दिल्ली उच्च न्यायालय में जस्टिस जीएस सिस्तानी और जस्टिस विनोद गोयल ने सोनू सरदार की फांसी की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया है.

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सोनू सरदार पर आरोप था कि 26 नवंबर 2004 को उसने लूट की नीयत से अपने चार साथियों के साथ मिल कर कबाड़ का व्यवसाय करने वाले शमीम अख़्तर, उनकी पत्नी रूखसाना और दो छोटे बच्चों समेत पांच लोगों की हत्या कर दी थी.

इस मामले में 27 फरवरी 2008 को कोरिया के ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश ने सोनू सरदार समेत सभी आरोपियों को फांसी की सज़ा सुनाई.

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छोटी उम्र में किया अपराध

बाद में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2010 में एक दोषी के नाबालिग होने के कारण उसकी फांसी की सज़ा रद्द करते हुये उसे बाल सुधार गृह भेज दिया. लेकिन सोनू की फांसी की सज़ा को बरकरार रखा.

सुप्रीम कोर्ट ने भी फरवरी 2012 में सोनू की फांसी पर मुहर लगा दी. इसी तरह अप्रैल 2013 में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल और मई 2014 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी सोनू सरदार की दया याचिका खारिज कर दी.

24 मई 2014 को सोनू सरदार के वकील ने राष्ट्रपति को पत्र लिख कर अपराध के समय आरोपी सोनू सरदार की उम्र 23 साल मानते हुए याचिका खारिज करने का उल्लेख किया और कहा कि सोनू की उम्र वारदात के समय 18 साल 2 महीने थी.

इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका भी दायर की गई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2015 में यह याचिका खारिज कर दी.

इसके बाद रायपुर के सेंट्रल जेल में फांसी की तैयारी भी शुरू कर दी गई.

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लेकिन फांसी की तैयारी के बीच कानून की पढ़ाई करने वाले कुछ छात्रों और वकीलों ने रायपुर सेंट्रल जेल के अधीक्षक को 14 फरवरी 2015 को पत्र सौंपा कि सोनू सरदार की राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी अब तक लंबित है, इसलिए सोनू को फांसी देने की प्रक्रिया शुरु नहीं की जा सकती.

इसके दो दिन बाद 26 फरवरी 2015 को दिल्ली हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई. जिसमें दया याचिका की सुनवाई में देरी और सोनू को कथित रुप से गैरक़ानूनी तरीके से एकांत में जेल में रखे जाने को आधार बनाते हुए फांसी की सज़ा को आजीवन कारावास में तब्दील करने की मांग की गई थी.

इसी साल 9 मार्च को सुनवाई के बाद फ़ैसला सुरक्षित रखा गया था.

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बुधवार को इस मामले में 95 पृष्ठों में जस्टिस जीएस सिस्तानी और जस्टिस विनोद गोयल ने पुराने फ़ैसलों का हवाला देते हुए सोनू सरदार की फांसी की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया.

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