।। दक्षा वैदकर।।
आदित्य और नेहा की कुछ महीने पहले ही अरेंज मैरिज हुई. दोनों एक-दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे थे. इन कुछ महीनों के दौरान उनके बीच कई बार झगड़े हुए. नेहा की कोशिश रहती कि आदित्य उसके जैसा हो जाये. वह जो चीज पसंद करती है, वह भी उसे पसंद करे. झगड़े के दौरान वह हमेशा कहती ‘तुम बिलकुल भी मेरे जैसे नहीं हो.’
एक दिन नेहा ने बड़ी मेहनत से बैगन का भरता बनाया. आदित्य घर आया, तो सब्जी देख कर उसने कहा, ‘तुम्हें अच्छी तरह पता है कि मैं बैगन नहीं खाता हूं. फिर यह सब्जी क्यों बनायी? अब मैं कुछ और खा लूंगा. नेहा उसे मनाने लगी, ‘कम-से-कम एक बार चख कर तो देखो. सच में पसंद आयेगी तुम्हें.’ लेकिन आदित्य नहीं माना. उसने फ्रिज से दूसरी सब्जी निकाली और खा कर सो गया. नेहा रोने लगी, ‘तुम बिलकुल भी मेरे जैसे नहीं हो. हम बिलकुल मेल नहीं खाते. पता नहीं हमारी शादी क्यों हो गयी.’ आदित्य कुछ नहीं बोला. नेहा सुबकती रही और बातचीत बंद कर दी.
दो दिन बाद आदित्य करेले की सब्जी होटल से पैक करा लाया. उसने नेहा से कहा, ‘आज हम दोनों इसे ही खायेंगे.’ नेहा चिल्लाने लगी, ‘मैं यह बिल्कुल नहीं खा सकती. मुङो करेले से नफरत है.’ आदित्य अपनी बात पर अड़ा रहा. वह बोला, ‘होटल से लाया हूं. बहुत टेस्टी है. कम-से-कम खा कर तो देखो. अगर मुझसे प्यार करती हो, तो प्लीज खा लो.’ अब नेहा रोने लगी. आदित्य ने जवाब दिया, ‘उस दिन मैं भी ऐसे ही परेशान हुआ था, जब तुम जबरदस्ती बैगन की सब्जी खिला रही थी. सीधी-सी बात है. जिस तरह तुम्हें करेला पसंद नहीं है, ठीक वैसे ही मुङो बैगन पसंद नहीं है.’ आखिर जबरदस्ती सामनेवाले को अपने जैसा बनाने की कोशिश क्यों करना. दोनों में जो असमानता है, वही रिश्ते को खूबसूरत बनाती है. कल्पना कर के देखो कि अगर हम दोनों बिलकुल एक जैसे हो जायें, कुछ दिन तक तो यह ठीक लगेगा, फिर जिंदगी बोरिंग लगने लगेगी. अलग-अलग स्वभाव होने से हमें नयी चीजें जानने का मौका मिलता है. यही तो जिंदगी में रोमांच लाता है.
बात पते की..
सामनेवाले को अपने जैसा बनाने के लिए दबाव न डालें. उन्हें वैसे ही अपनायें, जैसे वे हैं. एक-दूसरे की पसंद को सम्मान देंगे, तो खुश रहेंगे.
स्वभाव में अंतर छोटी-मोटी बहस उत्पन्न करता है. यह बहस अच्छी होती है, जो आपका ज्ञान बढ़ाती है. एडजस्ट करने के लिए प्रेरित करती है.