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पता नहीं ये सज़ा है या इनाम, पर मुझे स्वीकार है: श्रेष्ठा सिंह

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से उलझने की ‘सज़ा’ एक और पुलिस अधिकारी को मिली है. बुलंदशहर में डिप्टी एसपी पद पर तैनात युवा अधिकारी श्रेष्ठा सिंह का नाम भी उन पुलिस अधिकारियों की सूची में शामिल हो गया है जो 19 मार्च के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के […]

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से उलझने की ‘सज़ा’ एक और पुलिस अधिकारी को मिली है.

बुलंदशहर में डिप्टी एसपी पद पर तैनात युवा अधिकारी श्रेष्ठा सिंह का नाम भी उन पुलिस अधिकारियों की सूची में शामिल हो गया है जो 19 मार्च के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद बीजेपी नेताओं से उलझ पड़े.

श्रेष्ठा ने पिछले दिनों ट्रैफ़िक नियम तोड़ने के आरोप में स्थानीय बीजेपी नेता का चालान कर दिया था और फिर पेशी पर कोर्ट में गए बीजेपी नेता और उनके समर्थकों ने पुलिस अधिकारी के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की, बहस की और सबक़ सिखाने जैसी धमकी दी थी.

क़रीब हफ़्ते भर बाद ये सबक़ सिखा दिया गया और श्रेष्ठा का तबादला बुलंदशहर से बहराइच कर दिया गया.

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उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने वैसे तो ‘ग्रह-दशाओं की अनुकूलतम स्थिति’ में शपथ ली और पूरे विधि-विधान के साथ ही सरकारी घर में भी प्रवेश किया, फिर भी राज्य की सत्ता उन्हें न जाने किस मुहूर्त में मिली कि जिस क़ानून व्यवस्था पर वो पिछली सरकार को पानी पी-पीकर कोसते थे, उसी क़ानून व्यवस्था की स्थिति ने उन्हें परेशान कर रखा है.

हालांकि इसके संकेत तभी मिल गए थे जब पार्टी के बड़े नेता मुख्यमंत्री पद के लिए उनका नाम तय कर रहे थे और पार्टी कार्यालय और लोकभवन के बाहर उनके समर्थक अपनी ‘ताक़त’ दिखा रहे थे.

अब वो ख़ुद मुख्यमंत्री हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं की ऐसी ‘हरकतें’ उन्हें शायद परेशानी में डाल रही हैं.

बीजेपी नेता के चालान के बदले तबादला?

राज्य में एक ओर जहां क़ानून व्यवस्था की स्थिति पर लगातार सवाल उठ रहे हैं वहीं बीजेपी कार्यकर्ताओं की पुलिस से भिड़ंत की ख़बरें सरकार को कहीं ज़्यादा परेशानी में डाल रही हैं. लेकिन जानकारों का कहना है कि इन सबके बीच शोचनीय स्थिति ये है कि उलझने की सज़ा पुलिस वालों को भुगतनी पड़ रही है, पार्टी कार्यकर्ताओं को नहीं.

कभी मेरठ में बीजेपी कार्यकर्ता पुलिस वालों से उलझते हैं तो कभी सहारनपुर में. कभी कोई मंत्री आईपीएस या पीपीएस स्तर के अधिकारी को धमकाता है तो कभी सामान्य नेता भी ‘वर्दी उतरवाने’ तक की धमकी दे देता है.

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मेरठ में बीजेपी नेता संजय त्यागी बीच सड़क पर पुलिस अधिकारियों से इसलिए उलझ जाते हैं कि पुलिस वाले उनकी गाड़ी का हूटर उतरवा रहे थे तो सहारनपुर में स्थानीय सांसद के कथित समर्थक एसएसपी के सरकारी आवास पर ही हमला बोल देते हैं. दोनों ही मामलों में संबंधित पुलिस अधिकारियों का तबादला हो जाता है और बीजेपी नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई की ज़रूरत नहीं समझी जाती है.

ताज़ा घटना बुलंदशहर की डिप्टी एसपी श्रेष्ठा सिंह का है जो प्रशिक्षण पूरा करने के बाद अपनी पहली पोस्टिंग पर थीं. क़रीब एक हफ़्ते पहले बीजेपी के कुछ नेताओं का उन्होंने ट्रैफ़िक नियम तोड़ने के आरोप में चालान काट दिया था और फिर बीजेपी नेताओं की उनसे नाराज़गी का वीडियो वायरल हो गया था.

वीडियो में श्रेष्ठा सिंह ये कहती हुई दिख रही हैं कि वो क़ानून तोड़ने वाले किसी व्यक्ति का लिहाज़ नहीं करेंगी. यदि किसी को क़ानून तोड़ना हो तो वो इसकी अनुमति मुख्यमंत्री से लेकर आए. घटना के आठ दिन बाद शनिवार को उनका तबादला कर दिया गया.

हालांकि तबादला सूची में दो सौ से भी ज़्यादा अधिकारियों के नाम हैं, लेकिन महज़ आठ महीने की सेवा में ही इस अधिकारी के तबादले को उसी घटना से जोड़कर देखा जा रहा है. ख़ुद महिला पुलिस अधिकारी का कहना है कि हो सकता है कि उनके तबादले के पीछे यही वजह हो.

बीबीसी से बातचीत में श्रेष्ठा सिंह ने कहा, "बताया तो इसे रूटीन ट्रांसफ़र जा रहा है, लेकिन मेरे बैच के किसी और अधिकारी का ट्रांसफ़र नहीं हुआ है और क्राइटीरिया ये था कि दो साल से ऊपर वालों का ही ट्रांसफ़र किया जाएगा. मुझे तो यहां सिर्फ़ आठ महीने ही हुए थे."

राज्य में नई सरकार बनने के बाद इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी हैं जबकि बीजेपी नेता पुलिस वालों से उलझ चुके हैं और सज़ा पुलिस वालों को मिली है.

पुलिस के आला अधिकारी आधिकारिक रूप से इस मामले में कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं जबकि सरकार का कहना है कि ये रूटीन ट्रांसफ़र है, किसी को लक्ष्य बनाकर नहीं किया गया है.

सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री श्रीकांत शर्मा अभी भी यही कह रहे हैं कि क़ानून तोड़ने की इजाज़त किसी को नहीं दी जाएगी.

बहरहाल, युवा अधिकारी का कहना है कि ये ट्रांसफ़र चाहे सज़ा हो या फिर इनाम, उन्हें स्वीकार है.

लेकिन जानकारों का कहना है कि क़ानून की हिफ़ाज़त के लिए तैनात पुलिसकर्मियों को अगर सरकार क़ानून तोड़ने वालों की मर्ज़ी से सज़ा देती रही तो ये स्थिति क़ानून, पुलिस और सरकार तीनों के लिए घातक हो सकती है.

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