आडवाणी को मोदी से ज्यादा तरजीह
पांच अप्रैल को गांधीनगर में आडवाणी के साथ होंगे मोदी अहमदाबाद के प्रमुख चौक-चौराहों और सड़कों पर अनूठा नजारा दिख रहा है. गुजरात भाजपा ने सैकड़ों बड़े-बड़े रंगीन होर्डिग और बैनर लगाये हैं. खास बात यह है कि इन सबमें गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के मुकाबले आडवाणी […]
पांच अप्रैल को गांधीनगर में आडवाणी के साथ होंगे मोदी
अहमदाबाद के प्रमुख चौक-चौराहों और सड़कों पर अनूठा नजारा दिख रहा है. गुजरात भाजपा ने सैकड़ों बड़े-बड़े रंगीन होर्डिग और बैनर लगाये हैं. खास बात यह है कि इन सबमें गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के मुकाबले आडवाणी को ज्यादा तरजीह दी गयी है. किसी होर्डिग में बड़ी तसवीरवाले आडवाणी के आजू-बाजू अपेक्षाकृत छोटे आकार में मोदी या प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आरसी फल्दू नजर आ रहे हैं, तो किसी में एक तरफ आडवाणी की बड़ी और दूसरी तरफ मोदी-फल्दू की छोटी तसवीर है.
इस तरह के होर्डिग्स या पोस्टर का टंगना सामान्य नहीं कहा जा सकता. खासतौर पर तब, जब पिछले कुछ वर्षो में भाजपा की हर प्रचार सामग्री में आडवाणी या वाजपेयी की तुलना में मोदी को ज्यादा प्रमुखता दी गयी हो. इसकी शुरुआत वर्ष 2007 गुजरात विधानसभा चुनावों से हुई थी. 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी गुजरात में यही दिखा था. भले ही वर्ष 2009 में आडवाणी भाजपा के पीएम उम्मीदवार थे, प्रचार सामग्री में आडवाणी से ज्यादा नहीं, तो बराबरी की जगह तो मोदी को मिली ही थी. 2009 आम चुनावों के बाद ही पार्टी में आडवाणी के मुकाबले मोदी का कद बढ़ना शुरू हो गया था और 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों के परिणाम ने उस पर अंतिम मुहर लगा दी. यही नहीं, भाजपा की राज्य इकाई के मुख्यालय से लेकर तमाम सियासी कार्यक्रमों में मोदी को प्रमुखता देना रूटीन जैसा रहा है. कई बार तो पोस्टर और होर्डिग पर अकेले मोदी नजर आये. यहां तक कि भाजपा के मौजूदा प्रचार अभियान के केंद्र में भी मोदी ही हैं. ऐसे में गांधीनगर में आडवाणी को तरजीह देने का क्या मतलब!
ये कहा जा सकता है कि गांधीनगर आडवाणी की अपनी लोकसभा सीट है. इसलिए यहां की प्रचार सामग्री में उन्हें मोदी और फल्दू के मुकाबले ज्यादा प्रमुखता दी गयी है. लेकिन, अगर पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम को देखें, तो इसकी वजह समझ में आयेगी. पिछले साल आडवाणी के विरोध के बावजूद पार्टी ने पहले गोवा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मोदी को प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया, तो उसके कुछ महीने बाद औपचारिक तौर पर पार्टी का पीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया. दोनों मौकों पर आडवाणी ने पार्टी के इस कदम का खुल कर विरोध किया और बाद में पार्टी का फैसले कबूल करने को मजबूर हुए.
ऐसे में 2014 लोकसभा चुनावों के लिए जब अपनी लोकसभा सीट चुनने की बारी आयी, तो आडवाणी ने गांधीनगर की जगह भोपाल से लड़ने का मन बनाया. उनके करीबी सूत्रों ने इस बात को जोर-शोर से आगे भी किया. पार्टी के अंदर भी कई दिनों तक ऊहापोह की स्थिति रही. आखिरकार पार्टी के दबाव में आडवाणी को गांधीनगर से ही चुनाव लड़ने को राजी होना पड़ा, जहां से वे 1991, 1998, 1999, 2004 और 2009 में जीत चुके हैं.
दरअसल, आडवाणी कैंप की सोच थी कि शायद इस बार गांधीनगर में गुजरात भाजपा का सहयोग उस कदर न मिले, जैसा पहले आडवाणी को मिलता रहा है. इसी भय से आडवाणी के भोपाल जाने की बात थी, जहां उन्हें पूरी बैकिंग देने के लिए शिवराज सिंह चौहान मौजूद थे.
लेकिन, जब पार्टी के दबाव पर आडवाणी गांधीनगर से चुनाव लड़ने को तैयार हो गये, तो मोदी समर्थक नेता या भाजपा की गुजरात ईकाई उन्हें खुश करने में जुट गयी. इसका संकेत तभी मिल गया, जब चार दिन पहले आडवाणी की बेटी प्रतिभा के साथ मोदी की करीबी और राजस्व मंत्री आनंदीबेन पटेल गांधीनगर लोकसभा सीट के अंदर आनेवाले अहमदाबाद के इलाकों में आडवाणी के लिए प्रचार करती नजर आयीं.
गांधीनगर लोकसभा क्षेत्र गांधीनगर जिले के कुछ हिस्सों और अहमदाबाद जिले के कुछ हिस्सों को मिला कर बना है. इस क्षेत्र का बड़ा हिस्सा अहमदाबाद शहर का है, जहां की घाटलोड़िया सीट से आनंदीबेन विधायक हैं, तो नाराणपुरा सीट से मोदी के एक और विश्वस्त सहयोगी और उत्तर प्रदेश के प्रभारी महामंत्री अमित शाह. शाह भी उत्तर प्रदेश के अपने व्यस्त कार्यक्र म और बड़ी जिम्मेदारी से समय निकाल कर दो दिन पहले अहमदाबाद में आडवाणी के लिए प्रचार करते नजर आये. पिछले चुनावों में आडवाणी के प्रचार अभियान की कमान अमित शाह ही संभालते थे. खुद मोदी भी आडवाणी के साथ नजर आनेवाले हैं पांच अप्रैल को, जब आडवाणी अपना परचा भरने गांधीनगर आयेंगे. भाजपा कार्यकर्ता और स्थानीय नेता सोसाइटी दर सोसाइटी आडवाणी का प्रचार करने में
लग गये हैं. बिना मोदी के इशारे यह संभव नहीं था.
इन सबके जरिये मोदी न सिर्फ आडवाणी, बल्कि अपनी पार्टी और देश को संदेश देना चाहते हैं. अपने गुरु और एक समय के संकटमोचक आडवाणी को काटने या निबटाने के जो आरोप उन पर लगते रहे हैं, वे उसके उलट तसवीर पेश करना चाहते हैं. होर्डिग्स में यही कोशिश नजर आ रही है, जिसमें मोदी ने आडवाणी को तरजीह देते हुए अपने को बौना दिखाना मंजूर कर लिया है, कम से कम गांधीनगर लोकसभा क्षेत्र में.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
ब्रजेश कुमार सिंह
संपादक, गुजरात, एबीपी न्यूज