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14 साल सज़ा काटने के बाद पता चला नाबालिग होने का

निर्भया जैसे जघन्य कांड के एक अभियुक्त को केवल 3 साल तक सुधार गृह में रखने के बाद इसलिए छोड़ दिया गया कि घटना के समय उनकी उम्र 18 साल से कम थी. उसी देश में हत्या के मामले का अभियुक्त एक दूसरा नौजवान 14 सालों से जेल में बंद है क्योंकि पुलिस ने यह […]

निर्भया जैसे जघन्य कांड के एक अभियुक्त को केवल 3 साल तक सुधार गृह में रखने के बाद इसलिए छोड़ दिया गया कि घटना के समय उनकी उम्र 18 साल से कम थी.

उसी देश में हत्या के मामले का अभियुक्त एक दूसरा नौजवान 14 सालों से जेल में बंद है क्योंकि पुलिस ने यह पता करने की जहमत नहीं उठाई कि घटना के समय उसकी उम्र 18 साल से कम थी.

नयागढ़ ज़िले के भूतडीही गांव के बुलु बिश्वाल की उम्र 17 साल और तीन महीने थी जब स्थानीय पुलिस ने उन्हें 20 जुलाई, 2003 में हुए हत्या के एक मामले में पांच अन्य आरोपियों के साथ गिरफ्तार कर लिया.

यह बात अभी स्पष्ट नहीं है कि पुलिस ने क्यों अपने रिकॉर्ड में बुलु की उम्र 22 साल दर्ज़ की.

गौरतलब है कि पुलिस ने बुलु के बड़े भाई टीटू, जो इस मामले में आरोपी था, की भी उम्र 22 साल ही लिखा. न बुलु न उसके परिवार को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के बारे में पता था और न ही उसके वकील ने इस बारे में पड़ताल करने की कोई कोशिश की.

नयागढ़ सत्र न्यायलय में मामले की सुनवाई हुई और अदालत ने बुलु सहित सभी छह अभियुक्तों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई. तब से लेकर अब तक बुलु रणपुर जेल में बंद है.

कैसे आया मामला सामने?

15 जुलाई, 2017 को नयागढ़ ज़िला जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड का एक तीन सदस्यीय दल रणपुर जेल के दौरे पर था जब बुलु के साथ हुए अन्याय के बारे में पता चला.

दरअसल बुलु को भी उसके साथ हुई नाइंसाफी के बारे में 1 जुलाई, 2017 को ही पता चला जब उन्होंने जेल के अंदर टीवी पर एक रिपोर्ट देखी जिसमें इसी तरह के एक अन्य मामले में बनिता सेठी नाम की एक लड़की की दास्तान सुनाई गयी थी.

15 जुलाई को जब जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सदस्य रणपुर जेल गए तब बुलु ने उन्हें बताया कि हत्यकांड के दौरान उसकी उम्र 17 साल और तीन महीने थी.

बीबीसी के साथ बातचीत में बोर्ड के सदस्य स्वदेश मिश्र ने कहा, "बुलु से यह जानकारी मिलने के बाद हमने उस स्कूल में जाकर पड़ताल की जहाँ वह पढ़ता था. रिकॉर्ड देखने के बाद जब हमें तसल्ली हो गयी कि घटना के समय बुलु की उम्र वाकई 18 साल से कम थी तो हमने 21 जुलाई को सारे रिकॉर्ड के साथ हाई कोर्ट में एक अर्जी दायर की. हम उम्मीद करते हैं कि जल्दी ही उसे रिहा कर दिया जाएगा."

उजड़ गई दुनिया

2003 में हुए इस हत्यकांड के बाद बुलु की माँ प्रभाती की दुनिया ही उजड़ गई. उनके दो बेटों को पुलिस गिरफ़्तार कर ले गई और मामले में अभियुक्त तीसरा बेटा नकुल फरार हो गया. बेटों के गम में घुट-घुट कर बुलु के पिता ने 2007 में दम तोड़ दिया. अब घर में केवल बुलु की माँ ही रह गयी थी.

प्रभाती ने बीबीसी से कहा, "मेरे ऊपर मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. तीन-तीन जवान बेटे अलग हो गए. मेरे पति भी कुछ दिन बाद गुज़र गए. जो कुछ भी हमारे पास था सब केस लड़ने में ख़त्म हो गया. मकान ढह गया. अब मैं अपना घर छोड़कर अपने देवर के घर रहती हूँ. वो लोग जो भी रूखी सुखी देते हैं, वही खाकर गुज़ारा करती हूँ."

प्रभाती ने बताया कि किशोरों के लिए कानून के बारे में उन्हें न पुलिस ने बताया न उनके वकील ने. "हम तो पढ़े लिखे हैं नहीं. हमें कैसे पता चलता कि ऐसा कानून है और मेरे बेटे के साथ नाइंसाफी हुई है? "

हालाँकि उन्हें इस बारे में पता चलने के बाद अब वे बेसब्री से अपने बेटे के घर वापस आने का इंतज़ार कर रही हैं.

गलती किसकी?

बुलु के साथ हुए अन्याय के लिए आख़िर किसे दोषी ठहराया जाए? इस सवाल के जवाब में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सदस्य स्वदेश मिश्र कहते हैं, "ज़ाहिर है सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी पुलिस की है. उन्हें बुलु की उम्र के उम्र के बारे में जांच करनी चाहिए थी, जो उन्होंने नहीं की. वैसे ज़िम्मेदारी उसके वकील की भी है क्योंकि उन्होंने भी अपना काम ठीक से नहीं किया."

बुलु ही नहीं, बीते दिनों ओडिशा में ऐसे कई मामले सामने आए हैं. बुलु से पहले बनिता का माला प्रकाश में आया था. कुछ साल पहले बौद्ध ज़िले में भी एक किशोर को आठ साल जेल में गुज़ारने के बाद मुक्ति मिली थी.

मिश्र कहते हैं कि सही ढंग से पड़ताल की जाए तो ऐसे और भी कई किस्से सामने आ सकते हैं जिसमें किशोरों की सुनवाई जुवेनाइल कोर्ट के बजाए रेगुलर अदालत में हुई और उन्हें वयस्कों के लिए बने कानून के तहत सज़ा सुनाई गई."

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