इसलामाबाद : पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने शुक्रवार को उस वक्त इस्तीफा दे दिया, जब देश के सुप्रीम कोर्ट ने ‘पनामागेट’ केस में उन्हें पद के अयोग्य ठहरा दिया. साथ ही उनके व उनकी संतानों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करने का आदेश राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (नैब) को दिया. ऐसा तीसरी बार है, जब 67 वर्षीय शरीफ का प्रधानमंत्री का कार्यकाल बीच में ही खत्म हो गया. फैसले के बाद शरीफ ने पद से इस्तीफा दे दिया.
नवाज शरीफ के जाने से चीन की बढ़ सकती है मुश्किलें
इसी बीच यह खबर सामने आ रही है कि नवाज शरीफ की बेटी मरियम की एक गलती के कारण ही उन्हें अपने पीएम पद से हाथ धोना पड़ा. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने पनामा मामले में जांच के लिए जेआइटी गठित की थी. अदालत की तरफ से गठित जेआइटी को नवाज की बेटी मरियम ने गुमराह करने का प्रयास किया था. मरियम ने पनामा गेट से जुड़े जो दस्तावेज भेजे थे वो कैलिबरी फॉन्ट में टाइप थे और साल 2006 के थे. जबकि कैलिबरी फॉन्ट 31 जनवरी 2007 से पहले व्यावसायिक प्रयोग के लिए उपलब्ध नहीं था.
यही गलती नवाज शरीफ के लिए आजीवन मुसीबत की वजह बन गयी.
नवाज शरीफ : ऐसे प्रधानमंत्री जो कभी पूरा नहीं कर पाये अपना कार्यकाल
लंदन में शरीफ परिवार की संपत्ति
यह मामला 1990 के दशक में उस वक्त धन शोधन के जरिये लंदन में संपत्तियां खरीदने से जुड़ा है, जब शरीफ दो बार प्रधानमंत्री बने थे. शरीफ परिवार की इन्हीं संपत्तियों का ही खुलासा पनामा पेपर्स लीक मामले से हुआ. इन संपत्तियों के पीछे विदेश में बनी कंपनियों का धन लगा हुआ है. इन कंपनियों का स्वामित्व शरीफ की संतानों के पास है. इन संपत्तियों में लंदन स्थित चार महंगे फ्लैट शामिल हैं. टैक्स चोरों की पनाहगाह के तौर पर पहचान रखनेवाले ब्रिटिश वजर्नि आईलैंड में कंपनियां खोलने का आरोप है.
पंजाब के शेर का तीसरा कार्यकाल भी अधूरा
‘पंजाब का शेर ‘ कहे जाने वाले शरीफ रिकॉर्ड तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, लेकिन हर बार किसी न किसी वजह से कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये. पहले राष्ट्रपति कार्यालय के जरिये,फिर सेना और अब न्यायपालिका ने उनको सत्ता से बेदखल किया है. इस्पात कारोबारी शरीफ पहली बार 1990 से 1993 के बीच प्रधानमंत्री रहे. दूसरा कार्यकाल 1997 में शुरू हुआ, जो 1999 में तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्फ के तख्तापलट किये जाने के बाद खत्म हो गया. तीसरा कार्यकाल जून, 2013 में शुरू हुआ था. शरीफ सैन्य शासक जियाउल हक के समय वह पहले वित्त मंत्री बने और फिर पंजाब के मुख्यमंत्री बने.