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अमेरिका की चीन को खरी-खरी, देश में शांति के लिए हमारी, भारत व जापान की साझेदारी जरूरी है

वाशिंगटन : अमेरिका के एक शीर्ष कमांडर ने मालाबार नौसैन्य अभ्यास समेत बहुपक्षीय अभ्यासों पर चीन की ओर से जताई गयी चिंताओं को ‘दुर्भाग्यपूर्ण ‘ करार देते हुए कहा है कि अमेरिका, भारत और जापान के बीच बढती साझेदारी हिंद-एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति बनाकर रखने के लिए है. यूएस पैसिफिक कमांड के कमांडर एडमिरल […]

वाशिंगटन : अमेरिका के एक शीर्ष कमांडर ने मालाबार नौसैन्य अभ्यास समेत बहुपक्षीय अभ्यासों पर चीन की ओर से जताई गयी चिंताओं को ‘दुर्भाग्यपूर्ण ‘ करार देते हुए कहा है कि अमेरिका, भारत और जापान के बीच बढती साझेदारी हिंद-एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति बनाकर रखने के लिए है.

यूएस पैसिफिक कमांड के कमांडर एडमिरल हैरी हैरिस ने कहा, ‘ ‘मेरा कहना यह है कि साझेदारियां अपने गुणों के दम पर होती हैं. इन चार महान लोकतंत्रों : अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत : के बीच सैन्य सहयोग गहराने के मूल में साझा मूल्य और साझा चिंताएं हैं. ‘ ‘ उन्होंने कहा कि मालाबार में, अमेरिका, जापान और भारत ने पूरे हिंद-एशिया-प्रशांत में शांति बनाए रखने के लिए अपनी साझेदारी को बढाना जारी रखा.

हैरिस ने कहा, ‘ ‘तालिसमान साबेर में जापान और अमेरिका ने हमारे ऑस्ट्रेलियाई योद्धाओं के साथ मिलकर अभ्यास किया। ‘ ‘ उन्होंने बहुपक्षीय अभ्यासों पर चीन की आपत्तियों की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘ ‘दुर्भाग्यवश, कुछ ऐसे लोग हैं जो अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच बढते सहयोगी संबंध के उद्देश्यों पर सवाल उठा रहे हैं. ‘ ‘ भारत, जापान और अमेरिका ने हिंद महासागर में चीन की बढती आक्रामकता के बीच, पिछले साल मालाबार नौसैन्य अभ्यास आयोजित किया था.

उन्होंने कहा, ‘ ‘मेरे हिसाब से चीन, अमेरिका और जापान के लिए एक रणनीतिक प्रतियोगी है. ‘ ‘ उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि वह चीन के साथ असहमति वाले क्षेत्रों का असर उन क्षेत्रों पर नहीं पढने दे सकते, जिनमें उसके साथ सहमति बनी हुई है. ‘ ‘ उन्होंने कहा, ‘ ‘अमेरिका समेत सभी हिंद-एशिया-प्रशांत देशों को समझदार शक्ति का प्रयोग करना चाहिए और चीन के साथ संभव सहयोग करने की कोशिश करनी चाहिए. ‘ ‘ उन्होंने कहा, ‘ ‘पीएसीओएम के लिए मेरा लक्ष्य चीन को यह समझाना है कि सबसे अच्छा भविष्य शांतिपूर्ण सहयोग और मौजूदा नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में सार्थक भागीदारी से ही संभव है. ‘ ‘

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