पहले से अधिक जागरूक हैं वोटर

संजय जगह-जगह बैनर-पोस्टर, लाउडस्पीकर से प्रचार व कई बार बेवजह की गहमा-गहमी, ये सब अब बीते दिनों की बात हो चली है. बेशक इसका श्रेय चुनाव आयोग को जाता है. आयोग के इस नियमन का प्रभाव लोहरदगा संसदीय क्षेत्र पर भी साफ है. यहां एक और बात स्पष्ट है कि मतदाता अब पहले से अधिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 3, 2014 12:21 PM

संजय

जगह-जगह बैनर-पोस्टर, लाउडस्पीकर से प्रचार व कई बार बेवजह की गहमा-गहमी, ये सब अब बीते दिनों की बात हो चली है. बेशक इसका श्रेय चुनाव आयोग को जाता है. आयोग के इस नियमन का प्रभाव लोहरदगा संसदीय क्षेत्र पर भी साफ है. यहां एक और बात स्पष्ट है कि मतदाता अब पहले से अधिक जागरूक व समझदार हुए हैं.

गुमला में कांग्रेस के एक कार्यक्रम में आये कई लोगों को सुनने के बाद यही धारणा बनती है. टोटो के सुदीम (70 वर्ष) कहते हैं कि सबका चाल देखना है. जीतने वाले प्रत्याशी वोट देंगे. वहीं गोडमोकोन टोली की 80 वर्षीय लुहरी देवी वोट जरूर देंगी, पर वह प्रत्याशियों का चुनाव चिह्न् भी नहीं जानती. वह कहती हैं जेके कहबैं उके वोट देब. मुरगू के मनारीम साहू की भी यही सोच है. जो निकलेगा, वोट उसी को देंगे. वहीं मनीराम ने कहा कि कुछ बोलना बेकार है. नेता लोग बोलते बहुत हैं, करते कुछ नहीं. गुमला जनजातीय बहुत जिला है. यहां चाय का चलन कम है. गुमला के चुनावी सभा स्थल पर चना, गुलगुला, फल व दूसरी चीजें तो थीं, लेकिन न चाय थी और न ही चाय पर चर्चा की गुंजाइश. गुमला सदर के लोगों के लिए रेलवे लाइन व रिंग रोड मुद्दा है.

दरअसल लोहरदगा संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं में भले ही अंदरूनी उत्साह हो, लेकिन वह छलकता नजर नहीं आता. वजह है विकास के नाम पर मतदाताओं का छला जाना. लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र के लोग कहते हैं कि यहां बॉक्साइट तो है, लेकिन कल-कारखाने व रोजगार के दूसरे साधन नहीं. पलायन बहुत अधिक है. इस इलाके से कितने लोग पलायन करते हैं, इसका स्पष्ट आंकड़ा तो किसी के पास नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार लोहरदगा से करीब 35 फीसदी आबादी का पलायन होता है.

ईंट भट्ठों में काम करने उत्तर प्रदेश व अन्य दूसरे राज्य जाने वाले इस क्षेत्र के लोगों के लिए केरल नया गंतव्य है. वहां केला व मसाला बगानों में मजदूरी करने लोग जा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर आंध्र प्रदेश के केएस राव लोहरदगा के पास करीब 50 एकड़ जमीन पर केले की खेती कर रहे हैं. यहां रोबोस्ता केला की खेती होती है. बुरहुबड़ाटपुर के ईश्वर भगत, संदीप उरांव, मंदरा उरांव व विनोद उरांव सहित अन्य ग्रामीणों ने अभी सोचा नहीं है कि वोट किसे देंगे. क्यों? क्योंकि वोट देने पर भी उनकी मुश्किलें कम नहीं हो रही है. इनकी शिकायत है कि पास के तेतरागढ़ा में एक चेक डैम गत 25 वर्षो में भी पूरा नहीं हुआ.

मनरेगा के तहत बन रहे कुएं में कार्यरत इन ग्रामीणों ने कहा कि पानी रोकने की व्यवस्था हमारे लिए सबसे बड़ा मुद्दा है. इसी गांव के रामप्रसाद उरांव, जगदीश उरांव व बबलू उरांव ने बताया कि उनके गांव में वोट से पहले आम सभा होती है. इसमें तय होता है कि वोट किसे देना है. बुरहुबड़ाटपुर व इसके टोले विभिन्न टोलों में करीब 700 घर हैं. यहां से दो सौ से अधिक लोग अब तक पलायन कर चुके हैं. गांव वाले बताते हैं कि गत दो वर्ष के दौरान काम करने बाहर गये लोगों में से तीन-चार लोगों की मौत हो गयी है. खेती होती, तो यह नहीं होता. दरअसल पानी सिर्फ इसी गांव का नहीं, बल्कि इलाके का सबसे बड़ा मुद्दा है.

Next Article

Exit mobile version