14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

क्या ”हैरी” की तरह असल गाइड को भी प्रेम होता है

बड़े पर्दे पर जहां फ़िल्म ‘राजा हिन्दुस्तानी’ में रईस बनी करिश्मा कपूर अपनी दौलत को छोड़ आमिर ख़ान के टूर गाइड अवतार से शादी कर लेती हैं तो वहीं शाहरुख ख़ान का किरदार फ़िल्म ‘जब हैरी मेट सेजल’ में अनुष्का के किरदार के साथ यूरोप की सैर करता है. लेकिन असल ज़िंदगी में एक गाइड […]

बड़े पर्दे पर जहां फ़िल्म ‘राजा हिन्दुस्तानी’ में रईस बनी करिश्मा कपूर अपनी दौलत को छोड़ आमिर ख़ान के टूर गाइड अवतार से शादी कर लेती हैं तो वहीं शाहरुख ख़ान का किरदार फ़िल्म ‘जब हैरी मेट सेजल’ में अनुष्का के किरदार के साथ यूरोप की सैर करता है. लेकिन असल ज़िंदगी में एक गाइड की हक़ीक़त इससे बहुत अलग होती है.

वाराणसी के पुलकित गुप्ता बताते हैं, "एक रिक्शे वाला और ऑटो वाला लोगों के लिए गाइड है . ये सोच की बात है क्योंकि लोगों को लगता है कि जो भी टूरिस्ट को घूमा रहा है, चाहे वो रिक्शे वाला या ऑटोवाला, वो गाइड है. पर ऐसा नहीं है. एक गाइड बनने के लिए आपको ट्रेनिंग लेनी पड़ती है. आपको सिखाया जाता है कि लोगों कैसे मिलना है, क्या पहनना है, कैसे हाथ मिलाना है और महिला टूरिस्ट से दूरी बनाके रखना है. इस कोर्स के लिए परीक्षा भी होती है. ये हमारा काम है और जो फ़िल्मों में दिखाया जाता है वो तो सच्चाई से बहुत अलग है."

बड़े पर्दे के गाइड

इस साल शाहरुख ख़ान ‘जब हैरी मेट सेजल’ में टूर गाइड बनके आए. आमिर ख़ान तो दो बार टूर गाइड बने – एक बार फ़िल्म ‘फ़ना’ में और 1996 की ‘राजा हिन्दुस्तानी’ में.

फ़िल्म ‘गाइड’ में देव आनंद का किरदार पहले वहीदा रहमान की ज़िंदगी बदलता है और फिर वहीदा अपने पति से अलग हो जाती हैं. फिर देव आनंद का किरदार ख़ुद एक स्वामी बन जाता है. इन सभी फ़िल्मों में गाइड कहानियाँ बताता है और खूब दिलचस्प बातें करता है और हीरोइनें प्रभावित होती हैं.

लेकिन असल ज़िंदगी का गाइड ऐसा नहीं होता. आगरा के गुरविंदर सिंह बताते हैं, "हम ज़्यादा कहानी नहीं बना सकते, हमें तथ्य की बात करनी होती है. इतिहास तो आप बदल नहीं सकते. क्या पता अगर कोई आपसे ज़्यादा जानता हो फिर? तो कहानी कम तथ्य ज़्यादा. फ़िल्मों में जो दिखाया जाता है, ऐसा मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ. ये हमारा काम है. हम प्रोफ़ेशनल हैं."

वहीं पुलकित मानते हैं ,"अगर आपको किसी चीज़ को दिलचस्प बनाना है तो कहानी बनानी होगी, लेकिन इतिहास से छेड़छाड़ नहीं चलती."

ज़्यादातर टूरिस्ट 30 की उम्र के पार

‘जब हैरी मेट सेजल’, ‘राजा हिन्दुस्तानी’, ‘गाइड’, ‘जब जब फूल खिले’, ‘फ़ना’, ‘शुद्ध देसी रोमांस’- इन सारी फ़िल्मों मे हीरोइन जवान होती है, और अक्सर अकेली होती है.

लेकिन असल ज़िंदगी में टूरिस्ट गाइड्स का साबका जिन सैलानियों से पड़ता है वो फ़िल्मी किरदारों की तरह नहीं होते.

जयपुर के महेंद्र सिंह कहते हैं, "ज़्यादातर टूरिस्ट बाहर के देशों के होते हैं जैसे अमरीका, ब्रिटेन, जापान और फ़्रांस के और वे 35 साल से ऊपर की उम्र के होते हैं. इसका कारण है पैसा और सुरक्षा. फ़िल्मों में तो बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है. मसाला होता है."

क्या जानना चाहते हैं टूरिस्ट

जयपुर के महेंद्र सिंह ने बताया, "उनको यहाँ आकर ‘कल्चरल शॉक’ लगता है. वो भारत में जाति व्यवस्था, समलैंगिकता के बारे में पूछते हैं. जब वो बाल विवाह के बारे में सुनते हैं तो उन्हें हैरानी होती है."

जो लोग टूरिस्ट गाइड बनते हैं, आखिर उसकी वजह क्या होती है. क्या इसे अपनाने वाले लोग यूं ही इस पेशे में आ जाते हैं या फिर उनकी प्रवृत्ति या पसंद या फिर उन्हें ऐसा कुछ करने का जुनून होता है.

पुलकित कहते हैं, "मुझे लोगों से मिलना पसंद है और ये मेरा शौक था. मैं अपने परिवार में अकेला गाइड हूँ."

पुलकित बताते हैं कि टूरिस्ट गाइड्स के बारे में फ़िल्में देखकर जो लोग राय बनाते हैं वो ग़लती कर देते हैं. दरअसल इस पेशे के लिए अलग तरह की ट्रेनिंग और पैशन की ज़रूरत होती है और अगर किसी में ये खूबियां हैं तो वो इसे बहुत एन्जॉय करता है.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें