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भारत में चुनाव : पाकिस्तान से मिलती-जुलती कहानी!

भारत में इन दिनों संसदीय चुनाव का बुखार चढ़ा हुआ है. चुनाव प्रचार की गहमागहमी के बीच सियासी पार्टियों और सियासतदानों द्वारा एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने का खेल भी जारी है, जो देश की राजनीति के लिए एक सामान्य सी बात लगने लगी है. इस खेल के बीच अगर हमें भारत का चुनावी परिदृश्य, पाकिस्तान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 6, 2014 11:59 AM

भारत में इन दिनों संसदीय चुनाव का बुखार चढ़ा हुआ है. चुनाव प्रचार की गहमागहमी के बीच सियासी पार्टियों और सियासतदानों द्वारा एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने का खेल भी जारी है, जो देश की राजनीति के लिए एक सामान्य सी बात लगने लगी है. इस खेल के बीच अगर हमें भारत का चुनावी परिदृश्य, पाकिस्तान से मिलता-जुलता नजर आये, तो क्या यह हैरत की बात नहीं है?

कहा जाता है कि दूसरों की कमियां गिनाना, अपनी गलतियों को देखने की तुलना में कहीं आसान होता है. भारत के राजनीतिक दल इस विचार को पूरे जोशो-खरोश से अपनाते देखे जा रहे हैं. लेकिन भारत की यह तसवीर हमें पिछले साल पाकिस्तान में हुए चुनावों की याद दिलाती है. ऐसा लगता है कि बाकी किसी मामले में हम एक हों या न हों, इन दोनों चुनावों में कई ऐसी चीजें हैं, जो दोनों देशों को एक जैसा दिखा रही हैं. भारत में इन दिनों जैसा सियासी माहौल है, 2013 के पाकिस्तान के आम चुनावों के दौरान भी कुछ ऐसा ही माहौल देखने को मिला था.

2013 के पाकिस्तान के आम चुनाव में प्रमुख रूप से तीन सियासी पार्टियां शिरकत कर रही थीं. या कहें कि पूरे देश और दुनिया की नजर इन पर ही टिकी थी. एक पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी), दूसरी, पाकिस्तान मुसलिम लीग- नवाज (पीएमएल-नवाज) और तीसरी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ). 2014 में भारत में हो रहे चुनावों में भागीदारी कर रही प्रमुख पार्टियां हैं- इंडियन नेशनल कांग्रेस (आइएनसी), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और हाल में उभरी आम आदमी पार्टी (एएपी). हां तो आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि इन दोनों देशों की राजनीतिक स्थिति में साम्य का सूत्र क्या है? आइए थोड़ा ध्यान से देखते हैं. एक साधारण नागरिक होने के नाते मुङो समानता के जो सूत्र नजर आते हैं, वह मैं आपसे साझा करती हूं.

कांग्रेस बनाम पीपीपी
कांग्रेस, पीपीपी की तरह ही अभी सत्ताधारी दल है. जिस तरह से पीपीपी की पाकिस्तान में सामान्य रूप से यह छवि बनी थी कि उसकी सरकार एक असफल सरकार रही, जो जनता की भलाई के लिए जरूरी काम करने में नाकाम रही, कुछ वैसी ही स्थिति भारत में कांग्रेस की बनती दिख रही है. सत्ताधारी दल होने के नाते जिस तरह से पाकिस्तान की अवाम में पीपीपी के प्रति नाराजगी दिख रही थी, चुनाव सर्वेक्षणों की मानें, तो कांग्रेस शासन के प्रति भी वहां की अवाम की राय कुछ वैसी नजर आती है. कांग्रेस और पीपीपी के बीच एक समानता यह भी है कि पीपीपी पर पाकिस्तान के सबसे बड़े आधुनिक राजनीतिक वंश का नियंत्रण है. वर्तमान में जुल्फिकार अली भुट्टो की तीसरी पीढ़ी के हाथों में पीपीपी की बागडोर है.

आम आदमी पार्टी बनाम पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की तरह ही भारत में आम आदमी पार्टी का उदय एक ऐसी पार्टी के तौर पर हुआ है, जिसका लक्ष्य देश की व्यवस्था में बदलाव लाना और देश से भ्रष्टाचार को भगाना है. हालांकि पीटीआइ,‘आप’ की तरह नयी पार्टी नहीं है. यह लंबे समय से पाकिस्तान की राजनीति से जुड़ी रही है. हां, यह जरूर है कि यह पहली बार हुआ है जब पीटीआइ को पाकिस्तान की अवाम ने इतना समर्थन दिया. जिस तरह से पीटीआइ ने अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया, उसी तरह से ‘आप’ की लोकप्रियता के पीछे भी सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका बतायी जाती है. वैसे अगर गौर से देखें, तो जिस तरह से पीटीआइ पाकिस्तान में इस बार बड़ी संख्या में सीटें जीतने में नाकाम रही, कुछ वैसा ही हाल आम आदमी पार्टी का हो सकता है. चुनाव सर्वेक्षणों का कहना है कि सुर्खियों में छाये रहने के बावजूद आम आदमी पार्टी ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब नहीं हो पायेगी. और उसका हश्र भी पीटीआइ की तरह होगा. यह अलग बात है कि आप के नेता अरविंद केजरीवाल 100 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं.

इन दोनों पार्टियों के बीच एक दूसरी बड़ी समानता शायद यह है कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष इमरान खान पर यहूदियों का एजेंट होने का आरोप लगाया गया था. कुछ उसी तर्ज पर एक राजनीतिक दल के नेता द्वारा अरविंद केजरीवाल पर आइएसआइ का एजेंट होने का आरोप लगाया गया है. समानता का तत्व यह है कि दोनों पर ही अपने देश के स्वाभाविक रूप से नजर आनेवाले दुश्मनों से जोड़ा गया है.

भाजपा बनाम पीएमएल-एन
चुनाव सर्वेक्षणों के नतीजों को अगर सच मानें, तो भारत में चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस की जगह लेती नजर आ रही है. भाजपा स्वाभाविक तौर पर और परंपरागत रूप से कांग्रेस की प्रमुख प्रति़द्वंद्वी रही है. ठीक उसी तरह से जिस तरह से पीएमएल-एन, पीपीपी की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी है. पाकिस्तान में भी चुनावों से पहले यह माना जा रहा था कि पीएमएल-एन चुनावों में विजयी रहेगी और पीपीपी सरकार को अपदस्थ कर देगी. दिलचस्प यह है कि भाजपा, ‘आप’और कांग्रेस की सांठगांठ का आरोप लगाती है. यह कुछ वैसा ही है जैसे पाकिस्तान में पाकिस्तान मुसलिम लीग ने तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी पर आरोप लगाया था कि वह पीपीपी का ही नया चेहरा है. हालांकि, जब बात अंतर की होगी तो यह तुलना संभवत: महत्वाकांक्षी या कपोल-कल्पना कही जायेगी, लेकिन अगर आप ऊपर-ऊपर से देखें तो ये समानताएं आपको चौंकायेगी जरूर. अब देखना यह है कि क्या भारत के चुनाव परिणाम भी इस समानता को मजबूत बनायेंगे? फिलहाल मैं भारत की जनता को ‘ऑल द बेस्ट’ कहना चाहूंगी.

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