देश एक नयी सरकार के चुनाव के लिए तैयार है. राजनीतिक दल और नेता मतदाताओं को लुभाने के लिए हर तरह के दावं आजमा रहे हैं. इस बार के चुनाव में बड़ी संख्या में नये मतदाता भाग लेंगे, जो तकनीक के युग में पले-बढ़े और अपेक्षाकृत जागरूक माने जा रहे हैं. मौजूदा चुनावी परिदृश्य के इर्द-गिर्द घुमड़ते ढेरों सवालों पर देश के प्रख्यात समाजशास्त्री प्रोफेसर शिव विस्वनाथन से बात की वसीम अकरम ने..
आम चुनाव की मुनादी हो चुकी है. इस बार कई तरह की लहर देखने को मिल रही है. यह भी कहा जा रहा है कि अब मतदाता काफी जागरूक है. इन सब के बीच आपके ऐतबार से कैसा रहेगा इस बार का आम चुनाव?
जिन लहरों की बात की जा रही है, उनमें एक तो कांग्रेस के पतन की लहर है, और ठीक इसी की पीठ पर भाजपा को बढ़त का एहसास कराते हुए दूसरी लहर मोदी की है. इन दोनों को मिला कर एक वाक्य में कहें, तो सत्ताविरोधी लहर चल रही है, लेकिन इसके साथ ही अन्य कई लहरें
भी अपने-अपने वजूद पर हिलोरें मार रही हैं. लोकतांत्रिक प्रणाली वाले देश में चुनावी मौसम में लहरों का बनना-बिगड़ना बदस्तूर लगा ही रहता है, लेकिन ये लहरें किसकी जीत-हार पर जाकर खत्म होती हैं, दरअसल वही चीज मायने रखती है. फिर भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि इस बार के आम चुनाव में कांग्रेस का पतन निश्चित हो चुका है, क्योंकि देश की जनता कांग्रेस से नाराज है. इस नाराजगी के कारण जनता एक तरफ भारतीय जनता पार्टी की तरफ जाती नजर आ रही है, तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की ओर. लेकिन यहां एक चीज और है- देश की जनता भाजपा की ओर नहीं, बल्कि मोदी (अब भाजपा एक पार्टी नहीं रह गयी है, बल्कि एक ‘मोदी सरकार’ है) की ओर है, क्योंकि भ्रष्टाचार के मामले में भाजपा और कांग्रेस दोनों लगभग 19-20 के आंकड़े पर खड़ी नजर आती हैं.
क्या आम आदमी पार्टी के एक राजनीतिक दल के रूप में उभरने को वर्षो से चली आ रही भारतीय राजनीति की जड़वत परंपराओं को तोड़ने के रूप में देखते हैं आप?
पूरी तरह से तो ऐसा नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी फिलहाल एक राजनीतिक पार्टी नहीं है, बल्कि वह एक राजनीतिक प्रयोग का नाम है. एक ऐसा प्रयोग जो राजनीति को एक दूसरे ही नजरिये से देखने की कोशिश करता है. आम तौर पर चुनाव के बाद जनता से दूर रहनेवाले तकरीबन सभी पार्टियों के नेताओं के मद्देनजर देखें, तो आम आदमी पार्टी का प्रयोग एक अच्छा प्रयोग माना जा सकता है और यह प्रयोग अभी पूरा नहीं हुआ, बल्कि यह अभी अपने शुरुआती दौर में है. मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था के बीच उसके पास एक बेहतरीन अवसर होने से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके लिए उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं में काफी परिपक्वता और अपने विचारों पर अडिग रहने की क्षमता का विकसित होना जरूरी है. ऐसे में परंपरागत राजनीति पर इसका कितना असर होगा, अभी कुछ कहना मुश्किल है.
ब्रिटेन की भारत में सहयोगी कंपनियों द्वारा भाजपा और कांग्रेस को मिले चंदे को दिल्ली हाइकोर्ट ने विदेशी फंड करार देते हुए चुनाव आयोग से कार्रवाई करने की बात कही है. क्या राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता बढ़ने से भ्रष्टाचार में कुछ कमी आयेगी?
बिल्कुल भी नहीं. विदेशी चंदे लेने को लेकर राजनीतिक दलों पर कार्रवाई तो बस एक छोटी सी कड़ी भर है. कोशिश तो यह होनी चाहिए कि देश के हर छोटे-बड़े संस्थानों में पारदर्शिता आये. जाहिर है कि अगर कोई संस्था या कंपनी किसी पार्टी को चंदा नहीं देगी, तो पार्टियों को दूसरे पारदर्शी स्नेत तलाशने की जरूरत पड़ेगी. सिस्टम में पारदर्शिता का अर्थ है कि वह हर चीज में हो. मसलन, यदि आप किसी शहर के नगर निगम को देखें, तो वह अपने शहर को पूरी तरह से कभी भी साफ नहीं कर पाता है, क्योंकि फिर गंदगी फैलनी शुरू हो जाती है. इसलिए जरूरी है कि शहर के सभी क्षेत्रों में सतत सफाई होती रही. इस बात का तात्पर्य यह है कि देश के सभी क्षेत्रों, चाहे वह आर्थिक हो या शैक्षिक, सामाजिक हो या राजनीतिक, पूंजीगत हो या संस्थागत, घरेलू हो या वर्गीय, सभी में एकसमान रूप से पारदर्शिता आयेगी, तभी देश का लोकतंत्र मजबूत होगा.
ऐसा कहा जा रहा है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार दूर करने के लिए चुनाव सुधार बहुत जरूरी हो गया है. आप क्या सुझाव देना चाहेंगे?
किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. चूंकि लोकतंत्र में पूरी राजसत्ता चुनाव में जनता की सकारात्मक-नकारात्मक भागीदारी पर ही निर्भर करता है, इसलिए चुनाव आयोग पर यह जिम्मेवारी होती है कि वह निष्पक्ष चुनाव को अंजाम दे. इसलिए चुनाव सुधार की बात की जाती है. लेकिन चुनाव सुधार इतना जल्दी नहीं आ सकता है. आजादी के बाद हुए पहले आम चुनाव से लेकर मौजूदा आम चुनाव तक की गतिविधियों को देखते हैं, तो इससे पता चलता है कि पूरी तरह से चुनाव सुधार में अभी तकरीबन 10-15 साल का समय लग सकता है. दरअसल, चुनाव सुधार की बात इसलिए की जाती है कि देश में और राज्यों में अपने-अपने समय पर पांच साल के बाद चुनाव होते हैं, जिसमें वोटों या टिकटों की खरीद-फरोख्त की संभावना ज्यादा रहती है. लेकिन मेरा मानना है कि सिर्फ चुनाव सुधार से राजनीतिक भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म नहीं हो सकता.
देश के पहले आम चुनाव में कुल जितने मतदाता थे, तकरीबन उतने ही इस आम चुनाव में नये मतदाता हैं, जो पहली बार वोट करेंगे. आपकी नजर में क्या उम्मीदें होंगी इन नये और जागरूक मतदाताओं से?
पिछले कुछ वर्षो से देश की जो हालत है और वर्तमान भारत जिस परिस्थिति से गुजर रहा है, उसे देखते हुए यह कहना उचित होगा कि इससे रूबरू होकर आज के युवा में काफी जागरूकता आयी है. उनके बीच जाकर आप उनसे बात करें तो आप देखेंगे कि इन युवा मतदाताओं ने यह मान लिया है कि अब उनकी भागीदारी के बिना और उनके दखल के बिना राजनीतिक शुद्धिकरण नहीं हो सकता. कुछ अरसा पहले तत्कालीन युवा राजनीतिक को गंदी मान कर नौकरी तलाशने में लगे रहते थे. लेकिन वर्तमान युवा अपने राजनीतिक दखल से रूढ़िवादी राजनीतिक परंपराओं को ध्वस्त करने के लिए आतुर है. इसकी मिसाल नवगठित पार्टियों में 90 प्रतिशत से ज्यादा युवा कार्यकर्ताओं का होना है. ऐसे में उनसे यही उम्मीद होगी कि वे अपने मताधिकार से देश में एक सकारात्मक बदलाव तो ला ही सकते हैं. आज का युवा यह मानता है कि मौजूदा राजनीति उनके बिना अधूरी है. ऐसे में उसकी यही कोशिश होगी कि वह इस अधूरेपन को पूरा करे और चुनाव में एक सकारात्मक भूमिका निभाये.
प्रभात खबर एक अभियान चला रहा है, ‘वोट करें देश गढ़ें’. आपके विचार से राष्ट्र की मजबूती के लिए वोट देते वक्त मतदाताओं को किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?
किसी भी क्षेत्र में व्यापक बदलाव के लिए हम अक्सर बड़ी-बड़ी बातों को अमल में लाने की ही बात करते हैं. लेकिन मेरा मानना है कि बहुत छोटी-छोटी बातों के अमल में लाने से ही बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान संभव है. आज के युवा ने इसे समझा है और यही वजह है कि जहां एक जमाने में वोट देने जाने से लोग हिचकते थे, आज वोटिंग परसेंटेज बढ़ा है. वास्तव में वोट देकर ही देश गढ़ा जा सकता है. पर किसे वोट देना है, यह तय करना भी जरूरी है. हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था चुनाव प्रणाली पर ही निर्भर है. इसमें वोट देना हमारा मूल अधिकार माना गया है. इसलिए मैं युवाओं से कहूंगा कि वे अपने मताधिकार का प्रयोग ऐसे करें, जिसमें किसी प्रकार की लालच का भाव न हो कि हम इसे वोट देंगे तो वह हमें यह चीज देगा. वोट देने का अधिकार का अर्थ है एक सच्ची और अच्छी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की मांग करने का अधिकार. बेहतर कल के लिए आज अपने मताधिकार का प्रयोग करें.