रघुवर दास झारखंड के ऐसे पहले राजनेता हैं, जो मुख्यमंत्री के तौर अपना 1000 वां दिन पूरा करेंगे. झारखंड की मौजूदा भाजपा सरकार आगामी 22 सितंबर को यह ‘रिकॉर्ड’ बनाएगी. इससे पहले कोई भी सरकार इतने लंबे वक्त तक सत्ता में नहीं रह सकी. इस हिसाब से रघुवर दास सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने का नया रिकॉर्ड बनाने जा रहे हैं.
साल 2000 में अलग राज्य बनने के बाद झारखंड में दस बार मुख्यमंत्री बदले गए. तीन दफ़ा राष्ट्रपति शासन भी लगाया गया. किसी एक कार्यकाल में सबसे कम समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड शिबू सोरेन के नाम है.
वह साल 2005 में 2 से 12 मार्च तक सिर्फ 10 दिनों के लिए सीएम बने. हालांकि बाद के दिनों में उन्हें दो और बार मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. जबकि, रघुवर दास से पहले अर्जुन मुंडा 860 दिन और बाबूलाल मरांडी 852 दिन तक लगातार मुख्यमंत्री रहे.
जश्न होगा 1000 दिन का
बहरहाल, अपने नए रिकॉर्ड का जश्न मनाने के लिए रघुवर दास की सरकार भव्य समारोह करने जा रही है. इसके लिए पूरे बारह दिनों तक चलने वाले कार्यक्रमों की रुपरेखा बनाई गई है. मुख्यमंत्री स्वयं इस पर नज़र रखे हुए हैं. इस संबंध में एक समीक्षा बैठक के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने दावा किया कि उनकी सरकार ने राज्य में विकास की गति को तेज़ किया है.
झारखंड में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता और राज्य के पूर्व कैबिनेट सचिव जेबी तुबिद ने कहा कि यह निश्चित तौर पर जश्न का मौका है. सरकार इस मौके पर एक हज़ार योजनाओं का शिलान्यास करने वाली है. एक हज़ार सत्यापित ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) पंचायतों की घोषणा की जाएगी. हम सरकार की 101 उपलब्धियों का पत्रक भी जारी करने वाले हैं.
बीजेपी का दावा, विकास दर दोगुनी हुई
बीबीसी से बातचीत में जेबी तुबिद ने कहा, "भाजपा जब 2014 में यहां सत्ता में आई थी, तब विकास दर करीब 4.6 फीसदी थी. आज यह 8.6 फीसदी हो चुकी है. यह नीति आयोग का आंकड़ा है. इसी तरह ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ के मामले में झारखंड देश में तीसरे नंबर पर है. हमारे यहां इसी आधार पर निवेश हो रहे हैं. ज़ाहिर है कि हम यह दावा करने की स्थिति में हैं कि रघुवर दास के नेतृत्व में झारखंड में तेज़ी से विकास हो रहा है. इसकी बड़ी वजह राजनीतिक स्थायित्व है."
मुख्य विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य सरकार और भाजपा के दावों से इत्तेफाक नहीं रखते.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "यह झूठी बातों का नगाड़ा पीटने वाली सरकार है. सीएजी की ताज़ा रिपोर्ट ने सरकार की पोल खोल कर रख दी है. इन हज़ार दिनों में सरकार ने कोई काम नहीं किया. 69 फीसदी एमओयू कैंसल हो गए. इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में कोई काम नहीं हुआ. लिंचिंग की सर्वाधिक घटनाएं झारखंड में हुईं. पुलिस फायरिंग में लोग मारे जा रहे हैं. सरकार आदिवासियों की ज़मीन छीनने में लगी है. सरकार भूमि अधिग्रहण का एक ऐसा विधेयक पास कराने की कोशिश में है, जिसे किसी भी कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकेगा. फिर किस बात का जश्न. दरअसल, इस सरकार का 1000 दिन पूरा ब्लैक आउट रहा है."
मुख्यमंत्री पर विपक्ष का आरोप
सुप्रियो भट्टाचार्य ने आरोप लगाते हुए कहा कि सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के विज्ञापन का काम एक ऐसी कंपनी को दे दिया गया, जो सिर्फ तीन महीने पहले इनकॉर्पोरेट हुई थी. कॉन्ट्रैक्ट देते वक्त उस कंपनी की पूंजी सिर्फ एक लाख रुपये थी. जबकि, उसे 14 करोड़ रुपये का काम दे दिया गया. इसके साथ ही उसे मोबिलाइजेशन मनी के नाम पर 9 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान कर दिया गया. उन्होंने कहा, ‘इसमें मुख्यमंत्री सीधे तौर पर शामिल हैं."
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ डॉ. विष्णु राजगढ़िया मानते हैं कि सरकार के स्थायित्व की बात बेमानी है. हां, यह ज़रूर है कि इस सरकार ने उम्मीदें जगाई हैं लेकिन इन उम्मीदों को पूरा करने के लिए फॉर्मेट बनना अभी बाकी है.
डॉ. विष्णु राजगढ़िया ने बीबीसी से कहा, "राजनीतिक तौर पर स्थायी इस सरकार के कार्यकाल में प्रशासनिक स्थिरता नहीं रही. कई ऐसे विभाग हैं, जिनमें इन हज़ार दिनों में कई-कई सचिव बदल दिए गए. अधिकारियों का बड़े पैमाने पर तबादला किया गया. डोमिसाइल विवाद के कारण नौकरियों के अवसर नहीं सृजित हुए. सचिवालय और दूसरे दफ्तरों में पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं. उनकी नियुक्ति भी नहीं की जा रही है. इस सरकार में सांप्रदायिक सद्भाव पर आघात हुआ. ऐसे में सरकार को सख़्ती से निपटना होगा. तभी जाकर आप सही में हज़ार दिन के कार्यकाल का जश्न मना पाएंगे."
अंदरखाने भी है चुनौती
बहरहाल, रघुवर दास की सरकार के हज़ार दिन के कार्यकाल के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा और सरकार के वरिष्ठ मंत्री सरयू राय समेत भाजपा के ही कई नेताओं ने सरकार के कुछ फैसलों पर गंभीर आपत्ति ज़ाहिर की.
इस कारण सरकार को छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) में संशोधन का विधेयक वापस लेना पड़ा. राजनीतिक जानकार मानते है कि रघुवर दास को आने वाले दिनों में भी ऐसी ही और चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
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