जीएसटी से फीकी पड़ी दुर्गापूजा की रंगत

बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार दुर्गापूजा अगले महीने ही है. लेकिन यहां मूर्तिकारों के मोहल्ले कुमारटोली के कलाकार गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स यानी जीएसटी की मार से बेजार हैं और उनमें भारी असमंजस की स्थिति है. खासकर विदेशों को जाने वाली मूर्तियां पहले ही भेज दी जाती हैं. उनके लिए आर्डर महीनों पहले से मिलते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 31, 2017 7:02 AM

बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार दुर्गापूजा अगले महीने ही है. लेकिन यहां मूर्तिकारों के मोहल्ले कुमारटोली के कलाकार गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स यानी जीएसटी की मार से बेजार हैं और उनमें भारी असमंजस की स्थिति है.

खासकर विदेशों को जाने वाली मूर्तियां पहले ही भेज दी जाती हैं. उनके लिए आर्डर महीनों पहले से मिलते हैं.

अब जीएसटी की वजह से उनको भेजने का ख़र्च काफ़ी बढ़ गया है. लेकिन ख़रीदार यह बढ़ा हुआ ख़र्च देने को तैयार नहीं हैं.

इससे मूर्तिकारों का मुनाफ़ा घटने का अंदेशा है. उनका कहना है कि कमाई के इस सीज़न में जीएसटी उनके लिए अभिशाप के तौर पर सामने आया है.

मूर्तिकार धनंजय पाल कहते हैं, "बीते साल नोटबंदी ने हमें मारा था और इस साल जीएसटी ने हमारी कमर तोड़ दी है."

‘एक महीने बाद भी समझ नहीं आ रहा जीएसटी’

लागत बढ़ी, बजट घटा

मूर्तिकारों का कहना है कि नई टैक्स प्रणाली ने उनके साथ-साथ ख़रीदारों को भी असमंजस में डाल दिया है. इसे समझना भी मुश्किल है और लागू करना भी.

मूर्तिकारों की संस्था कुमारटोली मृतशिल्प संस्कृति समिति के प्रवक्ता बाबू पाल कहते हैं, "नई टैक्स व्यवस्था के कई प्रावधान साफ़ नहीं हैं. मूर्ति बनाने में इस्तेमाल होने वाली कई चीज़ों- मसलन नकली बाल, काजल, देवी दुर्गा के नकली हथियारों और साड़ियों की क़ीमतें बढ़ गई हैं."

वे बताते हैं कि जीएसटी की वजह से आयोजकों ने भी अपने बजट में कटौती कर दी है.

महानगर में हुगली के किनारे बसे कुमारटोली इलाके में मूर्तियां बनाने की परंपरा 19वीं सदी से ही चली आ रही है.

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निर्यात में नुकसान

यहां बनी मूर्तियां महानगर के अलावा देश के विभिन्न शहरों और विदेशों तक जाती रही हैं. विदेश भेजी जाने वाली मूर्तियां फ़ाइबर से बनती हैं.

सबसे ज़्यादा मुश्किल उन लोगों के सामने है जिनको विदेशों से मूर्तियों के आर्डर मिले हैं. एक मूर्तिकार सुरेश पाल कहते हैं, पूजा से अमूमन छह महीने पहले ही विदेशों से आर्डर मिल जाते हैं.

लेकिन जुलाई से जीएसटी लागू होने की वजह से परिवहन का ख़र्च कई गुना बढ़ गया है.

लोग इस अतिरिक्त बोझ को उठाने के लिए तैयार नहीं हैं. नतीजतन अबकी निर्यात के कारोबार में घाटा होने का अंदेशा है.

इस साल सितंबर के आख़िर में ही पूजा होने की वजह से मूर्तियों को विदेश भेजने का काम इस महीने के आख़िर से शुरू हो जाएगा.

बड़े आए जीएसटी समझने वाले

चमक फीकी पड़ी

मूर्तिकारों का कहना है कि मूर्तियां बनाने में इस्तेमाल होने वाली मिट्टी और बांस की क़ीमतें भी इस साल बेतहाशा बढ़ी हैं. इसका असर भी हुआ है.

कुमारटोली के मूर्तिकारों को कच्चे माल की सप्लाई करने वाले रंजीत सरकार कहते हैं, "बीते साल नोटबंदी के चलते मूर्तिकारों को भारी परेशानी हुई थी और अब इस साल जीएसटी ने इस धंधे की चमक सोख ली है."

महिला मूर्तिकार चायना पाल कहती हैं, "अब इस काम में पहले जैसी चमक नहीं रही. लगातार बढ़ती महंगाई, प्रतिकूल मौसम और अब जीएसटी की मार ने इस धंधे को फीका कर दिया है."

मूर्तिकारों के इस मोहल्ले में जुलाई के महीने से मूर्तियां बनाने का काम शुरू होता है जो सरस्वती पूजा तक चलता रहता है.

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