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कठिन संघर्ष में फंसे भाई साहब

बागपत से राजेंद्र कुमार पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और उनके बेटे राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह के गढ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत में मुकाबला कठिन हो गया है. यह और बात है कि 1998 के बाद से अजित सिंह (भाई साहब या छोटे चौधरी) कभी नहीं हारे, पर […]

बागपत से राजेंद्र कुमार

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और उनके बेटे राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह के गढ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत में मुकाबला कठिन हो गया है. यह और बात है कि 1998 के बाद से अजित सिंह (भाई साहब या छोटे चौधरी) कभी नहीं हारे, पर इस बार संघर्ष कड़ा है. बागपत से 14 प्रत्याशी मैदान में हैं. भाई साहब के खिलाफ भाजपा ने महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह को उतारा है. बहुजन समाज पार्टी ने प्रशांत चौधरी, समाजवादी पार्टी ने गुलाम मोहम्मद को, तो आम आदमी पार्टी ने सोमेंद्र ढाका को प्रत्याशी बनाया है.

अजित के विरोधी मुजफ्फरनगर दंगे में उनकी सुस्ती और विकास में अनदेखी का जिक्र करके जाट-मुसलिम वोटरों को पटा रहे हैं. नरेंद्र मोदी की रैली के बाद क्षेत्र के भाजपा अजित सिंह को कांग्रेस का साथी बता बागियों को पार्टी में शामिल करने का दावं चल रही है. क्षेत्र के पांच विधानसभा क्षेत्रों में अजित सिंह बुरी तरह चुनावी संघर्ष में फंसे हुए हैं. लोगों का कहना है कि उन्हें जाट-मुस्लिम का वोट मिला, तो जीत पक्की. नहीं मिले, तो 1998 की तरह हार तय. 1998 में अजित को भाजपा के सोमपाल शास्त्री ने पराजित किया था.

कई बार बागपत से जीत कर केंद्र में मंत्री बने छोटे चौधरी ने क्षेत्र के विकास की दिशा में ठोस पहल नहीं की. क्षेत्र की सड़क, स्वास्थ्य, उद्योग धंधे और चीनी मिलों की बदहाल स्थिति विरोधियों के हथियार बन गये हैं. दिल्ली-सहारनपुर रेल लाइन का विकास भी अहम मुद्दा है. क्षेत्र के लोगों का आरोप है कि चीनी मिलों की हालत में सुधार नहीं हुआ है. किसान गन्ना मूल्य भुगतान के लिए तरस रहे हैं. सबसे बड़ी बकायेदार मलकपुर और मोदीनगर चीनी मिलें यहीं हैं. अमेठी, रायबरेली, कन्नौज, इटावा जैसा बागपत का कायाकल्प नहीं हुआ.

अजित सिंह का व्यवहार भी चिंता का सबब है. क्षेत्र में उनकी पकड़ ढीली होती दिख रही है. विकास तो दूर, मंत्री बनने के बाद उन्होंने बिरादरी को भी महत्व नहीं दिया. लोगों में भाजपा, बसपा, सपा और ‘आप’ के प्रत्याशियों की चर्चा अधिक है. हालांकि, जातिगत समीकरण बैठाने के लिए अजित खुद गांव-गांव घूम रहे हैं. जाटों को मिले आरक्षण को भुना रहे हैं. बिनौली के चौधरी सूरजमल कहते हैं कि अजित ने जाटों को आरक्षण दिलाने की पहल की है. इससे हिंदू-मुसलिम जाटों को लाभ होगा.

दंगे से बिदके हैं लोग

दबथुवा गांव के लाल बहादुर कहते हैं कि मुजफ्फरनगर दंगा बागपत के चुनाव को प्रभावित करेगा. यहां मोदी का असर है. छोटे चौधरी को भाजपा से कड़ी टक्कर मिल रही है. मंत्री बनने के लिए वे किसी भी दल में चले जाते है. उन्हें विकास की फिक्र नहीं. इस बार उन्हें समस्या हो सकती है. पूठ के मौलाना कामिल कहते हैं कि वोटों की सियासत के लिए सपा और भाजपा ने उन्हें लड़ा दिया. टिटीरी के सुरेंद्र पाल कहते हैं कि दलित वर्ग बसपा के साथ है. जाट मतदाताओं में सेंध लग चुकी है. भाजपा को भी जाटों का समर्थन मिल रहा है. सपा भी रालोद की राह का रोड़ा है.

बूथ है 90 किमी दूर, वोट डालेंगे जरूर

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के ग्रेटर नोएडा स्थित दलेलपुर गांव एक ऐसी जगह है, जहां आज तक पोलिंग बूथ नहीं बना. यहां के लोगों को मत डालने के लिए 90 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. गांव में 300 लोग हैं, जिसमें 160 मतदाता हैं. इन्हें फरीदाबाद से होते हुए दिल्ली के कालिंदीकुंज में वोट डालने जाना पड़ता है. यह गांव 1952 के आम चुनाव से ही वजूद में है. पहले यह फरीदाबाद में था. 1982 के बाद से यह ग्रेटर नोएडा का हिस्सा है.

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