गौरी लंकेश की मौत की ‘त्रासद गवाही’ देता वो बयान

जानी-मानी पत्रकार गौरी लंकेश को मंगलवार को गोली मार दी गई. वे अक्सर ऐसे बयान दिया करती थीं जिन्हें व्यवस्था विरोधी मान लिया जाता था. एक पत्रकार के तौर पर गौरी लंकेश दक्षिणपंथी राजनीति को लेकर आलोचनात्मक रुख रखती थीं. उन्होंने निर्भीक होकर जाति व्यवस्था का विरोध किया था जिसकी वजह से विरोधी उन्हें ‘हिंदुओं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 7, 2017 3:28 PM

जानी-मानी पत्रकार गौरी लंकेश को मंगलवार को गोली मार दी गई. वे अक्सर ऐसे बयान दिया करती थीं जिन्हें व्यवस्था विरोधी मान लिया जाता था.

एक पत्रकार के तौर पर गौरी लंकेश दक्षिणपंथी राजनीति को लेकर आलोचनात्मक रुख रखती थीं. उन्होंने निर्भीक होकर जाति व्यवस्था का विरोध किया था जिसकी वजह से विरोधी उन्हें ‘हिंदुओं से नफ़रत करने वाली’ करार देने लगे थे.

भारत में एक ख़ास तरह की पत्रकारिता का जिस तरीके से दमन किया जा रहा था, उसे देखने के बाद गौरी बेहद मुखर थीं. पिछले साल एक इंटरव्यू में उन्होंने ख़ास तौर पर वामपंथी झुकाव रखने वाली पत्रकारिता का जिक्र भी किया था.

इस इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "मेरे बारे में किए जा रहे कॉमेंट्स और ट्वीट्स की तरफ जब मैं देखती हूं तो मैं चौकन्नी हो जाती हूं… मुझे ये डर सताता है कि हमारे देश में लोकतंत्र के चौथे खम्भे की अभिव्यक्ति की आजादी का क्या होगा… ये केवल मेरे निजी विचारों की बात है, इसका फलक बहुत बड़ा है."

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कर्नाटक का इतिहास

जून में गौरी लंकेश ने कर्नाटक में प्रेस की आज़ादी पर हमले के इतिहास के बारे में एक लेख लिखा था.

कर्नाटक विधानसभा ने कथित अपमानजनक लेखों के लिए दो पत्रकारों को एक साल जेल की सजा सुनाई थी. इस फैसले के बाद उन्होंने लिखा, "पत्रकारों के ख़िलाफ़ फैसला देना विधायकों का काम नहीं है. ये उनसे उनके विशेषाधिकार लिए जाने का सही समय है."

गौरी सोशल मीडिया पर भी बेहद सक्रिय थीं और इसमें उनके निजी और राजनीतिक विचार भी जाहिर होते थे.

मौत से कुछ घंटे पहले उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से जुड़ी रिपोर्ट ट्वीट की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में रोहिंग्या मुसलमानों को निर्वासित करने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाया था.

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महिलाओं की स्थिति

गौरी पत्रकारों में जिस तरह से ध्रुवीकरण हो रहा है, उसे लेकर भी फ़िक्रमंद थीं.

जनवरी में उन्होंने लिखा था कि बेंगलुरु किस तरह से महिलाओं के लिए असुरक्षित हो गया है. उसी समय नव वर्ष की पूर्व संध्या पर बेंगलुरु की सड़कों पर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं हुई थीं.

गौरी ने पूछा था, "बेंगलुरु की महिलाएं जिस तरह से अपनी जिंदगी जिया करती थीं, उसे जीने के अपने अधिकार को हासिल करने के लिए वे क्या करें…? जैसे वो जीना चाहती हैं?"

उनका सवाल था, "पब्लिक स्पेस में बिना गुंडों से डरे अपनी जगह हासिल करने के लिए वे क्या कर सकती हैं."

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त्रासदी गवाही

तमाम आलोचनाओं के बावजूद गौरी इस ज़िद पर अड़ी रहीं कि वे अपना काम जारी रखेंगी. उन्हें लगता था कि एक बराबरी वाला समाज बनाने की दिशा में आगे बढ़ने की उनकी संविधानिक जिम्मेदारी है.

एक सार्वजनिक बहस में उन्होंने देश में सार्वजनिक बहस की कम होती गुंजाइश पर चिंता जताई थी.

उन्होंने कहा था, "हमारे पास यूआर अनंतमूर्ति, कलबुर्गी, मेरे पिता पी लंकेश, पूर्ण चंद्र तेजस्वी जैसे लोग थे. वे सभी जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के आलोचक थे लेकिन उन पर कभी हमला नहीं किया गया."

उनका यही बयान उनके कत्ल की त्रासद गवाही देता है.

पत्रकार गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या

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