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उत्तर कोलकाता की किस्मत तय करेंगे बस्तीवासी

कोलकाता: महानगर को लंदन के तर्ज पर सजाने के लिए राज्य सरकार व कोलकाता नगर निगम अब तक करोड़ों रुपये खर्च कर चुके हैं. सौंदर्यीकरण अभियान का कुछ असर महानगर में दिखता भी है. पर बस्तियों में विकास की बयार अब तक नहीं पहुंची है. बेलियाघाटा व इंटाली में सबसे अधिक बस्तियांनिगम व जानकारों से […]

कोलकाता: महानगर को लंदन के तर्ज पर सजाने के लिए राज्य सरकार व कोलकाता नगर निगम अब तक करोड़ों रुपये खर्च कर चुके हैं. सौंदर्यीकरण अभियान का कुछ असर महानगर में दिखता भी है. पर बस्तियों में विकास की बयार अब तक नहीं पहुंची है.

बेलियाघाटा व इंटाली में सबसे अधिक बस्तियां
निगम व जानकारों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इन विधानसभा क्षेत्रों में सबसे अधिक बस्तियां बेलियाघाटा व इंटाली इलाके में हैं. यहां की कुल आबादी व क्षेत्रफल का 60 प्रतिशत बस्तियों पर आधारित है. मानिकतला व काशीपुर-बेलगछिया इलाके में 50 प्रतिशत, चौरंगी व श्यामपुकुर में 30 प्रतिशत व जोड़ासांकू इलाके में 21 प्रतिशत बस्तियां हैं. महानगर की कुल आबादी 45 लाख से अधिक है, जिनमें से लगभग 22 लाख बस्तियों में रहते हैं. इनमें मतदाताओं की संख्या किसी भी तरह 15 लाख से कम नहीं होगी. इनमें भी बस्तियों की अधिकतर आबादी कोलकाता उत्तर संसदीय क्षेत्र में ही रहती है. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के समय कोलकाता उत्तर में मतदाताओं की संख्या 13,66,647 थी. पिछले पांच वर्ष में मतदाताओं की संख्या में बेतहाशा इजाफा हुआ है.

आते हैं केएमसी के 60 वार्ड भी
कोलकाता उत्तर संसदीय क्षेत्र में कोलकाता नगर निगम के कुल 141 में से 60 वार्ड आते हैं. इनमें से 38 पर तृणमूल, 15 पर वाम मोरचा, चार पर कांग्रेस व तीन पर भाजपा का कब्जा है. सात विधानसभा क्षेत्रों में से सभी तृणमूल के कब्जे में हैं. इनमें चौरंगी विधानसभा क्षेत्र की निष्कासित तृणमूल विधायक शिखा मित्र भी शामिल हैं.

नहीं हुआ विकास : स्थानीय लोग
विधायकों व पार्षदों की संख्या साफ बताती है कि कोलकाता उत्तर क्षेत्र एक तरह से तृणमूल कांग्रेस का गढ़ है. राज्य में सरकार भी तृणमूल कांग्रेस की है. इसके बावजूद विकास के मामले में यहां की बस्तियां काफी पीछे हैं. कहने के लिए तो बस्ती विकास के नाम पर कई परियोजनाएं शुरू की गयीं, पर इन बस्तियों की हालत पहले से भी बदतर हो गयी हैं. तीन वर्ष पुरानी तृणमूल सरकार हो या पिछली वाम मोरचा सरकार, किसी ने भी महानगर की बस्तियों के विकास की ओर कभी ध्यान नहीं दिया. सरकार व निगम के इस उदासीन रवैये का सबसे नकारात्मक असर अल्पसंख्यकों के जीवन स्तर पर पड़ा है, क्योंकि महानगर के अल्पसंख्यक समाज की अधिकतर आबादी बस्तियों में ही जिंदगी बसर करती है.

इस बीच, विकास से कोसों दूर कोलकाता उत्तर की बस्तियों में जीवन गुजार रहे लाखों मतदाताओं को रिझाने के लिए सभी दलों के उम्मीदवार मैदान में कूद पड़े हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि कोलकाता उत्तर की जीत की चाबी बस्तियों में ही है. पर इस बार लोगों का रुझान देख कर यह साफ लग रहा है कि अब वोट विकास के नाम पर ही मिलेगा.

क्या कहते हैं आंकड़े
कोलकाता नगर निगम के आंकड़े के अनुसार महानगर में कुल 333 बस्तियां हैं. इनमें से लगभग 1500 बस्तियां कोलकाता उत्तर संसदीय क्षेत्र में स्थित हैं. यह आकंड़े निगम द्वारा हाल ही कराये गये एक सर्वे के बाद सामने आये हैं. पर हकीकत कुछ और ही है. महानगर में बस्तियों की संख्या पांच हजार से अधिक है, जिनमें सिर्फ कोलकाता उत्तर संसदीय क्षेत्र में 3000 से अधिक बस्तियां हैं.

सात विधानसभा क्षेत्र
कोलकाता उत्तर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत सात विधानसभा क्षेत्र हैं- चौरंगी, इंटाली, बेलियाघाटा, जोड़ासांकू, श्यामपुकुर, मानिकतला व काशीपुर-बेलगछिया.

लोगों का कहना है..
मोतीझील बस्ती के निवासी अब्दुल रज्जाक ने कहा कि ऐसा लगता है कि हम लोग कोलकाता के वाशिंदे ही नहीं हैं. पार्टियां हमें सब्जबाग दिखा कर हमारा वोट लेकर रफूचक्कर हो जाती हैं. केलाबागान बस्ती की हमीदन बीबी का कहना है कि हम लोगों के साथ भेदभाव होता है. लगता है कि किसी को हमारी फिक्र ही नहीं है. टेंगरा के निवासी सोहम सोनकर का कहना है कि आजादी मिले 65 वर्ष से अधिक बीत चुके हैं. महानगर में कितना बदलाव आया, लेकिन ऐसा लगता है कि हम लोग विपरित दिशा में जा रहे हैं. दक्षिण कोलकता के मुकाबले हमारी स्थिति काफी दयनीय है.

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