उत्तर कोरिया मिसाइल परीक्षण : बड़ा खतरा है उत्तर कोरिया का मिसाइली खिलवाड़
डाॅ राहुल मिश्र एशिया प्रशांत मामलों के जानकार लगातार किये जा रहे मिसाइल और परमाणु परीक्षणों से उत्तर कोरिया ने उत्तर-पूर्व एशिया और संपूर्ण विश्व के लिए एक खतरा पैदा कर दिया है. जहां एक ओर किम जोंग उन-शासित उत्तर कोरिया की आक्रमक नीति से दक्षिण कोरिया सशंकित हो रहा है, तो वहीं दूसरी ओर […]
डाॅ राहुल मिश्र
एशिया प्रशांत मामलों के जानकार
लगातार किये जा रहे मिसाइल और परमाणु परीक्षणों से उत्तर कोरिया ने उत्तर-पूर्व एशिया और संपूर्ण विश्व के लिए एक खतरा पैदा कर दिया है. जहां एक ओर किम जोंग उन-शासित उत्तर कोरिया की आक्रमक नीति से दक्षिण कोरिया सशंकित हो रहा है, तो वहीं दूसरी ओर जापान के ऊपर मिसाइल परीक्षण करके इसने जापान को भी अपने खिलाफ कर लिया है.
दुनिया की सभी बड़ी ताकतों, भले ही वह अमेरिका हो, चीन हो, या रूस हो, सभी ने उत्तर कोरिया द्वारा हाल में किये गये परीक्षणों की निंदा की है. किम जोंग उन के इस गैरजिम्मेदार रवैये से क्षेत्र के सभी देशों में हथियारों की होड़ लगने के आसार भी सामने दिख रहे हैं.
दक्षिण कोरिया में अमेरिका के सहयोग से लगायी जा रही मिसाइलों ने वातावरण को और पेचीदा बना दिया है, क्योंकि इसे एक ओर उत्तर कोरिया प्रतिस्पर्धात्मक कार्रवाई मान रहा है, तो वहीं चीन इसे अपने ऊपर अमेरिकी पहरे की कार्रवाई मान रहा है. रूस ने भी इसे अमेरिका की दादागिरी बताते हुए कहा है कि कोरिया के मसले को जिम्मेदारी से नहीं सुलझाया जा रहा है.
साफ है कि कोरियन प्रायद्वीप आज दोतरफा खतरे का सामना कर रहा है. पहला यह कि वहां उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया, जापान के बीच युद्ध की संभावना बढ़ती जा रही है, जिसमें चाहे-अनचाहे अमेरिका का शामिल होना भी तय है. दूसरा बड़ा खतरा कोरियन प्रायद्वीप में बड़ी ताकतों के बढ़ते शुमार का है. तेजी से बदलती इस व्यवस्था से कोरियन प्रायद्वीप अमेरिका, चीन, जापान, और रूस जैसे देशों के राजनीतिक अखाड़े में तब्दील हो चुका है.
यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि उत्तर कोरिया इस दशा में इसीलिए पहुंचा है, क्योंकि अमेरिका, चीन और रूस ने उसकी जरूरतों को नहीं समझा
नब्बे के दशक में ऊर्जा संबंधी करारों का अमेरिका ने सम्मान नहीं किया और उत्तर कोरिया को वापस अपने परमाणु कार्यक्रम की ओर अग्रसर कर दिया. उस वक्त उत्तर कोरिया ऊर्जा आपूर्ति के बदले अपने परमाणु कार्यक्रम को छोड़ने को तैयार था. जैसी समझदारी राष्ट्रपति ओबामा ने ईरान के साथ दिखायी, काश ऐसी ही समझदारी उत्तर कोरिया के साथ भी दिखायी गयी होती. नब्बे के दशक से ही अलग-थलग पड़ते गये उत्तर कोरिया ने चीन का साथ इस कदर पकड़ा कि एक तरह से अपनी सभी जरूरतों के लिए उसी पर निर्भर हो गया- खास तौर से व्यापार के मामलों में. चीन ने इसका जमकर फायदा उठाया.
आज भी उत्तर कोरिया का 90 फीसदी तक व्यापार चीन से ही होता रहा है. बिगड़ती अर्थव्यवस्था के चलते और चीन से नजदीकियों ने उत्तर कोरिया और पाकिस्तान के एक्यू खान नेटवर्क को भी मिलाया और असंवैधानिक परमाणु बाजार को भी जन्म दिया. किम जोंग के सत्ता संभालने के बाद उसने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए भी परमाणु कार्यक्रम का सहारा लिया और चीन व रूस ने उसका साथ दिया. आज जब उत्तर कोरिया किसी की नहीं सुन रहा है, तो सभी देश एक-दूसरे पर आरोप लगाने में लगे हैं.
अब जब पानी सिर के ऊपर से निकल चुका है, तब संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका, चीन और रूस ये तीनों ही उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध लगा रहे हैं और शायद इस उम्मीद में हैं कि उत्तर कोरिया सही रास्ते पर आ जाये. हालांकि, इस बात से इनकार करना अब भी मुश्किल है कि चीन और रूस पर्दे के पीछे से उत्तर कोरिया का साथ नहीं दे रहे होंगे.
इस सारे घटनाक्रम और अमेरिका, जापान, और दक्षिण कोरिया की बढ़ती चिंताओं से उत्तर कोरिया की घबराहट बढ़ रही है और अब उसे यह चिंता सता रही है कि कहीं उसका हाल इराक और लीबिया जैसा ना हो जाये.
इस डर से उत्तर कोरिया लगातार मिसाइल और परमाणु परीक्षणों से अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है, जिससे किम जोंग अपनी सत्ता पर काबिज रह सकें. इस बात पर भी यकीन करना मुश्किल है कि उत्तर कोरिया जैसे अलग-थलग पड़े देश के पास अत्याधुनिक मिसाइल और परमाणु तकनीक कैसे पहुंच रही है. यह माना जाता है कि सोवियत रूस के विघटन के बाद कई रूसी वैज्ञानिक वहां चले गये थे.
जो भी हो, तेजी से बदलते घटनाक्रम से साफ है कि जब तक अमेरिका, चीन और रूस ईमानदारी से इस संकट का समाधान नही खोजेंगे, कोरियन प्रायद्वीप में शांति बहाल नहीं होगी. जापान और दक्षिण कोरिया का भी इसमें बराबर का योगदान होना जरूरी है. पर, शायद सबसे जरूरी है किम जोंग को समझना और उन्हें बातचीत के रास्ते पर लाना.
कोरिया द्वारा हाल में किये गये परमाणु परीक्षण : कालक्रम
14 मई : उत्तर कोरिया ने मध्यम दूरी की नवविकसित ह्वासोंग-12 मिसाइल का परीक्षण किया. यह मिसाइल हैवी न्यूक्लीयर वारहेड ले जाने में सक्षम है.
21 मई : ठोस ईंधन वाले पुक्गुक्सोंग-2 मिसाइल का परीक्षण किया उत्तर कोरिया ने. इसकी खासियत है कि लॉन्च के पहले इस मिसाइल के बारे में पता लगाना मुश्किल है.
8 जून : इस दिन उत्तर कोरिया ने अनेक प्रोजेक्टाइल का परीक्षण किया. अनुमान है कि ये प्रोजेक्टाइल कम दूरी के सतह-से शिप क्रूज तक मार कर सकनेवाली मिसाइल हैं.
4 जुलाई : पहले अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल ह्वासोंग-14 का इस दिन परीक्षण किया उत्तर कोरिया ने.
28 जुलाई : दूसरे ह्वासोंग-14 मिसाइल का परीक्षण हुआ इस दिन. विशेषज्ञों का कहना है कि यह मिसाइल अमेरिका के शिकागो शहर तक को अपनी जद में लेने की क्षमता रखती है.
9 अगस्त : प्रशांत क्षेत्र स्थित अमेरिका के सैन्य अड्डे ग्वाम के पास बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च करने की उत्तर कोरिया ने घोषणा की.
29 अगस्त : जापान को लक्ष्य कर उत्तर कोरिया ने मध्यम दूरी की ह्वासोंग-12 मिसाइल दागी, जो उत्तरी प्रशांत क्षेत्र में जाकर गिरी.
3 सितंबर : इस दिन छठा और सर्वाधिक शक्तिशाली परमाणु परीक्षण किया उत्तर काेरिया ने और दावा किया कि वह हाइड्रोजन बम का परीक्षण था.
15 सितंबर : जापान के ऊपर से उत्तर कोरिया ने प्रशांत क्षेत्र में मध्यम गति की मिसाइल दागी.