नयी दिल्ली (ब्यूरो): देश की राजधानी में पहली बार वोट करने वाले युवाओं के लिए नौकरी, महिला सुरक्षा, बेहतर आर्थिक नीतियां व सांप्रदायिक सद्भाव सबसे बड़े रहे. वोट डालने के बाद 20 साल की अंजलि ने कहा, ‘महिला सुरक्षा व महंगाई बड़े मुद्दे हैं. पर, नौकरी सबसे अहम है.’ 18 साल के सौरभ पहली बार वोट डाल कर काफी खुश दिखे. कहा, ‘दिल्ली के छात्रों को दिल्ली यूनिवर्सिटी में कुछ कोटा मिलना चाहिए.
मैं चाहता हूं कि नयी सरकार इस पर काम करे.’ वोट बैंक की राजनीति पर 18 साल के हरिवंश राय ने कहा कि ऐसी पार्टियों को सत्ता में नहीं आने देना है. सांप्रदायिक राजनीति करनेवालों को सत्ता में नहीं आने देना है.’हालात बदलने की उम्मीद कर रही 22 साल की आकांक्षा बसोई ने कहा कि महिला केंद्रित मुद्दे अहम हैं, चाहे वह महिला सुरक्षा का हो या महिला सशक्तीकरण हो. यह बदलाव का समय है और महिलाओं पर पूरा ध्यान होना चाहिए.’
गोल मार्केट इलाके के 23 वर्षीय मो. जावेद ने कहा, ‘मैं वोट डालने के बाद खुद को जिम्मेदार नागरिक मान रहा हूं. पेयजल, साफ-सफाई, बढ़ते अपराधों के लिए हम प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हैं पर हम बदलाव चाहते हैं तो हमें चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेना होगा.’ शीना धनकर ने कहा कि महिलाएं दिल्ली में सुरक्षित नहीं हैं और वह चाहती हैं कि दिल्ली ऐसी बन जाये कि महिलाएं बेखौफ घूम सकें. महिलाओं के मुद्दों के अलावा सरकार को भ्रष्टाचार उन्मूलन पर काम करना चाहिए.’
बदलाव की चाहत : उत्तर पूर्वी दिल्ली में वोट डाल कर लौट रही एक महिला वोटर ने कहा, ‘आम आदमी पार्टी को पिछली बार वोट दिया था, क्योंकि बदलाव चाहिए था. हमारी उम्मीद के मुताबिक उनके वादे थे और मेरे आक्रोश के मुताबिक उनके प्रदर्शन. देश में जो राजनीति में गैप बढ़ रहा था, उस गैप को ‘आप’ से पाटने की उम्मीद थी, लेकिन वह भी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरी.
वोट देने गयी, तो इवीएम को देख कुछ देर तक सोचती रही. एक-एक कर प्रत्याशी का नाम और चुनाव चिह्न् देखते ही मुख्य पार्टियों के चेहरे और उनके कामकाज के तरीके आंखों के सामने तैरने लगा. सोचने लगी कि हाथ से हाथ मिलाऊं, या झाड़ू पकड़ गंदगी साफ करूं , कमल का स्पर्श करूं या अन्य चिह्नें पर बटन दबाऊं. लेकिन, इवीएम के आखिरी बटन को देख बहुत खुशी हुई कि इस बार हमें ‘नोटा’ भी मिल गया है. काश! ‘नोटा’ की जरूरत ही नहीं पड़ती.’