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आम के फलों का शत्रु कीटों से संरक्षण जैविक कीटनाशी द्वारा

यह सर्वविदित है कि यह वर्ष 2014, आम की फसल का फलन वर्ष है, जिसमें आम के फलों का सर्वाधिक उत्पादन होता है. वर्तमान में आम तथा लीची दोनों के पेड़ पर परिपूर्ण मात्र में मंजर उदित हुए हैं, जिस आलोक में समुचित फलों के उत्पादन होने की अपेक्षा की जाती है. इस परिवेश में […]

यह सर्वविदित है कि यह वर्ष 2014, आम की फसल का फलन वर्ष है, जिसमें आम के फलों का सर्वाधिक उत्पादन होता है. वर्तमान में आम तथा लीची दोनों के पेड़ पर परिपूर्ण मात्र में मंजर उदित हुए हैं, जिस आलोक में समुचित फलों के उत्पादन होने की अपेक्षा की जाती है. इस परिवेश में इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इन पर कीटों का आक्रमण भी संक्रामक रूप से हो सकता है, जिसका विपरीत प्रभाव फलन पर पड़ना अवश्यभावी है. ऐसी स्थिति में मंजर से फलों के परिपक्व होने की स्थिति पर पूर्व नियंत्रण कर लेना परम आवश्यक है.

मदन बिहारी शरण ‘दीप’
आपके मंजरों पर मधुआ कीट का नियंत्रण व्यापक रूप से होता है, जिस कारण फल लगने के समय में ही काफी नुकसान हो जाता है. दूसरा कीट मैंगो हॉपर के नाम से जाना जाता है, जो हल्के भूरे रंग के होते हैं. इस कीट के प्रौढ़ तथा शिशु पत्तियों, कोंपलों तथा मंजरों के रस चूसकर काफी हानि पहुंचाते हैं, जिस कारण छोटे फल तथा फल सूख कर गिर जाते हैं. ये कीट मधुस्नव भी करते हैं, जिस कारण पत्तियों पर तेल जैसी चमक आ जाती है.

दूसरे प्रमुख हानिकारक कीट को मिली अथवा गुजिया की टके नाम से जाना जाता है. यह मादा कीट सफेद, चपरी तथा पंखहीन होती है, जो नयी कोपलों और मंजरियों से रस चूस कर उन्हें कमजोर बना देती है, जिस कारण फलन प्रभावित हो जाता है.

तीसरे हानिकारक कीट को गॉल-मिंज कहा जाता है, जिसके शिशु नर केसर तथा मादा केसर का रस चूस कर, उन्हें फलने के लायक नहीं रहने देते हैं. कारण नर कलिकाएं फल पैदा करने में असमर्थ हो जाते हैं. ऐसी कलिकाओं की पंखुड़ियां ही खुल जाती हैं.

सबसे अत्यधिक हानिकारक शत्रुकीट को तना छेदक कीट की संज्ञा दी गयी है. इसके गिड़ार प्राय: पांच सेंटी मीटर लंबे और मटमैले रंग के होते हैं. इस कीट के अंडों से शिशु रूप में निकलते ही छाल को खाते हुए अंदरप्रवेश कर जाते हैं. गिड़ार के स्टेज में आते ही ये मोटी-मोटी शिखाओं तथा तने के अंदर सुरंग बनाते हुए आगे बढ़ते जाते हैं और पूरे वृक्ष में फैल जाते हैं, जिससे वृक्ष के सूख जाने की भी संभावना बनी रहती है.

ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि इनके आक्रमण से सुरक्षा की जाये.

पूर्व में वर्णित सभी कीटों पर नियंत्रण पाने के लिए रसायनिक कीटनाशी का उपयोग किया जा रहा है. पर अब यह स्पष्टरूप से परिलक्षित हो रहा है कि कीटनाशी रसायन इनके नियंत्रण पर प्रभावकारी नहीं हो रहे हैं. यही नहीं इन कीटनाशियों के अवशेष भी फलों के अंदर समाविष्ट हो जा रहे हैं, जो मनुष्य के स्वास्थ्य के हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं. यह समस्या आज संपूर्ण विश्व की एक चिंतनशील समस्या बन कर रह गयी है, जिसके विकल्प के रूप में जैविक कीटनाशी का उपयोग करने पर बल दिया जा रहा है.

वर्तमान में इन समस्याओं के परिधान के विभिन्न नीम वृक्ष के बीजों से निर्मित एक सशक्त जैव-कीटनाशी मल्टी नेमोर के रूप में आया है, जिस पर व्यापक रूप से प्रत्यक्ष्ण एवं अध्ययन के उपरांत एक सशक्त जैव-कीटनाशी के रूप में उपयोग करने का परामर्श दिया जा रहा है.

मल्टी नेमोर नीम पर आधारित प्राकृतिक प्रदूषण रहित एक जैविक उत्पाद है, जिसकी विशेषता यह है कि यह सभी प्रकार की कीटों और उन पर आधारित बीमारियों से सभी प्रकार की फसलों को सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है.यह उत्पाद किसी भी प्रकार के जहरीले तत्वों का उत्सर्जन नहीं करता है. इस विशेष गुण के कारण संपर्क में आने पर मनुष्य तथा पशुओं के लिए पूरी तरह सुरक्षित है.

यह कीटनाशी नाम के बीज से निकाले गये तत्वों से निर्मित किया गया है. इसके सक्रिय तत्वों को सामूहिक तौर पर टेट्रोनॉरट्रिफर पेन्वायड्स, लाइमोन्वायड्स तथा आइसोप्रॉप न्वायड्स कहा गया है. इस कीटनाशी केयरी शिक्षण प्रारंभिक अवस्था में ही मादा कीटों की प्रजनन क्षमता को समाप्त कर देते हैं. साथ ही साथ खेतों की सुरक्षा भी हो जाती है. यह जैविक कीटनाशी रसायनिक कीटनाशियों से सर्वथा भिन्न है, मात्र इसलिए कि यह केवल कार्बन, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन पर ही आधारित है जबकि रसायनिक कीटनाशियों में फॉस्फोरस, सल्फर, नाइट्रोजन आदि निहीत होते हैं.

इस जैविक कीटनाशी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह जिन सक्रिय तत्वों से बना है वे विभिन्न प्रकार से विभिन्न प्रकार से विभिन्न परिस्थितियों में कार्य करने में सक्षम है. नीम के बीजों से बनाये जाने के कारण छिड़काव करते ही कीटों के जीवन-चक्र में परिवर्तन कर देता है, जिसके फलस्वरूप कीड़े भोजन करने तथा प्रजनन करने में भी असमर्थ हो जाते हैं, जिस कारण फसलों पर होने वाले नुकसान पर स्वयमेव नियंत्रण हो पाता है.

इस जैविक कीटनाशी के सक्रिय तत्व लाइमोबायड्स कीड़ों के विकास में सहायक हॉर्मोन के विकास को नियंत्रित कर देता है. इसका छिड़काव कीड़ों पर जैसे ही किया जाता है, कीड़े इसे सोख लेते हैं और इनके विकास में सहायक हॉर्मोन का कार्य रुक जाता है, फलस्वरूप कीड़े मर जाते हैं.

यह कीटनाशी कीड़ों में यौनाचार को रोक कर प्रजनन पर रोक लगा देता है. इससे मादा कीट अंडे देने में असमर्थ हो जाती है और जो अंडे उपलब्ध रहते हैं वे इसी अवस्था में नष्ट हो जाते हैं. अतएव कीटों का विकास रुक जाता है. जो नर कीट बच जाते हैं, वे काफी कमजोर हो जाते हैं और वे काफी कमजोर हो जाते हैं और शीघ्र ही मर जाते हैं. यह कीटनाशी अपनी बेहद तीखी गंध के कारण कीड़ों को दूर भगा देने में सर्वथा सक्षम है. इस कीटनाशी का ज्योंही पौधों पर छिड़काव किया जाता है, कीड़े पौधों का भक्षण नहीं कर पाते और भूखे रहने के कारण मर जाते हैं.

जैसा कि पूर्व में वर्णित किया जाता है, इस कीटनाशी का उपयोग वैसे सभी प्रकार की कीटों यथा पौधों को खाने वाले, पत्ताें को खानेवाले, फलों को खाने वाले को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाना अत्यंत ही श्रेयस्कर होगा.

वर्तमान में आम, लीची तथा अन्य फसलों पर उपयोग करना काफी प्रभावकारी होगा.

मल्टीनेमोर का घोर बना कर ही छिड़काव करना काफी प्रभावकारी होता है. इसके निमित्त एक लीटर पानी में मात्र 2-3 मिली लीटर कीटनाशी की आवश्यकता होता है. छिड़काव के लिए घोल बनाने के निमित्त कीटनाशी की आवश्यक मात्र के मात्र एक बाल्टी पानी में लेकर तीन कीट की ऊंचाई से पानी की दूसरी बाल्टी में डाला जाता है इस घोल के संतृत्प रूप से तैयार करने के लिए इसे लकड़ी के डंडे से मिलाया जाता है. पूरी तरह से घोल को मिला देने के उपरांत छिड़काव बिना विलंब किये कर देने की अनुशंसा की गयी है.

इस कीटनाशी का विघटन तुरंत हो जाता है, जिससे छिड़काव करते ही यह प्रभावकारी हो जाता है. छिड़काव करने का उचित समय प्रात:काल और मध्यकाल में करने से आशाजनक परिणाम प्राप्त होते हैं. तीखी धूप तथा वर्षा होते समय इस कीटनाशी का छिड़काव करने की अनुशंसा नहीं की गयी है.

आम की फसल में मंजर लगने की स्थिति से फलों के परिपक्व होने की स्थिति होने तक 20-25 दिनों के अंतराल पर करने करने की अनुशंसा की गयी है, जिसका अनुपालन सुनिश्चित रूप से किया जाये.

(सेवा निवृत कृषि निदेशक, बिहार, पटना)

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