सचिन की तरह बोलें-‘मैं खेलेगा’
।। दक्षा वैदकर ।। इस बार भी बड़ी संख्या में लोग वोट देने नहीं गये. इस बारे में जब उनसे कारण पूछा गया, तो लोगों ने तरह-तरह के बहाने बनाये. किसी ने कहा ‘मेरे पेट में अचानक दर्द उठा,’ तो किसी ने कहा, ‘धूप बहुत तेज थी और लाइन बहुत लंबी.’ इस तरह के बहाने […]
।। दक्षा वैदकर ।।
इस बार भी बड़ी संख्या में लोग वोट देने नहीं गये. इस बारे में जब उनसे कारण पूछा गया, तो लोगों ने तरह-तरह के बहाने बनाये. किसी ने कहा ‘मेरे पेट में अचानक दर्द उठा,’ तो किसी ने कहा, ‘धूप बहुत तेज थी और लाइन बहुत लंबी.’ इस तरह के बहाने हम स्कूल के दिनों से बनाते आ रहे हैं.
कई बार ऐसा भी होता है कि सच में पेट में दर्द है या हल्का बुखार है और हम बीमार होने की वजह से बहुत महत्वपूर्ण क्लास मिस कर देते हैं. सोचने वाली बात सिर्फ इतनी है कि क्या सच में हम ऐसी स्थिति में काम नहीं कर सकते? आपके ऑफिस में भी ऐसे कई कर्मचारी होंगे, जो सिर दर्द, बुखार, दस्त, सर्दी-जुकाम, खांसी, गले में दर्द, मुंह में छाले जैसी बीमारी बोलते हैं और काम पर नहीं आते. फिर भले ही उस दिन ऑफिस में उनकी बहुत जरूरत ही क्यों न हो. ऐसे लोगों के लिए सचिन तेंडुलकर का एक किस्सा सुनें.
वैसे तो सचिन से जुड़े हजारों किस्से हैं, जिनसे प्रेरणा ली जा सकती है, लेकिन यहां यह किस्सा बताना जरूरी है. दिसंबर, 1989 में सियाल कोट, पाकिस्तान का यह दृश्य है. सचिन के कैरियर का चौथा टेस्ट मैच था. चार बैट्समैन आउट हो चुके थे. सचिन की इनिंग का पहला बॉल था. वकार युनूस ने बाउंसर मारा और बॉल सीधे सचिन की नाक पर जा लगी. उनकी नाक से खून बहने लगा. ऐसे हालात में खेलना बहुत मुश्किल था, क्योंकि दर्द भी था और खून भी बहा था. वहां मौजूद सभी खिलाड़ियों और डॉक्टरों ने कहा कि आपको पवेलियन में चले जाना चाहिए, लेकिन सचिन ने उस वक्त केवल दो शब्द कहे- ‘मैं खेलेगा.’ यह था 16 साल के एक बच्चे का एटिट्यूड. किसी ने सच ही कहा है कि टैलेंट के साथ जब एटिट्यूड जुड़ जाता है, तब ही लोग चैंपियन बनते हैं.
दोस्तों हमारी जिंदगी में भी कई बार ऐसे पल आते हैं, जब प्रेशर चरम पर होता है. एक तरफ तबीयत जवाब दे देती है और दूसरी तरफ महत्वपूर्ण काम हमारा इंतजार कर रहा होता है. उस पल आप अपनी क्षमता, अपनी ताकत, अपनी आत्मशक्ति की परीक्षा ले सकते हैं. आप सचिन की तरह बोल सकते हैं- ‘मैं खेलेगा.’
बात पते की..
– खुद को छोटी-मोटी चीजों से डरा कर न रखें. खुद को ज्यादा आराम दे कर कमजोर न बनायें. तकलीफ में भी काम करने की आदत डालें.
– आत्मशक्ति को धीरे-धीरे बढ़ायें. आप खुद को जितनी तकलीफ पहुंचायेंगे, दर्द में भी काम करेंगे, आप उतने ही मजबूत होते जायेंगे.