तालिबान ने तोड़ दिये स्कूल, फिर भी बच्चियों की हिम्मत नहीं टूटी
लुबिना जाहिद खान (आठ साल)खुले आसमान के नीचे जमीन पर बैठकर अपनी शिक्षिका की बातों को बड़े ध्यान से सुन रही है. पास में ही एक टूटा-फूटा भवन है, जो कभी लुबिना का भव्य स्कूल हुआ करता था. तालिबानियों ने लुबिना के इस स्कूल को 2012 में तोड़ दिया. उसकी तरह सैकड़ों छोटी बच्चियां खुले […]
लुबिना जाहिद खान (आठ साल)खुले आसमान के नीचे जमीन पर बैठकर अपनी शिक्षिका की बातों को बड़े ध्यान से सुन रही है. पास में ही एक टूटा-फूटा भवन है, जो कभी लुबिना का भव्य स्कूल हुआ करता था. तालिबानियों ने लुबिना के इस स्कूल को 2012 में तोड़ दिया. उसकी तरह सैकड़ों छोटी बच्चियां खुले में जमीन पर बैठकर प्रतिदिन पढ़ाई करती हैं. यह दृश्य पेशावर के खैबर पख्तून स्थित बाडभेर गांव की है. लुबिना इसी गांव की निवासी है और उसके घर से महज कुछ मीटर की दूरी पर उसका स्कूल है. वैसे कुछ दिनों तक लुबिना और उसके साथ पढ़ने वाली बच्चियों का स्कूल भाड़े के दो कमरे वाले एक भवन में शिफ्ट किया गया था. लेकिन, भवन इतना जर्जर था कि शिक्षिकाओं ने टूटे स्कूल के पास पेड़ के नीचे ही बच्चियों को पढ़ाना ज्यादा सुरक्षित समझा. पेशावर के खैबर पख्तूनख्वा इलाके के करीबन हर बालिका विद्यालय का कमोबेश यही हाल है. इन स्कूलों को तालिबानियों ने बर्बाद कर दिया है.
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में आज भी तालिबान सक्रिय हैं. हालांकि यहां की बेटियों ने हिम्मत नहीं हारी. आज भी यहां छोटी-छोटी बच्चियां जर्जर स्कूलों में पढ़ने आती हैं. खुले आकाश में उनकी कक्षाएं लगती हैं. स्कूल में पानी, बिजली और शौचालय की सुविधा नहीं है. इसी प्रांत के स्वात घाटी में मलाला युसुफजई को शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए तालिबानियों ने गोली मार दी थी. आज भी यहां मलाला जैसी सैकड़ों लड़कियां हैं, जिनके अंदर पढ़ाई की ललक है. लेकिन, इन्हें शिक्षा की सुविधा मयस्सर नहीं हो पायी है. यह पूरा इलाका अफगानिस्तान से सटा हुआ कबाईली प्रांत है. तालिबान हमले के 11 साल बाद भी पाकिस्तान सरकार टूटे विद्यालयों के नये भवन का निर्माण नहीं कर पायी है. 11 साल तक इस इलाके में तालिबान का नियंत्रण होने के कारण हजारों स्कूली बच्चियों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी.
बंद हो गये 900 गर्ल्स स्कूल
ह्युमन राइट वाच द्वारा मार्च, 2017 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार तालिबानी व आतंकी गतिविधियों के कारण इस प्रांत के 900 गर्ल्स स्कूलों को बंद कर देना पड़ा. इस कारण एक लाख बीस हजार लड़कियों की पढ़ाई छूट गयी और 8000 महिला शिक्षिकाओं की नौकरी चली गयी. ग्लोबल टेरेरिज्म डाटाबेस के अनुसार पाकिस्तान में 2007 से 2015 के बीच स्कूलों पर हुए हमले में बच्चों सहित 392 लोग मारे गये. इस पिछड़े इलाके में पहले से ही संघर्ष कर रही शिक्षा व्यवस्था के तहत तालिबानी हमलों के कारण पूरे प्रांत के सैकड़ों स्कूल अब इस्तेमाल के लायक नहीं रहे.
2014 में तालिबान ने किया था हमला
बाडभेर गांव के स्कूल की एक शिक्षिका निबा जान बताती हैं कि 2012 में स्कूल पर तालिबानी हमले के लंबे अर्से बाद डरी सहमी बच्चियों ने हिम्मत दिखायी और फिर से पढ़ने आने को सहमत हुई. अभी करीब 80-80 बच्चियों को दो शिफ्ट में टूटे स्कूल भवन के पास प्रतिदिन खुले में पढ़ाया जा रहा है. निबा उस पल को याद कर सिहर जाती हैं जब 2014 में तालिबानी हमलावरों ने आर्मी पब्लिक स्कूल पर हमला कर 150 बच्चों व शिक्षकों को मार डाला था.