ब्रिटेन और उसके सहयोगी देशों की सेना में महिलाओं की संख्या काफी कम है. ब्रिटेन में हर 10 में से एक सैनिक सदस्य ही महिला होती है. लेकिन क्या महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाकर सेना को और मज़बूत किया जा सकता है?
अफ़ग़ानिस्तान जब युद्ध की स्थिति में था, तब गठबंधन सेनाओं के सामने कस्बों और गांवों में रहने वाली महिलाओं से जानकारी हासिल करना बड़ी चुनौती बन गया था, क्योंकि स्थानीय महिलाएं, पुरुष सैनिकों से बात करने में हिचकिचाती थीं.
तब उन इलाकों में महिला सैनिकों को भेजा गया, जिन्होंने स्थानीय महिलाओं से बात कर महत्वपूर्ण ख़ुफिया जानकारी हासिल की.
सुरक्षाबलों में लैंगिक विविधता के फायदों का ये सिर्फ एक उदाहरण है.
महिलाओं की भागीदारी सेना को और ज़्यादा प्रभावी बना सकती है लेकिन अब तक बहस सिर्फ महिलाओं की शारीरिक क्षमता या लैंगिक समानता पर ही हो रही है.
ब्रिटेन की रॉयल एयर फोर्स ऐसी पहली सेवा है जिसने इस साल की शुरुआत में सभी पदों पर भर्तियों के लिए महिलाओं को भी आमंत्रित किया. इससे पहले ये पद सिर्फ पुरुषों के लिए होते थे.
2018 में नौसेना भी रॉयल मरीन कमांडो के लिए महिलाओं से भी आवेदन मांगेगी.
ब्रिटेन की सेना में भी अगले साल से सभी पदों पर महिलाओं की भर्तियां की जा सकेंगी. इससे ब्रिटेन अपने कई करीबी सहयोगियों की कतार में शामिल हो जाएगा.
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अब देखना होगा कि ये बदलाव कितनी महिलाओं को सैन्य बलों में आने के लिए प्रेरित करते हैं.
कानून में संशोधन से पहले कई आलोचकों ने कहा है कि महिलाओं की भर्तियों से सेना की गुणवत्ता का स्तर कम हो सकता है.
उदाहरण के लिए 2003 में अफ़ग़ानिस्तान में ब्रितानी सेना की अगुवाई करने वाले कर्नल रिचर्ड केम्प ने कहा था कि महिलाएं एक कमज़ोर कड़ी होंगी. उन्होंने ये भी दावा किया था कि बहुत कम महिलाएं थल सेना में शामिल होना चाहती हैं और उनमें से भी बहुत कम महिलाएं ही इन पदों के लिए शारीरिक तौर पर सक्षम हैं.
ये मुमकिन भी है कि कम ही महिलाएं युद्धक सेना में शामिल होना चाहती हों. क्योंकि जो महिलाएं इसके लिए आवेदन करती हैं उन्हें पुरुषों जैसा शारीरिक क्षमता का टेस्ट देना होता है. कई मामलों में महिलाएं फिटनेस टेस्ट पास नहीं कर पाती हैं.
युद्धक सेना के लिए ऐसी ज़रूरत इसलिए भी होती है क्योंकि उन्हें लंबे समय तक भारी सामान उठाना होता है.
कई आलोचक मिश्रित लिंग वाली टीम में एकता की कमी होने का डर भी जता चुके हैं. लेकिन ट्रेनिंग और लिडरशीप के ज़रिए इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है.
हाल के संघर्षों में महिलाओं ने डॉक्टर और इंजीनियर के रूप में अहम योगदान दिया है.
इन महिलाओं ने गठबंधन सेनाओं की लड़ाकू टुकड़ियों में शामिल महिलाओं के साथ भी काम किया है.
अब अधिकतर युद्ध अधिक जनसंख्या वाले इलाकों में होते हैं. सुरक्षाबलों को सिर्फ दुश्मनों से ही लड़ना नहीं होता, बल्कि अलग-अलग पृष्ठभूमि के महिला, पुरुषों और बच्चों से अच्छे संबंध भी बनाने होते हैं.
सैन्य बलों को युद्ध में लड़ने के अलावा भी और कई ऑपरेशन में लगाया जाता है. उन्हें कई बार मानव सहयोग के लिए भी लगाया जाता है.
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संघर्ष में दुश्मनों ने महिलाओं का बेहिचक इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. बोको हराम जैसे संगठन महिलाओं को आत्मघाती हमलावरों की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं.
तथाकथित चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट भी अब महिलाओं को भर्तियों के लिए आमंत्रित कर रहा है.
इस वक्त ब्रिटेन के सुरक्षाबलों में सिर्फ 10 फीसदी ही महिलाएं हैं. सशस्त्र बलों के प्रति महिलाओं को तरह-तरह से आकर्षित करने की कोशिशें जारी है, लेकिन फिर भी इस करियर को पुरुषों के लिए ही माना जाता है.
अभी भी पर्याप्त रंगरूटों की भर्ती लक्ष्य से चार हज़ार कम है. इस पेशे को महिलाओं के लिए आकर्षक बनाने से इस कमी को पूरा किया जा सकता है.
इसी साल पुरुषों के मुकाबले तीस हज़ार महिलाएं ब्रिटेन में कोर्स शुरू कर सकती हैं.
लेकिन अगर ये महिलाएं ग्रेजुएशन के बाद सेना में आने के बारे में नहीं सोचती तो इस टेलेंट का सही उपयोग नहीं हो पाएगा.
हालांकि, इस दिशा में प्रगति काफी धीमी है.
द आर्म्ड फोर्सेज़ (फ्लेक्सिबल वर्किंग) बिल 2017 फिलहाल संसद में हैं. इसके तहत सशस्त्र बलों में पार्ट-टाइम भर्ती का प्रावधान होगा. जिससे परिवार वाले रंगरूटों को सेना में काम के लिए आकर्षित किया जा सके.
महिलाओं के लिए खास तौर पर युद्ध के लिए यूनिफॉर्म और हथियार तैयार किए जाएंगे. अब तक उन्हें पुरुषों के लिए बनी यूनिफॉर्म और हथियार इस्तेमाल करने होते हैं.
सेना प्रतिभाशाली और सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार को ट्रेनिंग और अवसर देती है. लेकिन फिर भी क्यों ब्रिटेन की 50% जनसंख्या इस करियर को नहीं चुन रही, ये सवाल हमें खुद से पूछना होगा?
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