गुजरात: प्रवासियों की गोलबंदी में जुटी भाजपा, चुनाव में चर्चा बिहार झारखंड व यूपी की

!!सूरत से अंजनी कुमार सिंह!! गोलू, शिवा, संजय, आशु अलग-अलग नाम हैं, लेकिन इन लोगों की कहानी एक जैसी है. अपने-अपने प्रदेशों से पलायन, संघर्ष और बेहतर जिंदगी की उम्मीद लिये गुजरात आने की कहानी. झारखंड के बारा मुंडा जब सूरत आये थे, तो इन्होंने कई रातें स्टेशन पर गुजारी थीं. कई दिनों तक खाने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 1, 2017 7:19 AM

!!सूरत से अंजनी कुमार सिंह!!

गोलू, शिवा, संजय, आशु अलग-अलग नाम हैं, लेकिन इन लोगों की कहानी एक जैसी है. अपने-अपने प्रदेशों से पलायन, संघर्ष और बेहतर जिंदगी की उम्मीद लिये गुजरात आने की कहानी. झारखंड के बारा मुंडा जब सूरत आये थे, तो इन्होंने कई रातें स्टेशन पर गुजारी थीं. कई दिनों तक खाने को लाले थे. लेकिन, आज वे घरवालों के साथ ही बच्चों की परवरिश अच्छे ढंग से कर रहे हैं. अपना घर भी बना लिया है. संजय को लोग यहां मामा बोलते हैं. खूशबू निशां मऊ से हैं और खाला जान के नाम से जानी जाती हैं. शिवा बिहार के हैं. यहां पर उन्हें शिवा भाई के नाम से बुलाया जाता है.

शिवा ने 2005 में वेल्डिंग का काम किया, फिर मशीन चलायी, कपड़ा उद्योग में काम किया, कुछ दिनों तक हीरे की पॉलिशिंग की. अब ऑटो चला रहे हैं. उनके पास अपना छत है और मजे से अपना और घर-परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ से आये राजन भी तरह-तरह के काम करने के बाद अब अपना धंधा कर रहे हैं. संजय बघेला राजस्थान से हैं. रतन दा बंगाल से हैं, तो श्रीलाला ओड़िशा तथा अरुण मध्य प्रदेश से हैं. सभी की कहानी मिलती-जुलती है- अभाव में रोजगार की तलाश में पलायन कर गुजरात आना और यहां रोजगार के साथ सम्मानजनक जीवन पा लेना.

पांडे सराय, नवागांव, पटेल नगर, पत्रकार नगर, पुलिस कॉलोनी और अमरोली जैसी कॉलोनियों में प्रवासियों की संख्या सबसे ज्यादा है. वैसे सूरत सहित पूरे गुजरात में आप कहीं भी चले जायें, प्रवासियों की तादाद काफी है. औद्योगिक हब होने के कारण सूरत में सभी प्रदेश से आये लोगों की तादाद ज्यादा है, इसीलिए सूरत को ‘मिनी भारत’ भी कहा जाता है. ऐसा कोई भी प्रदेश नहीं, जहां के लोग नहीं हों. यहां अलग-अलग प्रदेशों की संस्कृति की झलक भी अलग-अलग रूपों में देखने को मिल जाती है. गुजराती बज्जु भाई बताते हैं कि प्रवासियों के कारण ही गुजरात का विकास हुआ है. प्रवासी नहीं रहेंगे, तो यहां का सारा काम ठप पड़ जायेगा. यही कारण है कि यहां पर प्रवासियों और गुजरातियों में कोई भेद नहीं है.

प्रवासियों की तादाद वोट के लिहाज से काफी मायने रखती है. यही कारण है कि सभी दल प्रवासियों को अपनी ओर करने की जुगत भिड़ा रहे हैं. ज्यादातर प्रवासियों का स्पष्ट झुकाव भाजपा की ओर दिख रहा है. बताते हैं, रोटी और सम्मान दोनों मिला है. किसी तरह का भेदभाव नहीं हुआ है. फिर भाजपा को वोट नहीं देंगे, तो किसे देंगे‍? युवा प्रवासियों का झुकाव पीएम नरेंद्र मोदी के प्रति है. इन प्रवासियों ने मोदी को मुख्यमंत्री के तौर पर यहां काम करते हुए देखा है और अब प्रधानमंत्री के तौर पर देख रहे हैं, इसलिए गुजरात के विकास का सारा श्रेय वे मोदी को ही देते हैं. भाजपा ने बिहार-उत्तर प्रदेश-झारखंड के केंद्रीय नेताओं और मुख्यमंत्री को प्रवासियों के बीच उतारा है. इन नेताओं के दौरे के बाद प्रवासी भाजपा के पक्ष में गोलबंद होते दिख रहे हैं. वहीं कांग्रेस की ओर से इस तरह का कोई ठोस प्रयास अब तक दिख नहीं रहा है.

बिहार-झारखंड-यूपी के लोग भले ही यहां सुख-चैन में रह रहे हैं, लेकिन अपने प्रदेश की कसक इनके भीतर उतनी ही है, जितना उन प्रदेश में रहनेवालों की. अपने-अपने राज्य के विषय में पूछने से भी नहीं चूकते हैं. हर पार्टी के काम और नेताओं के बयान पर इनकी नजर होती है. सब कुछ के बावजूद भी प्रवासी कहलाने की टीस इनके भीतर है. वे कहते हैं, यदि अपने राज्य में काम मिले, तो यहां आने की क्या जरूरत है. अपने राज्य में विकास न होने का भी कारण बताते हुए कहते हैं- राजनीति, जात-पात और ऊंच-नीच का भेद. इसी वजह से प्रदेश पिछड़ता जा रहा है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के दौरे के बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार को लोग सुनना चाहते हैं. प्रदेश में शराबबंदी और दहेज विरोधी कानून को प्रवासी मील का पत्थर करार देते हैं. सभी प्रवासियों की उम्मीद और सपने भी समान लगते हैं. वे चाहते हैं कि उनका अपना राज्य भी विकसित राज्य बने, जिससे वहां की नयी पीढ़ी स्वेच्छा से प्रवासी बने, न कि किसी मजबूरी के तहत.

सड़कों की बेहतर सफाई व्यवस्था

रात के 12 बजे हैं. सड़कों पर सफाई का काम चल रहा है. मीरा बेन, सुधा बेन, लक्ष्मी बेन, अशोक भाई सहित कई लोगों की टोलियां सड़कों की सफाई में लगी हैं. पूछने पर बताते हैं कि वे लोग कॉन्ट्रेक्ट पर रात 10 बजे से दो बजे तक ड्यूटी करते हैं. 150 रुपये से लेकर 180 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से इन्हें मिलता है. नियमित सफाईकर्मी सुबह-शाम की शिफ्ट में काम करते हैं. यही कारण है कि यहां की सड़कें रात को भी चकाचक दिखती हैं. यदि मुख्य सड़कों पर कुछ गिर जाये, तो रात को भी उसे ढूंढ़ना मुश्किल नहीं होगा.

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