-भारत-थाइ के बीच विभिन्न मुद्दों पर करार-
।।बैंकॉक से अनुज कुमार सिन्हा।।
20 वर्षो की बातचीत के बाद भारत और थाइलैंड ने गुरुवार को बहुप्रतीक्षित प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किये. इससे द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग को प्रोत्साहन मिलेगा. इसके साथ ही दोनों देशों ने छह समझौतों/एमओयू पर हस्ताक्षर किये.
भारत के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और थाइ उप प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री सुरापोंग ताविचाकचैकुल ने इन सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किये. इस दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और थाई प्रधानमंत्री यिंगलग शिनावात्र भी मौजूद थीं.
संधि से होगा लाभ : इस संधि से आतंकवाद, अंतरराष्ट्रीय अपराधों और आर्थिक अपराधों में शामिल भगोड़े लोगों के प्रत्यर्पण में मदद मिलेगी. साथ ही दोनों देशों की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के संबंधों को भी मजबूती मिलेगी क्योंकि इसमें उनके द्विपक्षीय सहयोग के लिए कानूनी आधार मुहैया कराया गया है. गौरतलब है कि अंडरवल्र्ड डॉन और दूसरे प्रतिबंधित संगठनों के लोगों के लिए थाईलैंड शरण लेने के लिए लंबे समय से सुरक्षित स्थान रहा है.
जानकारी करेंगे साझा
धनशोधन एवं आतंकवाद को वित्तीय मदद मुहैया कराये जाने से संबंधित खुफिया जानकारियों के आदान-प्रदान पर सहयोग के लिए भारत की वित्तीय खुफिया इकाई और थाईलैंड के धनशोधन विरोधी संगठन के बीच सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये गये. इससे धनशोधन से संबंधित आपराधिक गतिविधि और आतंकवाद को वित्तीय मदद मुहैया कराने संबंधी जांच में मदद मिलेगी.
संबंधों को मिला नया आयाम
साझा बयान में दोनों देशों ने द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि का स्वागत करते हुए कहा कि इससे राष्ट्रीय हितों के खिलाफ काम करने वाले तत्वों से निबटने में कानूनी रूप से मदद मिलेगी. डॉ सिंह और यिंगलक ने द्विपक्षीय सहयोग को महत्वपूर्ण ढंग से बढ़ाने के संकल्प को दोहराया. वहीं, थाईलैंड ने भारत के रक्षा उद्योग में दिलचस्पी दिखायी है. बयान में इसकी झलक भी मिलती है जिसमें दोनों देशों ने परस्पर हित के क्षेत्रों में रक्षा उद्योग के सहयोग को जारी रखने पर सहमति व्यक्त की है. दोनों देशों ने सशस्त्र बलों के बीच निकटवर्ती संवाद और नियमित आदान-प्रदान की सराहना भी की है. बयान के मुताबिक दोनों पक्ष समुद्री लूट विरोधी सहयोग को बढ़ाने के साथ समुद्री इलाकों एवं तटरक्षक बलों के बीच सहयोग को बढ़ावा देंगे. दोनों पक्षों ने विशेषज्ञता के आदान-प्रदान के मकसद से छात्रवृत्ति और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को जारी रखने पर भी सहमति जतायी है.
आज लौटेंगे स्वदेश : इससे पूर्व थाईलैंड पहुंचने पर गुरु वार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की थाई उप प्रधानमंत्री युकोल लिमलामथोंग ने अगवानी की. डॉ सिंह शुक्र वार दोपहर स्वदेश के लिए रवाना होंगे. प्रधानमंत्री की यह यात्रा भारत की ‘लुक इस्ट’ नीति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से माना जा रहा है. भारत की इस नीति में थाईलैंड को आसियान क्षेत्र के प्रमुख द्वार के रूप में देखा जाता है. दोनों देशों के बीच व्यापार 2012-13 में बढ़ कर 9.2 अरब डॉलर तक पहुंच गया है.
थाईलैंड है पनाहगार: अंडरवल्र्ड डॉन और दूसरे प्रतिबंधित संगठनों के लोगों के लिए थाईलैंड शरण लेने के लिए लंबे समय से सुरक्षित स्थान रहा है. भारत दाऊद के साथ मुन्ना जिंगादा के जल्द प्रत्यर्पण की मांग करता रहा है. जिंगादा की तलाश मुंबई पुलिस को लंबे समय से है. वह कई मामलों में वांछित है. वह बैंकॉक की जेल में बंद है. उस पर भारत और पाकिस्तान दोनों दावा कर रहे हैं. साल 2001 में जिंगादा ने दाऊद के दाहिना हाथ माने जानेवाले छोटा शकील के कहने पर छोटा राजन पर हमला किया था. इस हमले में राजन घायल हो गया था, लेकिन प्रत्यर्पण से बचने के लिए अस्पताल से भाग गया. नगा उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल फॉर नगालिम (इसाक-मुइवा) भी यहां के चिंयांग माइ में अपना एक कार्यालय संचालित कर रहा है. उल्फा के नेता भी थाईलैंड को सुरक्षित स्थली के तौर पर इस्तेमाल करते रहे हैं.
‘हमारे बढ़ते सुरक्षा सहयोग को बड़ा प्रोत्साहन मिला है. दो दशक की बातचीत के बाद प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किये जाना और धनशोधन के खिलाफ सहमति पत्र से आतंकवाद, संगठित अपराध, मादक द्रव्यों की तस्करी और जालसाजी का मुकाबला करने के प्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता को लेकर बड़ा संदेश गया है.
मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री
बढ़ेगा सहयोग
-दोनों देश अपने मोस्ट वांटेड अंडरवर्ल्ड अपराधियों को कानून के दायरे में लाने के लिए प्रत्यर्पित कर सकेंगे
-आर्थिक सहयोग, विज्ञान-तकनीकी, शैक्षिक, सांस्कृतिक संबंधों को मिलेगा बढ़ावा
-जेलों में सजा पूरी करनेवाले अपने नागरिकों का आदान प्रदान करने पर सहमति
-अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग बढ़ायेंगे
-सूचना तकनीक और भौगोलिक सहयोग को बढ़ावा
-भारतीय भाषाओं की थाइलैंड में होगी पढ़ाई