एक बार तो हल हो गया था मंदिर-मस्जिद का विवाद, पढ़िये क्या निकाला गया था फाॅर्मूला

मनोज सिन्हा, मिथिलेश झा, राजीव चौबे अयोध्या में राममंदिर का मसला विवाद के करीब 144 साल बाद भी भले ही न सुलझा हो, लेकिन कहा जाता है कि एक बार तो विवादित स्थल पर मंदिर और मस्जिद का विवाद हल हो गया था. संभवतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्रों ‘पांचजन्य’ और ‘ऑर्गेनाईजर’ में इससे संबंधित […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 5, 2017 11:58 PM

मनोज सिन्हा, मिथिलेश झा, राजीव चौबे

अयोध्या में राममंदिर का मसला विवाद के करीब 144 साल बाद भी भले ही न सुलझा हो, लेकिन कहा जाता है कि एक बार तो विवादित स्थल पर मंदिर और मस्जिद का विवाद हल हो गया था. संभवतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्रों ‘पांचजन्य’ और ‘ऑर्गेनाईजर’ में इससे संबंधित रिपोर्ट भी छप गयी थी. इसमें कहा गया था कि नृत्यगोपाल दास की अध्यक्षता में रामचंद्रदास परमहंस के दिगंबर अखाड़ा में दोनों पक्षों की बैठक में समाधान का फाॅर्मूला बना. सहमति बनी कि विवादित ढांचे को चारों ओर से ऊंची-ऊंची दीवारों से घेर दिया जाये और उससे सटे राम चबूतरे पर भगवान राम की मंदिर का निर्माण किया जाये.

इसे भी पढ़ेंः रामजन्मभूमि मामले पर जल्द सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट, बोले स्वामी- जय श्री राम

मुस्लिम पक्ष ने यहां तक कह दिया था कि वह यह भी नहीं पूछेगा कि जिन ऊंची दीवारों से ढांचे को घेरा जा रहा है, उनमें दरवाजा किधर है. उसकी शर्त इतनी भर थी कि हिंदुओं की ओर से यह दावा भी नहीं किया जायेगा कि उनकी विजय हो गयी है या उन्होंने विवादित ढांचे पर कब्जा पा लिया है. तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ और परमहंस रामचंद्र दास के साथ जस्टिस देवकीनंदन अग्रवाल और दाऊदयाल खन्ना जैसे हिंदू नेता तो इससे सहमत थे ही, सैयद शहाबुद्दीन, सलाउद्दीन ओवैसी, सीएच मोहम्मद कोया और इब्राहीम सुलेमान सेठ जैसे मुस्लिम नेता भी इस विचार से इत्तेफाक रखते थे.

मुस्लिम नेताओं का मानना था कि सुलह समझौते के आधार पर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होना स्वयं मुसलमानों के हित में है. इससे उन्हें देश की मुख्यधारा में बने रहने और अलग-थलग पड़ने के खतरे से निबटने में मदद मिलेगी. तब विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल ने भी इसका स्वागत किया था. बाद में कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए कि मामले ने अलग रूप ले लिया और उसके बाद जो हुआ, वह इतिहास में दर्ज हो गया.

एक समय ऐसी भी स्थिति आयी कि भूमि के छोटे से टुकड़े के विवाद को आस्थाओं के विकट टकराव का विवाद बना दिया गया. वही लोग, जो विवाद को अदालत में ले गये थे, कहने लगे कि कोई भी अदालत इस मामले का फैसला नहीं कर सकती.

जारी….

Next Article

Exit mobile version