मजदूर नहीं ले पा रहे हैं योजनाओं का लाभ
झारखंड और बिहार में बड़ी संख्या में बीड़ी मजदूर हैं, जो पीढ़ीयों से इस पेशे में लगे हैं. इन मजदूरों के कल्याण के लिए श्रम कल्याण निधि बनायी गयी है. इस निधि से इन मजदूरों को आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं दी जानी हैं. इसके लिए बीड़ी कामगार कल्याण निधि अधिनियम, 1976 भी है […]
झारखंड और बिहार में बड़ी संख्या में बीड़ी मजदूर हैं, जो पीढ़ीयों से इस पेशे में लगे हैं. इन मजदूरों के कल्याण के लिए श्रम कल्याण निधि बनायी गयी है. इस निधि से इन मजदूरों को आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं दी जानी हैं.
इसके लिए बीड़ी कामगार कल्याण निधि अधिनियम, 1976 भी है और केंद्र सरकार की कई योजनाएं भी, लेकिन बिहार और झारखंड के सभी बीड़ी मजदूरों को इनका लाभ नहीं मिल रहा है. बीड़ी मजदूरों के लिए केंद्र सरकार की आवास योजना भी है, जिसमें 40 हजार रु पये केंद्र सरकार देती और चार हजार रु पये राज्य सरकार. आप केंद्र और राज्य सरकार से इन सबका हिसाब मांग सकते हैं. झारखंड के करमा में क्षेत्रीय श्रम कल्याण आयुक्त का कार्यालय है. आप सूचनाधिकार के तहत वहां से केंद्र सरकार की बीड़ी मजदूरों के लिए चलायी जा रही योजनाओं, राज्य के बीड़ी मजदूरों को अब तक इन योजनाओं के मिले लाभ, लाभुकों का ब्योरा आदि मांगें. आप राज्य और केंद्र सरकार के श्रम कल्याण निदेशालय से भी यह सूचना मांग सकते हैं. सच यह है कि जानकारी और जागरूकता के अभाव में हमारे मजदूर इन योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं.
पत्थर खदानों में सुरक्षा का सवाल उठाएं
राज्य में पत्थर खदान और क्र शर में लाखों मजदूर काम कर रहे हैं. इसमें नियमों का खुला उल्लंघन तो होता ही है, मजदूरों का भी बड़े पैमाने पर शोषण हो रहा है. मजदूरों की सुरक्षा और स्वास्थ्य का कोई ध्यान नहीं रखा जाता. खनन और श्रम विभाग के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन भी ऐसे मामलों की अनदेखी करता है. काम के दौरान अक्सर बड़ी दुर्घटनाएं होती हैं और मजदूरों की जान जाती है. पत्थर व्यवसायी पुलिस की मदद तथा बिचौलियों की सहायता से मामलों को रफा-दफा कर देता है. ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है. कानूनन मजदूरों को काम के दौरान उनकी सुरक्षा की पोशाक, चश्मा, हेलमेट और मास्क जैसी सुविधाएं मिलनी हैं. मजदूरों को स्वास्थ्य सहायता, शिशु गृह, कैंटीन, वर्दी, आराम करने की जगह आदि सुविधाएं दी जानी हैं. आप सूचनाधिकार के तहत इस विषय को उठा सकते हैं और खनन व श्रम विभाग से अपने क्षेत्र के पत्थर क्र शर और खदानों में मजदूरों की सुरक्षा-स्वास्थ्य संबंधी व्यवस्था, अधिकारियों द्वारा किये गये निरीक्षण की तिथि और रिपोर्ट आदि मांग सकते हैं.
मनरेगा के लाभुकों को है आपका इंतजार
राज्य में कूप निर्माण की योजनाओं में बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आते रहे हैं, जब सरकारी तंत्र की लापरवाही के कारण मनरेगा के लाभुकों को समय पर भुगतान नहीं होता है. इस तरह के ज्यादातर लाभुक मजदूर वर्ग के होते हैं. समय पर भुगतान नहीं होने से कूप धंस जाते हैं. उन्हें फिर से तैयार करने में अतिरिक्त धन की जरूरत होती है. स्वीकृत योजना की राशि बढ़ नहीं सकती. ऐसे में लाभुक और योजना दोनों को नुकसान होता है, जबकि सरकारी कर्मचारी इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होते. इसे लेकर सरकार की एजेंसी संवेदनशील भी नहीं है. आप सूचनाधिकार के अपने क्षेत्र या प्रखंड के ऐसे कूपों का ब्योरा, भुगतान में विलंब के लिए दोषी कर्मचारी, मामले में की गयी कार्रवाई तथा ऐसी योजनाओं को पूरा कराने की वैकिल्पक व्यवस्था आदि से जुड़ी सूचना मांग सकते हैं. इससे मनरेगा की एजेंसियां ऐसे मामले में गंभीर भी बन सकती हैं.
अंतर-राज्य प्रवासी कामगार अधिनियम
अंतर-राज्य प्रवासी कामगार (रोजगार और सेवा-दशाओं का विनियमन) अधिनियम, 1979
प्रवासी कामगारों के अधिकारों व हितों की रक्षा के लिए है. इस अधिनियम का उद्देश्य एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवासन करनेवाले कामगारों के नियोजन और उनकी सेवा-शर्तों को तय करना है. यह अधिनियम उन सभी प्रतिष्ठानों और ठेकेदारों पर लागू है, जो अंतरराज्यीय प्रवासन करनेवाले पांच या उससे अधिक कामगारों को बहाल करते हैं. अधिनियम में प्रत्येक अंतरराज्यीय-प्रवासन वाले कामगार को पासबुक जारी करने का प्रावधान है, जिसमें उसके विस्थापन भत्ते, यात्र भत्ते और यात्र की अविध में मजदूरी के भुगतान के ब्योरे अंकित होने हैं. साथ ही कामगार के उपयुक्त आवास-सुविधा, मेडिकल सुविधा तथा सुरक्षा पोशाक, मजदूरी के भुगतान, बिना लिंग-भेद के समान कार्य के लिए समान वेतन आदि के पूरे ब्यौरे भी अंकित होने हैं. केंद्र सरकार के प्रतिष्ठानों में इस कानून को लागू करने की जिम्मेवारी मुख्य श्रम आयुक्त की है और राज्यों के क्षेत्रिधकार में स्थित प्रतिष्ठानों की जिम्मेवारी संबंधित राज्य सरकारों की है. राज्य सरकारों के क्षेत्रिधकार में ऐसे मामले श्रमायुक्त और उनके अधीनस्थ अधिकारी देखते हैं.
मोटर परिवहन कामगार अधिनियम, 1961
बड़ी संख्या में मानव संसाधन का इस्तेमाल मोटर परिवहन में होता है. मोटर परिवहन में लगे कामगारों के कल्याण, उनके काम की दिशा और सुरक्षा आदि तय करने के लिए यह कानून बनाया गया है. जिस मोटर परिवहन में पांच या उससे ज्यादा कामगार काम करते हैं, वहां यह कानून लागू है. हालांकि केंद्रीय कानून में राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया कि वे चाहें, तो उन मोटर परिवहन में भी इसे लागू कर सकती हैं, जहां पांच से कम कामगार काम करते हों. भाड़ा लेकर सवारी या सामान या दोनों को सड़क-मार्ग से ढोने वाले वाहन इसमें शामिल हैं. इसके दायरे में प्राइवेट कैरियर भी आते हैं. जिस मोटर परिवहन उपक्र म पर यह कानून लागू होता है, उसके मालिक को इस अधिनियम के तहत अपने उपक्र म को पंजीकृत कराना है और यह सुनिश्वित करना है कि एक वयस्क परिवहन कामगार को एक दिन में आठ घंटे और एक सप्ताह में अड़तालीस घंटे से अधिक तथा किसी किशोर को एक दिन में छह घंटे से अधिक समय तक काम करने के लिए न तो कहेगा और न इसकी अनुमति देगा.
दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम 1953
यह कानून उनके हितों की रक्षा करता है, जो किसी दुकान में काम करते हैं और बदले में उन्हें दुकान के मालिक की ओर से माह में वेतन दिया जाता है या फिर और किसी तरीके से मजदूरी दी जाती है. यह केवल मजदूरों के लिए ही है. अगर किसी दुकान के मालिक ने अपने परिवार के किसी सदस्य को नियुक्त किया है, तो वह इस कानून के दायरे में नहीं आता है. इस कानून के तहत एक दुकानदार को अपना व्यवसाय शुरू करने के 30 दिनों के भीतर निबंधन कराने तथा दुकान का कारोबार बंद करने के 15 दिनों के भीतर इसकी सूचना देने के लिए बाध्य किया गया है. इसमें कामगार की नियुक्ति, उनकी सेवा और उनसे काम लेने के तरीके, उनके कल्याण, सुरक्षा आदि के प्रावधान किये गये हैं.
यह राज्य का कानून है. राज्य सरकार को यह अधिकार वह इसके लिए नियम बनाये तथा किसी खास प्रतिष्ठान को कुछ खास समय के लिए या हमेशा के लिए इस पूरे कानून या इसके किसी भाग से मुक्त कर दे. इस अधिनियम के तहत हर दुकान के लिए दैनिक व साप्ताहिक काम-काज के घंटे तय होने हैं. कामगार को हर दिन काम की पूरी अविध के बीच में आराम का समय देना है. साथ ही उसके साप्ताहिक अवकाश, कार्य आरंभ और समापन का समय, राष्ट्रीय एवं धार्मिक छुट्टी, ओवरटाइम आदि का भी इसके तहत प्रावधान सुनिश्चित किया जाना है.