जानते हैं कि फंसेंगे, फिर भी नहीं सुधरते नेता!
।। अनुज सिन्हा।। (वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर) मुंबई एक अखबार में खबर छपी है कि केंद्रीय मंत्री कमलनाथ 500 हेक्टेयर वनभूमि बिल्डरों को सौंपने के लिए रास्ता खोज रहे हैं. सरकारी नियम-कानून में बदलाव कर जिस जमीन को बिल्डरों को देने की तैयारी चल रही है, उसकी कीमत 50 हजार करोड़ रुपये आंकी जा रही […]
।। अनुज सिन्हा।।
(वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर)
मुंबई एक अखबार में खबर छपी है कि केंद्रीय मंत्री कमलनाथ 500 हेक्टेयर वनभूमि बिल्डरों को सौंपने के लिए रास्ता खोज रहे हैं. सरकारी नियम-कानून में बदलाव कर जिस जमीन को बिल्डरों को देने की तैयारी चल रही है, उसकी कीमत 50 हजार करोड़ रुपये आंकी जा रही है. यह मामूली राशि नहीं है. कमलनाथ मंजे हुए नेता हैं, लेकिन वे भी अतीत से सबक नहीं ले रहे हैं. संभव है, उन्हें अहसास हो कि विदाई की बेला है, इसलिए जो निर्णय लेना हो, लेकर निकल जायें. फिर मौका मिले या नहीं? यह सिर्फ एक मंत्री का हाल नहीं है. केंद्र हो या राज्य सरकार, जिसे जहां मौका मिला, लूटने का मौका नहीं गंवाया. परिणाम भी जानते हैं. उन्हें पता है कि देर भले ही हो, लेकिन सरकार का पैसा हड़पनेवालों की जगह जेल में होगी, फिर भी मानते नहीं हैं. नेताओं की सबसे बड़ी कमी यही है. अतीत से वे सबक नहीं लेते.
हाल ही में एक अन्य केंद्रीय मंत्री ने एक बड़े स्टील प्लांट के पक्ष में निर्णय लिया और उस जगह प्लांट लगाने की मंजूरी दे दी, जहां लोगों का भारी विरोध था. कई सालों से सरकार इस प्लांट पर फैसला नहीं ले रही थी. अब चुनाव का वक्त आया, तो जल्दबाजी में फैसला ले लिया. हर दल और हर प्रत्याशी को चुनाव लड़ने के लिए पैसा चाहिए. चुनाव पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं. कोई नेता ये पैसे अपनी जेब से खर्च नहीं करता. उसे चुनाव लड़ने के लिए पैसे मिलते हैं. अगर जीत गये तो सूद समेत वसूल, वरना गया पैसा. चुनाव में पैसा लगानेवाले कुछ लोग बहुत तेजतर्रार होते हैं. काम करो, जो मांगो दे देंगे. बड़े फैसले के पीछे यह सब भी हो सकता है. बिल्डर मंदिर बनाने के लिए तो जमीन नहीं ही ले रहे होंगे. कोई समाज सेवा तो नहीं करेंगे. पैसा ही कमायेंगे. ऐसे में कोई भी मंत्री इतना बड़ा जोखिम लेकर क्यों किसी बिल्डर को जमीन दिलाने की व्यवस्था करेगा, जब तक कि उसका अपना फायदा न हो रहा हो.
नेताओं के बारे में आम धारणा यही है कि वे बेईमान होते हैं. भ्रष्ट होते हैं. कुछ अपवाद को छोड़ दें तो यह धारणा गलत भी नहीं है. इस चुनाव में जितने प्रत्याशी खड़े हैं, अगर उनकी प्रोफाइल को देखें तो एक बड़ा हिस्सा उस तबके का है जिन पर कई आपराधिक मामले चल रहे हैं. हत्या, भ्रष्टाचार, लूट और दुष्कर्म के आरोपी (मुजरिम नहीं) अगर जीत कर मंत्री बन जायें तो रातो-रात उनका हृदय परिवर्तन नहीं हो जायेगा. वे सुधरनेवाले नहीं हैं. सच तो यह है कि चुनाव जीतने के बाद उन्हें लूटने का सरकारी लाइसेंस मिल जायेगा. वे लूटेंगे, किसी सरकारी सरकारी संपत्ति को गिरवी रख देंगे, बेच देंगे. पैसे को स्विस बैंक में भेज देंगे, अपनी कंपनी खड़ी कर लेंगे. लेकिन एक न एक दिन पाप का घड़ा फूटेगा. वे पकड़े जायेंगे, जेल जायेंगे. फिर भी उन्हें शर्म नहीं आयेगी.
दूरसंचार घोटाले में सुखराम जेल गये, पशुपालन घोटाले में लालू प्रसाद जेल गये, 2जी में ए राजा जेल गये. झारखंड और बिहार के कई मंत्री, पूर्व मंत्री जेल गये. इनमें तो कई साल भर से ज्यादा जेल में रहे, फिर निकले. इन घटनाओं को पूरा देश जानता है. इसके बावजूद कहां सुधर रहे हैं नेतागण? मौका मिलते ही सरकारी खजाने को खाली करने में लग जाते हैं. इस बार भी तो यही हो रहा है. नेताओं के इसी चरित्र के कारण उनकी प्रतिष्ठा गिरी है. हां, कुछ साफ-सुथरे लोग अब राजनीति में आ रहे हैं. अगर इन्हें मौका मिले (ऐसे लोगों का चुनाव जीतना काफी मुश्किल होता है) तो राजनीति बदल सकती है. ऐसा तभी होगा जब अच्छे लोग जीतने के बाद भ्रष्ट न होने लगें. डर यही होता है कि दिल्ली पहुंच कर अच्छे गुणवालों को भी कहीं वहां की हवा न लग जाये.
नेताओं के लिए यही बेहतर है कि वे सुधर जायें. जनता उनकी करतूत को देख रही है. भ्रष्ट, बेईमानों को न सिर्फ चुनाव में हरायेगी, बल्कि देश को बेचनेवालों को छोड़ेगी भी नहीं. देश का कानून काफी सख्त है. अगर कानून का ढंग से पालन होने लगे तो किस नेता की मजाल कि वह गड़बड़ी करे.