!!आणंद से अंजनी कुमार सिंह!!
आणंद जिले की पहचान अमूल डेयरी से भी है. इस आनंद से सरदार वल्लभभाई पटेल का भी नाता रहा. इस जिले में विधानसभा की छह सीटें- बोरसाड, अंकलाव, उमरेठ, आणंद, पेटलाड और सोजिट्रा हैं. कृषि बहुल आनंद में कांग्रेस का मजबूत आधार रहा है, लेकिन इस बार पूर्व कांग्रेसी नेता एवं अमूल डेयरी के चेयरमैन रामसिंह परमार भाजपा में हैं. वह आणंद के विधायक हैं और कोऑपरेटिव डेयरी का इलाके के लोगों पर काफी प्रभाव है. आणंद में तंबाकू की खेती बड़े पैमाने पर होती है, लेकिन किसानों काे सही दाम नहीं मिल रहे. मोगरी गांव के सरपंच मिलन भाई कहते हैं कि पहले तंंबाकू 1100 रुपये मन बिकता था, लेकिन इसकी कीमत अब घटकर 700 रुपये हो गयी है. इस गांव के पटेल हार्दिक के आंदोलन को गैरजरूरी बता रहे हैं. छात्र द्रमुक कहते हैं, पटेलों की समस्या का समाधान सिर्फ आरक्षण नहीं है.
सरदार पटेल को नेहरु-गांधी जैसा सम्मान नहीं मिला : सरदार पटेल के गांव करमसद के लोग मानते हैं कि लौहपुरुष की उपेक्षा हुई. उन्हें गांधी-नेहरू जैसा सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे. करमसद अब तालुका बन गया है. यहां के अधिकतर लोग विदेशों में बस गये हैं और यह बिहार एवं यूपी के लोगों के रहने का प्रमुख स्थान बन गया है. गांव का एक व्यक्ति कहते है, एक दिन यहां भी महाराष्ट्र जैसा होगा. उसका इशारा बिहार-यूपी के लोगों के यहां बसने के मुद्दे पर राजठाकरे की ओर इशारा था.
पटेल के नाम नहीं, आदर्शों को अपनाएं
करमसद गांव के लोग चाहते हैं कि पटेल के नाम पर बड़ी इमारत बनाने की बजाय उनके विचारों और आदर्शों को अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाये. गांववाले मानते हैं कि मोदी सरकार में पटेल को जिस तरह से सम्मान मिला है, वह गर्व की बात है. वहीं कुछ लोग कहते हैं कि चुनावी फायदे के लिए पटेल के नाम का प्रयोग करना गलत है.
कोई-न-कोई नेता आता ही रहता है
करमसद की एक संकरी गली से जाने के बाद सरदार पटेल का घर सरदार घर आता है, जिसे म्यूजियम बनाया गया है. घर में सरदार पटेल के फोटो के सिवा कुछ भी नहीं है. म्यूजियम में उन पर एक डॉक्यूमेंट्री दिखायी जाती है. म्यूजियम में रियासतों के विलय को तस्वीर के जरिये दिखाया गया है. सरदार के घर के केयर टेकर किंजल राय बताते हैं कि दिनभर यहां कोई-न-कोई नेता आता ही रहता है. शिल्पा बेन कहती हैं, नरेंद्र मोदी के बड़ा प्रधान बनने के बाद से सरदार के नाम पर कुछ काम हुए हैं. सरोज बेन कहती हैं, सरदार पटेल की सोच और उनके कामों का प्रचार-प्रसार पूरी तरह नहीं हुआ है.