आक्रामक दिखी कांग्रेस तो माहौल भांप नरेंद्र मोदी ने आखिरी ओवर में लगाया था जोर

गुजरात चुनाव के नतीजे कुछ देर में घोषित हो जायेंगे. लंबे अर्से से चल रहे चुनावी चर्चो पर विराम लग जायेगा. नतीजों और प्रचार के हिसाब से देखे तो यह हाल के दिनों को सबसे दिलचस्प चुनाव साबित हुआ है. जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा दिखी. चुनाव से दो साल पहलेपटेल आंदोलन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 18, 2017 12:44 PM

गुजरात चुनाव के नतीजे कुछ देर में घोषित हो जायेंगे. लंबे अर्से से चल रहे चुनावी चर्चो पर विराम लग जायेगा. नतीजों और प्रचार के हिसाब से देखे तो यह हाल के दिनों को सबसे दिलचस्प चुनाव साबित हुआ है. जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा दिखी. चुनाव से दो साल पहलेपटेल आंदोलन के बीच ही आनंदी बेन को सीएम पद से हटाया गया और विजय रूपाणी के हाथों गुजरात की कमान सौंपी गयी. पटेल को हटाकर गैर पटेल के हाथों सत्ता सौंपने का फैसला आसान नहीं था. इस फैसले से पटेल समुदाय की नाराजगी झेलने का डर था. उधर गुजरात में भाजपा के लिए कई और मुश्किलें इंतजार कर रही थी. दलित नेता जिग्नेश मवानी तेजी से जगह बना रहे थे. अल्पेश ठाकोर भी भाजपा को कई इलाके में चुनौती देने का काम कर रहे थे. हार्दिक पटेल तो पहले से ही पटेल नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे.

गुजरात से पहले हर चुनावों में कांग्रेस पार्टी सुस्त और रक्षात्मक मूड में नजर आयी लेकिन चुनाव के घोषणा के साथ कांग्रेस ने आक्रमक रूख अख्तियार किया. इस बीच भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी गुजरात के राजनीतिक डेवलेपमेंट पर लगातार नजर बनाये हुए थे. राज्यसभा चुनाव के दौरान अहमद पटेल के चुनाव को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच जबर्दस्त टक्कर देखने को मिल गयी. अहमद पटेल जीत गये. इस जीत के बाद कांग्रेस ने गुजरात में रणनीति बनाना शुरू कर दिया. सबसे पहले तीन युवा नेताओं को अपने खेमे में किया. चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता अहमदाबाद और गांधीनगर से ही वापस नहीं लौटे बल्कि गुजरात के ग्रामीण व दूर – दराज इलाकों तक भी गये. कारोबारियों के शहर सूरत में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उतारा गया. कांग्रेस उनके अर्थशास्त्री के पृष्ठभूमि को भुनाना चाहती थी.
गुजरात अस्मिता का सवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
पिछले बीस सालों में यह पहला चुनाव था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री नहीं थे और बीजेपी चुनाव लड़ रही थी. भाजपा के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का विषय था. यह चुनाव कहीं और नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी के गृह राज्य में लड़ा जा रहा था. अमित शाह ने अध्यक्ष की कुर्सी संभालते ही कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि हमें लोकसभा चुनाव से लेकर वार्ड चुनाव तक में भी पूरा जोर देना होगा. स्पष्ट संकेत था कि भाजपा एक – एक चुनाव महत्वपूर्ण मानती है. चुनाव के अंतिम बीस दिन बेहद अहम हो गये. एक तरफ राहुल गांधी मंदिर -दर – मंदिर जा रहे थे. लड़ाई हार्ड हिंदुत्व बनाम सॉफ्ट हिंदुत्व का दिख रहा था. टक्कर कांटे की दिख ही रही थी कि उधर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने मोदी को लेकर बेहद अपमानजनक बयान दे दिया. इसके बाद हवा का रूख मोदी ने भांप लिया और चुनाव को गुजराती अस्मिता से जोड़ दिया. गुजरात में भाजपा से लोगों को नाराजगी है लेकिन मोदी की करिश्माई छवि वहां के जनता में आज भी दर्ज है.
हिंदी पट्टी के इलाकों को छोड़ दिया जाये तो गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल , तमिलनाडु समेत दक्षिण के तमाम राज्यों में क्षेत्रीय अस्मिता का जोर बहुत ज्यादा रहता है. आमतौर पर देखा जाता है कि दूसरे प्रदेश के नेताओं को यहां जाकर चुनाव लड़ जीत हासिल नहीं कर पाते हैं. नरेंद्र मोदी गुजरात से है. भाजपा की जीत का सबसे बड़ा कारक रहा.

Next Article

Exit mobile version