जानें, महात्मा गांधी की हत्या के बाद, क्या कहा था जिन्ना ने…

महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को कर दी गयी थी. यह एक ऐसी घटना थी, जिसका प्रभाव सिर्फ देश में ही नहीं विदेशों पर भी पड़ा था. कोई अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की हत्या कर सकता है, यह जान लोग स्तब्ध थे. लोगों के मन में उनके लिए कितना सम्मान और प्रेम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 29, 2018 4:42 PM

महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को कर दी गयी थी. यह एक ऐसी घटना थी, जिसका प्रभाव सिर्फ देश में ही नहीं विदेशों पर भी पड़ा था. कोई अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की हत्या कर सकता है, यह जान लोग स्तब्ध थे. लोगों के मन में उनके लिए कितना सम्मान और प्रेम था इसे ऐसे समझा जा सकता है कि देश बंटवारे के बाद भड़की हिंसा को भी मात्र गांधी ही शांत करा पा रहे थे. देश में भड़की हिंसा को शांत करने के लिए वे लगातार उपवास कर रहे थे, जिसका असर आम लोगों पर तो दिख ही रहा था. लेकिन 30 जनवरी की शाम को जो हुआ, वह अविश्वसनीय जैसा था. इस घटना के बाद पूरे विश्व से प्रतिक्रियाएं आयीं, लेकिन पाकिस्तान की ओर से ऐसी प्रतिक्रिया आयी, जिसकी उम्मीद नहीं थी.

मोहम्मद अली जिन्ना की प्रतिक्रिया
उस वक्त देश का बंटवारा हुए कुछ महीने ही बीते थे और पाकिस्तान को आर्थिक मदद ‘स्टर्लिंग बैंलेस’ दिलाने के लिए भी गांधीजी ने प्रयास किये थे. गांधी जी ने उपवास रखकर भारत सरकार पर यह दबाव बनाया था कि वह 55 करोड़ की राशि पाकिस्तान को दे दे, जो ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत के योगदान की एवज में दोनों देश को दिया था. गांधीजी के प्रयासों से ही पाकिस्तान को वह राशि मिल पायी थी, लेकिन उनकी हत्या पर मोहम्मद अली जिन्ना की ओर से मात्र एक पंक्ति की प्रतिक्रिया आयी थी. प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब ‘ भारत गांधी के बाद’ में लिखा गया है, जिन्ना ने अपनी प्रतिक्रिया में मात्र इतना ही कहा कि उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी की मृत्यु से हिंदू समाज को गहरी क्षति पहुंची है.

अल्बर्ट आइंस्टीन और जॉर्ज बर्नाड शॉ ने भी जताया था शोक
महात्मा गांधी को 20वीं सदी का सबसे महान व्यक्ति घोषित करने वाल अल्बर्ट आइंस्टीन ने उनके निधन पर भावभीनी श्रद्धांजलि दी थी, वहीं पहले महात्मा गांधी को दिखावटी इंसान बताने वाले अंग्रेज लेखक जॉर्ज आरवेल ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की थी, क्योंकि अब वे उन्हें संत मानने लगे थे. वहीं नोबल पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार जॉर्ज बर्नाड शॉ ने एक अलग तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, उन्होंने कहा था- अच्छा होना कितना खतरनाक है.

लिंक को क्लिक कर गांधीजी पर पढ़ें कुमार प्रशांत का आलेख

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