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#70 years of assassination महात्मा की हत्या के बाद विवाद सुलझाने के लिए नेहरू ने पटेल को लिखा खत

महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 के शाम को तब कर दी गयी थी जब वे प्रार्थना सभा में भाग लेने के लिए जा रहे थे. इस वर्ष उनकी शहादत के 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं. जिस वक्त गांधी जी की हत्या हुई उस वक्त देश का माहौल कैसा था, देश-विदेश में कैसी […]

महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 के शाम को तब कर दी गयी थी जब वे प्रार्थना सभा में भाग लेने के लिए जा रहे थे. इस वर्ष उनकी शहादत के 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं. जिस वक्त गांधी जी की हत्या हुई उस वक्त देश का माहौल कैसा था, देश-विदेश में कैसी प्रतिक्रिया हुई. आखिर नाथूराम गोडसे के मन में क्या नाराजगी थी कि उसने गांधीजी की हत्या कर दी. इन तमाम बातों को को हमने अपने आलेख में समेटने की कोशिश की है, प्रस्तुत हैं चंद आलेख जो इन घटनाओं की जानकारी देंगे.

भारत की आजादी के बाद महात्मा गांधी के दोनों प्रिय शिष्य सरकार में शीर्ष पदों पर थे. पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने थे, जबकि वल्लभ भाई पटेल उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री थे. इन दोनों के बीच कई मुद्दों पर विवाद था, लेकिन महात्मा गांधी की हत्या के बाद दोनों ने अपने विवाद को किनारे रखा और देश को एकजुट करने में जुट गये थे.

महात्मा की हत्या के बाद विवाद सुलझाने के लिए नेहरू ने पटेल को लिखा खत
महात्मा की हत्या के तीन दिन बाद नेहरू ने पटेल को एक खत लिखा, जिसमें उन्होंने लिखा- बापू की मृत्यु के साथ ही सबकुछ बदल गया है और हमें एक अलग और कठिन दुनिया का सामना करना है. मुझे लगता है कि पुराने विवाद अब महत्वपूर्ण नहीं हैं और समय के अनुसार हमें मिलकर साथ में काम करना चाहिए. इस पत्र के जवाब में पटेल ने लिखा- मैं भी पूरी तरह से, दिल से यही बात चाहता हूं, जो आपने इतने भावुक तरीके से कही. हमें यह अहसास होना चाहिए कि जब आज पूरा मुल्क शोक में डूबा है, देश को हमारे संयुक्त प्रयास की जरूरत है.

महात्मा की हत्या के बाद बोले थे पटेल-बदला लेने की जरूरत नहीं

महात्मा गांधी की हत्या के बाद देश गृहयुद्ध के मुहाने पर खड़ा था. ऐसे वक्त में अॅाल इंडिया पर बोलते हुए पटेल ने लोगों से अपील की-आप बदला लेने की बात ना करें, बल्कि महात्मा जी के द्वारा दिये गये प्रेम और अहिंसा के संदेशों को ग्रहण करें. यह हमारे लिए शर्म की बात है कि दुनिया के सबसे महान आदमी को अपनी जान की कीमत उस पाप के लिए चुकानी पड़ी, जो पाप हमने किया है. जब वे जीवित थे, तब हमने उनकी बातों पर अमल नहीं किया, अब कम से कम उनके मरने के बाद हमें उनकी बातों पर अमल करना चाहिए.

महात्मा की चिता की राख को इलाहाबाद में नेहरू ने किया विसर्जित

पंडित नेहरु जो महात्मा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी थे, उन्होंने उनकी चिता की राख को इलाहाबाद में संगम में प्रवाहित करने के बाद बोले थे- हमने बहुत ही महंगे मूल्य पर अपना सबक सीखा है. क्या हमारे बीच कोई ऐसा है जो गांधी की मृत्यु के बाद उनके मिशन को पूरा करने से इनकार करेगा. हमें एक होकर सांप्रदायिकता के भयानक जहर के खिलाफ लड़ाई लड़नी है, जिसने हमारे युग के सबसे महान इंसान को हमसे छीन लिया.


अपूर्वानंदन का आलेख पढ़ें : गांधी पुण्यतिथि : करूं या मरूं!

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