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टीपू सुल्तान पर राजनीति से फ़ायदा किसको?

बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के दिल्ली विधानसभा में 17वीं शताब्दी के शासक टीपू सुल्तान की तस्वीर लगाने पर विरोध जताया है. बीजेपी-अकाली दल के विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा है कि उन्होंने टीपू सुल्तान की जगह सिख नेता जस्सा सिंह अहलूवालिया की तस्वीर लगाने का सुझाव दिया था. बीजेपी इससे पहले भी टीपू […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 30, 2018 12:25 PM

बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के दिल्ली विधानसभा में 17वीं शताब्दी के शासक टीपू सुल्तान की तस्वीर लगाने पर विरोध जताया है.

बीजेपी-अकाली दल के विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा है कि उन्होंने टीपू सुल्तान की जगह सिख नेता जस्सा सिंह अहलूवालिया की तस्वीर लगाने का सुझाव दिया था.

बीजेपी इससे पहले भी टीपू सुल्तान पर अपना रुख स्पष्ट कर चुकी है.

केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने बीते साल अक्टूबर में टीपू सुल्तान की जयंती मनाए जाने पर उन्हें बर्बर हत्यारा कहा था.

उस वक्त अनंत कुमार ने ट्वीट किया था, "मैंने कर्नाटक सरकार से कहा है कि मुझे एक बर्बर हत्यारे, सनकी और बलात्कारी को महिमामंडित किए जाने वाले किसी भी शर्मनाक कार्यक्रम में न बुलाए."

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बीते सालों में टीपू सुल्तान की जयंती मनाए जाने पर हिंसक विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं.

साल 2015 में कर्नाटक के कोडागु ज़िले में टीपू सुल्तान की जयंती के विरोध में एक प्रदर्शन के दौरान विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यकर्ता की मौत हो गई थी. इसके साथ ही कई लोग घायल हुए थे.

टीपू सुल्तान पर आरएसएस का रुख?

टीपू सुल्तान की जयंती मनाए जाने पर आरएसएस समेत तमाम हिंदूवादी संगठनों ने विरोध जताया था.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारक राकेश सिन्हा ने आम आदमी पार्टी द्वारा टीपू सुल्तान की तस्वीर लगाने पर बीबीसी से बात करते हुए अपना पक्ष रखा है.

राकेश सिन्हा कहते हैं, "टीपू सुल्तान ने अपने शासन का प्रयोग हिंदुओं का धर्मांतरण करने के लिए किया और यह उनका मिशन था. इसके साथ ही उन्होंने हिंदुओं मंदिर को तोड़े, हिंदू महिलाओं की इज्जत पर प्रहार किया और ईसाइयों के चर्चों पर हमले किया. इस वजह से हम ये मानते हैं कि राज्य सरकारें टीपू सुल्तान पर सेमिनार कर सकती हैं और उनके अच्छे बुरे कामों पर चर्चा कर सकती हैं. लेकिन विधानसभा और लोकसभा में उनकी तस्वीरें लगाकर राज्य सरकारें क्या संदेश देना चाहती हैं.?"

टीपू सुल्तान को उस दौर की कृषि व्यवस्था में सुधार के लिए भी जाना जाता है.

आरएसएस विचारक टीपू सुल्तान को इस नज़रिए से देखने पर कहते हैं, "किसी भी शासक के सामाजिक दर्शन का मूल्यांकन उस अवसर पर होता है जब आपकी ताकत चरम पर होती है. टीपू सुल्तान ने अपने अंतिम समय में लाचारी की स्थिति में अपने ज्योतिषी के कहने पर श्रृंगेरी मठ की मदद की. लेकिन उनका पूरा काल धर्मांतरण से भरा हुआ है."

"किसी भी दौर के शासक के लिए ये जरूरी है कि वो राजधर्म का पालन करे. यदि आप शासक हैं तो आपको अपनी पूरी जनता को एक समान नज़र से देखना होगा. ऐसा नहीं करने वाला कोई भी शासक इतिहास में हाशिए पर जगह पाता है. क्या हम ऐसे शासकों को युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनने दे सकते हैं?"

टीपू सुल्तान पर बीजेपी की राजनीति?

कर्नाटक में बीजेपी के लिए टीपू सुल्तान बीते काफ़ी समय से एक अहम मुद्दा बने हुआ हैं.

बीजेपी की राजनीति पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश शर्मा ने बीबीसी से बात करते हुए बीजेपी द्वारा पहले कर्नाटक और अब दिल्ली में टीपू सुल्तान का विरोध करने की वजह बताई है.

अखिलेश शर्मा कहते हैं, "बीजेपी ने दिल्ली में टीपू सुल्तान करने की वजह ये है कि बीजेपी टीपू सुल्तान के मुद्दे को ज़िंदा रखना चाहती है. दिल्ली में बीजेपी को सिखों का समर्थन चाहिए क्योंकि अकालियों की दिल्ली में उतनी पैठ नहीं है. अभी जो विधायक टीपू सुल्तान की तस्वीर का विरोध करने की जगह सिख नेता की तस्वीर लगाने की बात कर रहे हैं, वो बीजेपी के टिकट पर जीतकर आए हैं. ऐसे में उनके लिए ज़रूरी है कि वो सिख नायकों की बात करें.

बीजेपी-अकाली विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा है कि उन्होंने सुझाव दिया था कि दिल्ली विधानसभा में टीपू सुल्तान की जगह सिख नेता जस्सा सिंह अहलूवालिया की तस्वीर लगानी चाहिए.

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बीजेपी बीते कई सालों से कर्नाटक में टीपू सुल्तान की जयंती मनाए जाने का विरोध कर रही है.

अखिलेश शर्मा कर्नाटक में इस मुद्दे पर राजनीति पर कहते हैं, "कर्नाटक में बीजेपी इसे एक बड़ा मुद्दा बनाकर रखेगी. इसकी वजह ये है कि बीजेपी वहां पर कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को हिंदू विरोधी नेता साबित करना चाहती है. और ये भी कि उनकी नीतियां हिंदू विरोधी हैं."

"हाल ही में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ कुछ मामलों को वापस लेने की बात हुई थी तो बीजेपी ने मुद्दा बनाया था कि इन केसेज़ को वापस क्यों लिया जा रहा है. अनंत हेगड़े वहां पर टीपू सुल्तान को एक बड़ा मुद्दा बनाना चाहते हैं. बीजेपी को लगता है कि अगर टीपू सुल्तान की ज़्यादतियों का ज़िक्र करें, उन्हें एक खलनायक की तरह पेश करें तो कर्नाटक के तटीय क्षेत्रों में पार्टी को वोट मिल सकते हैं. और राज्य भर में सिद्धारमैया की हिंदू-विरोधी छवि बनाने से मदद मिल सकती है."

विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर बीजेपी पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाती हैं.

अखिलेश शर्मा बताते हैं, "विडंबना ये है कि इस मुद्दे पर बीजेपी की राय बदलती रहती है क्योंकि एक समय में जब कर्नाटक में बीजेपी की सरकार थी तो मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर ने उन्हें एक नायक बताया था. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी कर्नाटक विधान सौधा की 60वीं सालगिरह के मौके पर टीपू सुल्तान की तारीफ़ की थी. ऐसे में बीजेपी के लिए ये कोई स्थाई मुद्दा नहीं है और इस पर उनकी राय ज़रूरत के हिसाब से बदलती रहती है."

क्या टीपू सुल्तान एक सांप्रदायिक शासक थे?

अगर इतिहास की मानें तो टीपू सुल्तान को सांप्रदायिक शासक सिद्ध करने की कहानी गढ़ी हुई है.

टीपू से जुड़े दस्तावेज़ों की छानबीन करने वाले इतिहासकार टीसी गौड़ा कहते हैं, "ये कहानी गढ़ी गई है."

टीपू ऐसे भारतीय शासक थे जिनकी मौत मैदान ए जंग में अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ लड़ते-लड़ते हुई थी. साल 2014 की गणतंत्र दिवस परेड में टीपू सुल्तान को एक अदम्य साहस वाला महान योद्धा बताया गया था.

गौड़ा कहते हैं, "इसके उलट टीपू ने श्रिंगेरी, मेल्कोटे, नांजनगुंड, सिरीरंगापटनम, कोलूर, मोकंबिका के मंदिरों को ज़ेवरात दिए और सुरक्षा मुहैया करवाई थी."

वो कहते हैं, "ये सभी सरकारी दस्तावेज़ों में मौजूद हैं. कोडगू पर बाद में किसी दूसरे राजा ने भी शासन किया जिसके शासनकाल के दौरान महिलाओं का बलात्कार हुआ. ये लोग उन सबके बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं?"

वहीं, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर नरेंद्र पानी टीपू पर एक अलग नज़रिया रखते हैं.

वह कहते हैं, "अठारहवीं सदी में हर किसी ने लूटपाट और बलात्कार किया. 1791 में हुई बंगलुरू की तीसरी लड़ाई में तीन हज़ार लोग मारे गए थे. बहुत बड़े पैमाने पर बलात्कार और लूटपाट हुआ. लड़ाई को लेकर ब्रितानियों ने जो कहा है उसमें उसका ज़िक्र है."

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प्रोफ़ेसर नरेंद्र पानी कहते हैं, "हमारी सोच 21वीं सदी के अनुसार ढलनी चाहिए और हमें सभी बलात्कारों की निंदा करनी चाहिए चाहे वो मराठा, ब्रितानी या फिर दूसरों के हाथों हुआ हो.’

"टीपू के सबसे बड़े दुश्मनों में से एक हैदराबाद के निज़ाम थे. इस मामले को एक सांप्रदायिक रंग देना ग़लत है. सच तो ये है कि श्रिंगेरी मठ में लूटपाट मराठों ने की थी, टीपू ने तो उसकी हिफ़ाज़त की थी."

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