एशिया के दो बड़े देश एक दूसरे को संदेह से देखते हैं. आबादी के लिहाज से वे दुनिया के दो सबसे बड़े देश हैं और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं.
दोनों सीमाएं, संधियां और संसाधन साझा करते हैं. लेकिन इन सबके बावजूद भारत और चीन के रिश्ते जटिल और कभी-कभी तो तल्खी भरे रहे हैं.
तकरीबन आधी सदी से दोनों मुल्कों के बीच सीमा विवाद द्विपक्षीय संबंधों में बड़ी बाधा बना हुआ है.
दोनों देशों के बीच अक्साई चीन और अरुणाचल प्रदेश समेत कुछ अन्य क्षेत्रों को लेकर विवाद रहा है और ये विवाद युद्ध की इंतेहा तक भी अतीत में पहुंचा है.
हालांकि हाल के सालों में दोनों देशों के बढ़ते कूटनीतिक और आर्थिक रिश्तों ने उनके तनाव को काफ़ी हद तक कम करने में अहम भूमिका निभाई है.
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हिंद महासागर में तनाव
बीते कुछ सालों में भारत और चीन के बीच एक और रणनीतिक क्षेत्र को लेकर तनाव बढ़ा है और वो है हिंद महासागर.
कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफ़ेसर टीवी पॉल के मुताबिक़, "चीन पारंपरिक रूप से दक्षिण चीन सागर समेत प्रशांत महासागर को अपने बैकयार्ड के रूप में देखता है जबकि भारत दक्षिण एशिया और हिंद महासागर को अपना ‘ख़ास इलाक़ा’ मानता है."
भारत-चीन संबंधों पर नज़र रखने वाले जानकारों की राय है कि, "जैसे-जैसे दोनों देशों की ताक़त बढ़ी है, अपने-अपने इलाकों में दबदबे को लेकर उनके ख़यालात भी बदले हैं."
प्रोफ़ेसर टीवी पॉल कहते हैं, "और अब ऐसी स्थिति बन रही है जिसमें चीन हिंद महासागर में दाखिल हो रहा है, भारत हिंद महासागर में अपनी पकड़ मज़बूत करने के साथ-साथ प्रशांत क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहता है. वो अमरीका और क्षेत्र के दूसरे देशों के साथ अपने संबंध मज़बूत कर रहा है. वो क्षेत्र में अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ा रहा है."
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भारत की चिंताएं
लेकिन भारत के लिए हिंद महासागर में दांव बड़ा है. हिंद महासागर में उसकी 7500 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है.
भारत के जहाजरानी मंत्रालय के मुताबिक़ उसका 95 फ़ीसदी व्यापार हिंद महसागर के रास्ते होता है.
लेकिन हाल के सालों में हिंद महासागर में चीन की बढ़ती दिलचस्पी को लेकर भारत की चिंताएं बढ़ी हैं.
साल 2013 में चीन ने अपने सिल्क रोड प्रोजेक्ट की घोषणा की. इसके तहत चीन, पाकिस्तान से अपने समुद्री रास्ते को कम करना चाहता है.
प्रोफ़ेसर टीवी पॉल कहते हैं, "इससे चीन की फ़ारस की खाड़ी और मध्य पूर्व के देशों तक सीधी पहुंच हो जाएगी. अतीत में इन देशों का झुकाव भारत के प्रति ज़्यादा रहे थे. अफ़्रीका, दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में चीन का असर बढ़ेगा."
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चीन का दखल
तीन साल बाद चीन ने विदेश में अपना पहला सैनिक अड्डा बाब अल-मनदाब जलडमरूमध्य के पास जिबूती में स्थापित किया.
नौवहन से जुड़े आंकड़ों पर नज़र रखने वाली वेबसाइट मरीन ट्रैफिक के मुताबिक़ यहां नौवहन के दो सबसे व्यस्त रूट, हिंद महासागर से व्यापार का एक प्रमुख रूट हैं.
कई महीनों बाद श्रीलंका ने चीन को हम्बनटोटा बंदरगाह 99 साल के लिए लीज़ पर देने की घोषणा कर दी.
मरीन ट्रैफ़िक के मुताबिक़ हम्बनटोटा बंदरगाह मलक्का की खाड़ी को स्वेज़ नहर से जोड़ने वाले रास्ते से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. और इतना ही नहीं, हिंद महासागर में व्यापार का ये एक प्रमुख रास्ता भी है.
दिलचस्प बात ये है कि श्रीलंका ने हम्बनटोटा बंदरगाह की पेशकश भारत को ही की थी, लेकिन उसे लगा कि 2004 की सूनामी में बर्बाद हुए इस पोर्ट का पुनर्निर्माण व्यावहारिक नहीं है.
हालांकि चीन ने इसे अपनी मौजूदगी जताने के एक मौके की तरह देखा क्योंकि इस इलाके में अब तक उसके कदम नहीं पड़े थे.
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भारत की प्रतिक्रिया
प्रोफ़ेसर टीवी पॉल कहते हैं, "बेशक ये चीन की नई रणनीति जिससे भारत परेशान हुआ है. उसके पास चीन की तरह संसाधन नहीं हैं. और सबसे ज़्यादा चिंता की बात ये है कि ये सबकुछ केवल आर्थिक नियंत्रण के लिए नहीं किया जा रहा है."
इस स्थिति में भारत की प्रतिक्रिया दो दिशाओं में देखने को मिल रही है. पॉल कहते हैं, "एक तरफ़ भारत प्रशांत क्षेत्र में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कोशिश कर रहा है. दूसरी तरफ़ वो हिंद महासागर में भी अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है."
वॉशिंगटन स्थित सेंटर फ़ॉर फ़ॉरेन अफ़ेयर्स के मुताबिक़ भारत ने बीते दशक में अमरीका से 15 अरब डॉलर से ज़्यादा के हथियार खरीदे हैं. इसमें एयरक्राफ़्ट, समंदर में निगरानी के लिए मशीनें, जहाज़ पर हमला करने वाली मिसाइलें और हेलीकॉप्टर शामिल हैं.
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सेशल्स में भारत की मौजूदगी
प्रोफ़ेसर पॉल का कहना है कि भारत इस सिलसिले में अपने समुद्री बेड़े को बढ़ा रहा है. इसमें व्यापारिक जहाज और जंगी बेड़ा दोनों शामिल है. अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के अलावा वो इस क्षेत्र में चीन की बढ़त को रोकने के लिए नए साथियों की तलाश कर रहा है.
और इसी कड़ी में भारत सेशल्स में अपना सैनिक अड्डा स्थापित करने के लिए उससे बात कर रहा है. और इस बातचीत का बड़ा मतलब निकलता है.
पॉल के मुताबिक़ अब तक इस समझौते के बारे में बहुत कम जानकारी सामने आई है. लेकिन ये स्पष्ट है कि हिंद महासागर में चीन के बढ़ते दखल के जवाब में भारत ने ये कदम उठाया है.
सेशल्स न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये संधि हिंद महासागर की सुरक्षा बढ़ाने के लिए दोनों देशों के रणनीतिक सहयोग का एक हिस्सा है. दोनों देश सागर (SAGAR) प्रोजेक्ट (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फ़ॉर ऑल इन द रीजन) का हिस्सा हैं जिसके तहत पड़ोसी देशों के बीच सहयोग पर अमल हो रहा है.
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सेशल्स पर भारत के असर का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि साल 2014 से ही ही भारतीय नौसेना सेशल्स के समुद्री इलाके की निगरानी करती है और साल 2016 में भारत ने यहां एक रडार निगरानी सिस्टम लगाया था.
हालांकि सेशल्स में भारत के सैनिक अड्डे को लेकर कोई बहुत ज्यादा उत्साह का माहौल नहीं है. सेशल्स दक्षिण एशिया में सैलानियों की पसंदीदा जगह है और सेशल्स न्यूज़ एजेंसी का कहना है कि यहां रहने वाले लोग सैनिक अड्डे के निर्माण को देश की स्थिरता के ख़िलाफ़ मानते हैं.
वैसे भारत और सेशल्स की संधि पब्लिक डोमेन में नहीं है, लेकिन ये ज़रूर है कि भारत को सेशल्स में अपना सैनिक अड्डा स्थापित करने की इजाज़त मिली हुई है.
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