लगभग 40 प्रतिशत महिलाएं अपने जीवनकाल में फाइब्रॉयड या रसौली का शिकार होती हैं. वैसे तो यह किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन यह अक्सर 30 से 50 वर्ष के बीच की महिलाओं में अधिक देखा जाता है. ऐसा माना जाता है कि यह मोटापा से ग्रस्त महिलाओं में अधिक होता है, क्योंकि उनमें एस्ट्रोजेन हारमोन का स्तर अधिक होता है.
फाइब्रॉयड को महिलाओं के शरीर में बननेवाले एक हारमोन एस्ट्रोजेन से जोड़कर देखा जाता है. यह महिलाओं की ओवरी में बनता है. महिलाओं में फाइब्रॉयड 16 से 50 वर्ष की उम्र में कभी-भी उभर सकता है. इनका आकार तब बढ़ता है, जब एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ता है, जैसे गर्भावस्था के दौरान. इसका आकार मटर के दाने से लेकर खरबूजे के आकार तक हो सकता है.
नॉन कैंसरस होते हैं फाइब्रॉयड
फाइब्रॉयड या रसौली ऐसी गांठें होती हैं, जो महिलाओं के गर्भाशय में या उसके आसपास उभरती हैं, जिससे बांझपन का खतरा भी होता है. कई बार इसके होने का पता ही नहीं चलता, क्योंकि इसके शुरूआती लक्षण नजर नहीं आते. यह ट्यूमर नॉन कैंसरस होता है.
फाइब्रॉयड के प्रकार
इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड : ये गर्भाशय की मांसपेशियों की दीवार में उभरती हैं. इसके केस सबसे अधिक पाये जाते हैं.
सबसेरोसल फाइब्रॉयड : गर्भाशय की मांसपेशियों की दीवार के बाहर पेल्विस में होती है, जो बाद में बड़ी हो जाती है.
सबम्यूकोसल फाइब्रॉयड : ये गर्भाशय की दीवार के अंदरूनी धारी में स्थित मांसपेशियों में उभरती है.
पेडुनक्युलेटिड फाइब्रॉयड : ये गर्भाशय की बाहरी दीवार से विकसित होकर इसकी दीवार तक पहुंचती है.
सर्वाइकल फाइब्रॉयड : ये सर्विक्स की दीवार में उभरती है.
नयी तकनीक से दर्द रहित उपचार
फाइब्रॉयड का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि ये गर्भाशय के किस हिस्से में हैं और कितने हैं, आकार कितना है, महिला अविवाहित है या विवाहित आदि.
यदि आकार 3 से 4 सेमी है, तो हारमोन थेरेपी और अन्य दवाओं से इलाज किया जाता है. यदि आकार 5 से 6 सेमी तक है तो सर्जरी से निकाला जाता है. सजर्री लेप्रोस्कोपी से होती है.
यूटेराइन फाइब्रॉयड एंबोलाइजेशन
इस प्रक्रिया में रोगी को बेहोश नहीं किया जाता. रोगी को अस्पताल में केवल एक दिन रुकना पड़ता है. इस प्रक्रिया के बाद अधिकतर महिलाएं 1-3 दिन में सामान्य रूप से कार्य करने लगती हैं.
एक ही समय में सारी फाइब्रॉयड का उपचार हो जाता है और यह अत्यधिक प्रभावशाली भी है. इस प्रक्रिया के दौरान एक इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट त्वचा पर सूक्ष्म छिद्र करके पेट के निचले हिस्से से नली (कैथेटर) डालकर एंजियोग्राफी करता है. गर्भाशय नलिका की पहचान एंजियोग्राफी से करने के बाद नली के जरिये राई के दाने के बराबर की दवाई इंजेक्शन द्वारा रसौलियां तक पहुंचाते हैं. रक्तस्नव के कारण होने वाला दर्द भी 4-6 घंटों में ठीक हो जाता है और रक्तस्नव तुरंत बंद हो जाता है.
बातचीत : विनीता झा, दिल्ली
पहचानें ये लक्षण
मासिक में अधिक रक्तस्नव होना
भारी और लंबी पीरियड होने के कारण एनीमिया भी हो सकता है
पीरियड में काफी दर्द होना
पेडू में दर्द और दवाब, साथ ही पेट, कमर के निचले हिस्से में दर्द
फाइब्रॉयड के कारण कभी-कभी गर्भधारण में मुश्किल हो जाती है
समय पूर्व प्रसव होना. गर्भपात भी हो सकता है.
रसौली में संक्रमण के कारण स्नव से दुगर्ंध आना
बड़ी आंत पर दबाव से कब्ज होना
मूत्र संबंधी समस्याएं हो सकती हैं
संभोग के समय दर्द होना
थोड़ा भार उठाते ही महिलाओं को रक्त स्त्रव होने लगता है
डॉ कविता कटोच
गाइनिकोलॉजिस्ट एंड ओबेस्ट्रीशियन, होली एंजल हॉस्पिटल, नई दिल्ली