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प्रकाश झा को है ‘हिट का इंतजार’

बेतिया से कुमार हिमांशु राजनीति और गंगाजल जैसी फिल्मों में सियासत का चेहरा दिखाने वाले फिल्मकार प्रकाश झा इस बार फिर यहां चुनावी मैदान में हैं. संसदीय राजनीति में खुद का मुकाम बनाने के लिए बेतिया के गांवों की खाक छान रहे हैं. पिछले दो लोकसभा चुनावों में निर्दलीय और लोजपा के टिकट से किस्मत […]

बेतिया से कुमार हिमांशु

राजनीति और गंगाजल जैसी फिल्मों में सियासत का चेहरा दिखाने वाले फिल्मकार प्रकाश झा इस बार फिर यहां चुनावी मैदान में हैं. संसदीय राजनीति में खुद का मुकाम बनाने के लिए बेतिया के गांवों की खाक छान रहे हैं. पिछले दो लोकसभा चुनावों में निर्दलीय और लोजपा के टिकट से किस्मत आजमाने के बाद इस बार प्रकाश जदूय के उम्मीदवार हैं. ठेठ गवंई भोजपुरी में लोगों से सेवा करने के लिये ‘पांच साल की नौकरी’ मांग रहे हैं. फैसला चुनावी राजनीति के असली हीरो जनता के हाथ में है.

सफेद शर्ट, काले रंग की रिबॉॅॅक की ट्राउजर, पैरों में नीले रंग के नाइकी के जूते, आंखों पर धूप का चश्मा और हाथ में कलावा . गांव में बॉलिवुड के बड़े फिल्ममेकर का राजनेता के रूप में यह अवतार लीक से थोड़ा हटकर है. प्रकाश कैसे गांव-गवंई में जनता के बीच वोट मांग रहे हैं. यह जाने के लिये एक दिन हम भी चुनावी दौरे में उनके साथ रहे.

सुबह आठ बजे प्रकाश बेतिया शहर से करीब पांच किलोमीटर पश्चिम स्थित अपने पैतृक गांव बरहड़वा से चुनावी दौरे पर निकले. साथ में चार-पांच एसयूवी गाड़ियां हैं. पहला पड़ाव करीब साढ़े आठ बजे फरवां टोला में है. प्रकाश लोगों से भोजपुरी में पूछते हैं.. 60-65 साल में कउनो एमपी चंपारण में कुछु ना बनवलें.. एगो वृद्धाश्रम भी बनवा देतें त जनती. का चंपारण के लोग एतना नालायक बा? फिर किसानों और नौजवानों को बेतिया की सबसे बड़ी ताकत बताते हुए उनकी दुर्दशा का जिक्र करते हैं और लोगों से काम करने के लिये वोट मांगते हैं.

अगला पड़ाव करीब 9:30 बजे अमवा मझार गांव में है. टेंट में लोग जुटे हैं. प्रकाश गांव के मुद्दों के बजाय इलाके के बुनियादी सवाल उठाते हैं.. राम एकबाल सिंह के दरवाजे पर छोटे टेंट में लोगों का हुजम. नौजवान प्रकाश को करीब से देखना चाहते हैं. प्रकाश लोगों से कहते हैं.. काम करके चाहत बानी.बोलीं. पांच साल के नौकरी देत बानी नू अबकी.. देबे के बा. त हाथ उठाईं. लोग कहते हैं.. हं.. दियाई (देंगे). गांव में ज्यादातर पक्के मकान हैं.. अमवा मंझार को लोग एक पार्टी विशेष का परंपरागत गढ़ बतातें हैं.. काफिला धूल उड़ाता हुआ अगले मुकाम की ओर बढ़ जाता है.

चिकनी सड़क पर हम अपनी गाड़ी बढ़ाते हैं. धूप तीखी हो चली है. सड़के के दोनों ओर मक्के के हरे-भरे खेत आंखों को सुकून देते हैं. पुरुषोत्तमपुर में दुकान चलाने वाले लाल बाबू साव कहते हैं कि जो टक्कर में होगा, वोट उसे ही मिलेंगे. गंडक नहर किनारे बसे विश्वंभरापुर में 12 बजे सभा है. टेंट मे प्रकाश टेबल का सहारा लेकर खड़े होकर लोगों को भोजपुरी में बताते हैं.. मैंने जो काम किया मन से किया.. मेरे जैसे फिल्मकार फिल्म इंडस्ट्री में गिने-चुने ही हैं. लोगों को याद दिलातें हैं कि प्रतिद्वंदी उम्मीदवार के कारण बेतिया में फ्लाइओवर नहीं बन पा रहा है. फिर लोगों से काम करने के लिये पांच साल की नौकरी मांगतें हैं. कहते हैं. दिल्ली पहुंचनी त अकेले बैंड बजा देम सबके.. अगला पड़ाव दोपहर एक बजे तिवारी टोला. माइक पर प्रकाश जी के आने का ऐलान. लोग जुटते हैं. प्रकाश फिर वही बातें दोहराते हैं. दो बजे कच्ची सड़क पर धूल उड़ाता काफिला जगीरहां टोला में पहुंचा. मस्जिद के पास टेंट में लोगों की भीड़ हैं. यहां प्रकाश लोगों को हिंदी में बतातें हैं कि मोदी के नाम पर वोट मांगने वाले आपके प्रति जिम्मेदार नहीं होंगे. यहां से काफिला दूसरें गांव की ओर बढ़ता है. प्रकाश रात करमवा गांव में बिताते हैं.

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