किस्सागोई का मोहपाश

नयी किताब मौखिक परंपरा की कोख से उपजा कथानक ‘हिमुली हीरामणि कथा’, किस्सागोई के एक अनूठे और रोमांचक सफर पर आपको लेकर चलता है. कहानियों का इतिहास हमारे देश में हजारों साल पुराना है, जो वाचक की वाकपटुता और सुननेवालों की सहर्ष ग्रहणशीलता पर फलता-फूलता रहा है. हिमुली नामक खूबसूरत, रहस्यमयी, मृगनयनी यक्षिणी हर युग […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 11, 2018 12:15 AM

नयी किताब

मौखिक परंपरा की कोख से उपजा कथानक ‘हिमुली हीरामणि कथा’, किस्सागोई के एक अनूठे और रोमांचक सफर पर आपको लेकर चलता है. कहानियों का इतिहास हमारे देश में हजारों साल पुराना है, जो वाचक की वाकपटुता और सुननेवालों की सहर्ष ग्रहणशीलता पर फलता-फूलता रहा है. हिमुली नामक खूबसूरत, रहस्यमयी, मृगनयनी यक्षिणी हर युग में अवतरित होती है और अपने सौंदर्य के बूते पर पुरुषों को अपने मोहपाश में बांधती है.
हिमुली की कहानी में रोमांच इतना गहरा है कि एक स्वस्थ अविश्वास होते हुए भी आप उसमें घिरते जाते हैं. धूर्तों की लुटियन नगरी में हिमुली अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर इठलाती है. वहीं नाम के बिलकुल विपरीत हीरामणि तोता एक पैर से लंगड़ा और काना है, पर वह कुशल किस्सागो और शास्त्रों का जानकार है. एक कौड़ी में दुकानदार उसे खरीद लाता है. हीरामणि रोज नयी कहानियां सुनाता है. हीरामणि अपनी वाकपटुता से देवज्ञा की आड़ में दुकानदार के बेटे की शादी नगरसेठ की रूपमती बेटी से करवा देता है. वह सुंदर तरीके से हिमुली की सुंदरता बताता है. पाठक उस असीम रूपवती की कल्पना करके आनंद का अनुभव करते हैं.
एक कहानी चल ही रही होती है कि हीरामणि के पेट से एक और कहानी निकल आती है. बड़ा मुद्दा है कहानी को रहस्य, रोमांच से सराबोर रखने का. कहानी पुरानी होते हुए भी सामयिकता में रची-बसी है. हिमुली सबका साथ सबका विकास के नारे का आश्वासन देती है. कहानी सीधी दिशा में नहीं चलती, लेकिन प्रवाह ऐसा रसमय है कि ध्यान उसकी रोचकता में अटक जाता है. इंद्रप्रस्थ की राजनीति का उल्लेख चौपड़ की तरह होता है जहां छल-कपट, सुरा-सुंदरी के बिना साम्राज्य ना हारे ना जीते जाते हैं.
कहानी चंचल नदी की तरह बढ़ती जाती है. अंत की चिंता ना पाठक को है, ना लेखक को. लोकभाषा का बाहुल्य इसे अपनेपन का आवरण देता है जो किसी जाति, धर्म, संप्रदाय का ना होकर सबका होता है. हर दौर में मानव मन किस्सागोई के मोहपाश में जकड़ा हुआ कभी सराय या धर्मशाला में बैठे हुए किस्सों का आनंद लेते हुआ दिखता है, तो कभी गपोड़शंखों के बीच गल्प कथा का, या कभी नानी-दादी के इर्द-गिर्द भीड़ लगाये हुए नींद से भारी आंखों को मलकर नींद भगाते हुए. बहरहाल, ई-बुक और किंडल के इस दौर में भी दास्तानगोई या किस्सागोई का कोई मुकाबला नहीं.
<अर्चना शर्मा
‘हिमुली हीरामणि कथा’ में कहानी सीधी दिशा में नहीं चलती, लेकिन प्रवाह ऐसा रसमय है कि ध्यान उसकी रोचकता में अटक जाता है.

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