"रविवार शाम पापा को कई बार एक फ़ोन आ रहा था. पापा उसे उठा नहीं रहे थे. जब उठाया तो बहुत गुस्से में कहा कि आ रहा हूं, परेशान क्यों हो रहे हो…..लेकिन इसके बाद पापा वापस नहीं आए."
निहारिका के आंसू सूख चुके से लगते हैं. उसकी मां बेहोशी की हालत में पड़ी ज़मीन पर सो रही है. उन्हें नींद का इंजेक्शन दिया गया है, लेकिन वो बेअसर है.
ज़मीन पर पड़ी वो बीच-बीच में सिसकियां भरती हैं. 16 साल की ये बच्ची बहुत हिम्मत से अपनी मां नीतू सिंह को ढाढस बंधाती है और कहती है, "नहीं मां, तुम्हें रोना नहीं है अब."
निहारिका का 15 साल का भाई निखिल अपने पिता की लाश को आग देने महुली गंगा घाट गया है.
ये परिवार है मृत पत्रकार नवीन निश्चल का. 35 साल के नवीन भोजपुर ज़िले के गड़हनी प्रखंड से हिंदी अख़बार दैनिक भास्कर के लिए काम करते थे.
दूसरे पत्रकार के घर भी मातम
उधर इस घर से कुछ दूरी पर ही 25 साल के विजय सिंह का घर है. स्थानीय पत्रिकाओं में लिखने वाले विजय के परिवार का मातमी सन्नाटा भी मां प्रभावती और बहन सोनी देवी की चीत्कार से बीच-बीच में टूटता है.
तीन बच्चों के पिता विजय की भी मौत हो गई है. उनकी दुबली-पतली पत्नी अंधेरे कमरे में सिसक-सिसक कर रो रही हैं और उनका चार साल का बेटा उन्हें घाट पर मुखाग्नि देने गया है. वो अपने घर में अकेले कमाने वाले हाथ थे.
ग़ौरतलब है कि बीती रविवार रात गड़हनी ब्लॉक के नहसी पुल पर स्कार्पियो से कुचलकर नवीन और विजय की मौत हो गई थी. ये दोनों ही गड़हनी प्रखंड के बगबां गांव के थे. ये हादसा था या हत्या ये अभी जांच का विषय है.
इस मामले में मृतक नवीन निश्चल के भाई राजेश सिंह की ओर से दर्ज कराई गई एफ़आईआर में गड़हनी के मियांटोली निवासी पूर्व मुखिया पति अहमद अली उर्फ हरशू मियां, उसके बेटे डब्लू सहित 2 अन्य को अभियुक्त बनाया गया है.
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हादसा या हत्या?
इस मामले में एसआईटी का गठन किया गया है जिसका नेतृत्व कर रहे डीएसपी संजय कुमार ने बीबीसी को बताया, "मामले में हरशू मियां की गिरफ्तारी हो चुकी है. हालांकि अभी ये जांच का विषय है कि ये हत्या थी या महज़ एक दुर्घटना."
बता दें कि इस मामले में नवीन निश्चल और हरशू मियां के बीच पहले से विवाद की बात बार-बार कही जा रही है. लेकिन नवीन का परिवार इससे साफ़ इनकार कर रहा है.
नवीन के भाई राजेश सिंह कहते है, "उनका किसी से कोई विवाद नहीं था. रविवार रात गड़हनी बाज़ार में पान की दुकान पर किसी मामले में दोनों के बीच विवाद हुआ जिसके बाद वो विजय के साथ घर वापस लौट रहे थे, लेकिन मुखिया ने उन्हें अपनी स्कॉर्पियो से कुचल दिया और फ़रार हो गए."
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पहले से विवाद की बात
नवीन का परिवार किसी तरह के विवाद से इनकार कर रहा है, लेकिन मृतक विजय सिंह और गांव वाले इस बात की तस्दीक करते हैं कि दोनों के बीच ख़बरों को लेकर पहले से ही विवाद था.
गांव के ही भिखारी सिंह कहते है, "सारा विवाद ख़बर को लेकर था इसलिए हमारे गांव के सबसे सज्जन आदमी को मार दिया. मुखिया पति कुछ चाहता था जो ये नहीं करते थे, तो उसने इनको मार दिया."
ग़ौरतलब है कि हरशू मियां और उनके बेटे डब्लू का आपराधिक रिकार्ड रहा है.
हिन्दुस्तान में आरा के ब्यूरो चीफ़ सुनील कुमार बताते हैं, "2013 में गड़हनी में एक दंगे को भड़काने के मामले में हरशू मियां का नाम आया था और उन पर मामला भी दर्ज है."
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वैसे बिहार में पत्रकारों की हत्या का सिलसिला नया नहीं है. साल 2016 में सीवान में चर्चित राजदेव रंजन पत्रकार हत्याकांड के बाद पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल उठे थे.
लेकिन साल 2016 में ही बिहार के अलग-अलग जिलों में काम करने वाले पत्रकार अजय विद्रोही, महेन्द्र पाण्डेय, धर्मेन्द्र सिंह की हत्या हुई थी. वहीं साल 2017 में पत्रकार ब्रजकिशोर की हत्या हुई थी.
दिलचस्प है कि इन कस्बाई या छोटे शहरों के पत्रकारों की हत्या के बाद एक बहस इस मसले पर ज़रूर होती है कि पत्रकारों का स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली लोगों से गठजोड़ है जिसका वो मौके बेमौके फ़ायदा उठाते हैं.
लेकिन इस बहस का एक दूसरा पक्ष वरिष्ठ पत्रकार और ‘बिहार कवरेज’ के संपादक पुष्यमित्र रखते हैं.
वो कहते हैं, "आप देखिए छोटे शहरों के या कस्बाई पत्रकारों पर ख़बर इकठ्ठा करने और अख़बार को विज्ञापन देने की दोहरी ज़िम्मेदारी है. ये दोहरी ज़िम्मेदारी ही उन्हें बहुत ज्यादा असुरक्षित बनाती है क्योंकि जिनसे वो विज्ञापन ले रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ जब वो लिखते है, तो विज्ञापन देने वाले का बर्ताव हिंसक होता है."
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